Thursday, December 10, 2015

दिल से रे, दिल से रे|

Justice delayed is Justice denied! सलमान खान छूट जायेंगे! कोर्ट ने कहा की सलमान खान पिए हुए थे या गाड़ी चला रहे थे ये साबित नहीं होता| जियो भैय्ये, बिन पिए हम तेरे वाला चक्कर है क्या| ये तो वो एक चुटकुले वाली बात हो गई जिसमे एक ट्रेन ड्राईवर ट्रेन ले कर खेतों में घुस गया था| चलो सलमान खान के प्रशंसक खुश हो जायेंगे पर उन लोगों का क्या जो उस रात मर गए? वो क्या जान बूझ कर भाईजान की गाड़ी के नीचे आ गए थे मरने के लिए| खैर अब जो भी हो, इतने सालों में पी हुई उतर ही गई होगी| मगर पी  किस ने थी ये बात सोचने की है, जाँच कर्ताओं ने, पुलिस ने या कोर्ट ने? पता नहीं भैय्ये, किसने पी थी पर चढ़ तो गई उन मरने वालों पर| हम आप ने चढ़ा दी होती तो अब तक मर खप गए होते जेलों में, पर भैय्ये पैसा पास हो तो कोई ना कोई सूरत निकल ही आती है सीरत सुधारने की| अब तो संजय दत्त को भी छोड़ने की बात हो रही है भैय्ये, वो भी छूट जायेंगे, चलो देर आयद दुरुस्त आयद| अब इन को ले कर बड़ी बड़ी फ़िल्में बनेंगी और हम आप उल्लुओं की तरह हजारों रुपये खर्च कर देखने जायेंगे| सही कहा है हम भारतीय अखंड हैं|

एक और समाचार ने आज का दिन बना दिया, बिहार की जेलों में अब पंच तारांकित भोजन कैदियों को परोसा जायेगा| भैय्ये वो बचपन से जो पोशम्पा भाई पोशम्पा खेलते थे सब बेनामी हो जायेगा| "पोशम्पा भाई पोशम्पा, डाकुओं ने क्या किया, सौ रूपए की घडी चुराई, अब तो जेल में जाना होगा, जेल की रोटी खाना होगा|" अब तो जेल जाने की होड़ लग जाएगी भैय्ये| 
सोचिये कैदी डाइनिंग टेबल पर बैठा है और वार्डेन पूछ रहा है " क्या खायेंगे साहब आप" बटर चिकेन, रोगनजोश, नान, आइसक्रीम|" और कैदी की फरमाइश इटालियन खाने की है, "टुडेज़ स्पेशल में क्या है आज|" 

वाह कल्पना करने से ही मुंह भीग गया भैय्ये|
अच्छा और एक राज जो आज खुला वो ये की चुनावों से पहले ही बिहार की जेलों में जिम, स्विमिंग पूल, रिक्रिएशन रूम, खेल संकुल आदि आदि का इंतेजाम हो चुका है और कैदियों को इन सारी सहुलतों का आनंद मिल रहा है| वाह वाह क्या बात है भैय्ये| अब तो अपने राम की मंशा कुछ कर गुजरने की हो रही है| ऐसा मजा अगर जेलों में मिलने वाला है तो बेकार ही बबुआ और उनकी माई हंगामा किये हुए हैं| अब तुमने सौ रूपए की घडी नहीं, १०० करोड़ की चीजें चुराईं हैं तो तुम्हारे लिए तो विशेष व्यवस्था होगी भैय्ये, फिकिर नॉट| और जरा सोचो तो, की ये सब बिहार की जेलों में ही क्यूँ , तो भैय्ये, वहां सत्ताधारी लोगों की जरूरत है ये, जाने कब अन्दर जाना पड जाये| बस अब कमी है तो एक समुन्दर की, बीच की, फार्म हाउस की, मल्टीप्लेक्स की और ना जाने किस किस की| वो भी हो ही जायेगा कहते हैं ना की " भेन देयर इज ए भिल देयर इज ए भे|"

Monday, November 30, 2015

अभाव अच्छा है!



अभाव अच्छा है| जीवन में प्रत्येक वस्तु अगर सरलता से मिल जाये तो उसका मूल्य समझ नहीं आता| हम जब बच्चे थे तो कई चीजें ऐसी थी जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं थी परन्तु वो बाज़ार में उपलब्ध थीं और हमारे पास पड़ोस में रहने वाले परिवार उनका उपयोग करते थे| मेरे पिताजी अपने बलबूते पर कर्ज ले कर पढ़े और इंजिनियर बने| मेरे होश सम्हालने के समय से पिताजी एक इंजीनियरिंग कॉलेज में प्राध्यापक थे और हमारा जीवन सुचारू रूप से चल रहा था| उनके वेतन का एक बड़ा भाग कर्ज उतारने में, उनके परिवार की आर्थिक मदद करने में खर्च हो जाता था, परन्तु फिर भी ऐसी किसी आर्थिक तंगी से गुजर रहे हों, ऐसा कोई भाव उन्होंने कभी नहीं दर्शाया| मेरी माँ का किफ़ायत से घर  चलाना और पिताजी का भरपूर साथ देना हमें किसी अभाव का आभास भी नहीं होने देता था|
मुझे याद है एक बार कॉलोनी में एक दोस्त के घर डबल रोटी देखी और अचंभित हो गया की ये क्या है, घर आ कर माँ को बताया तो उसने डबलरोटी कैसे बनती है वो बताया और समझाया की ‘बेटा, डबलरोटी मैदे से बनती है और मैदा पेट में जा कर चिपक जाता है| डबलरोटी की जिज्ञासा का समाधान पल में हो गया|
ऐसे कई क्षणों को मेरी माँ ने बहुत ही नीतिमत्ता से सम्हाला और हमें हमेशा खुश रखा| लड्डू, गुजिया, से ले कर, गुलाबजामुन, जलेबी तक, समोसे, कचोडी से ले कर छोले भठूरे तक सब कुछ माँ घर पर बनाती थी और हम पेट भर खाते थे| गुलाबजामुनों का एक किस्सा याद आ रहा है, किसी को घर पर खाना खाने बुलाया था और कुछ पूजा भी थी शायद| पूजा के बाद गुलाबजामुनों का भोग लगा और खाने की तयारी में सब लग गए| इधर हमने मौका देखा और आते-जाते गुलाबजामुनो का भोग लगाना शुरू  कर दिया, करीब ५०  गुलाबजामुनों में से जब ५/७ ही बचे, तब जा कर  छुप गए कहीं| मेहमानों के लिए जब गुलाबजामुनों की बारी आई तो माँ के होश ही उड़ गए, खैर उस समय किसी तरह सम्हाला गया मौके को और मेहमानों के जाने के बाद अपने राम की जो पिटाई हुई है की राम भजो(ऐसा कोई भी कांड घर पर सिर्फ मैं ही कर सकता था ऐसा पूर्ण विश्वास मेरी माँ को था और वो सही भी थी)|
अभाव का मतलब यही की बाज़ार में मिलने वाली मिठाइयाँ, नमकीन,  बिस्किट, चोकलेटस इत्यादि हमने कई बरसों तक कभी नहीं खायीं| वहीँ बेकरी में कनस्तर भर के बिस्किट बनाने की सामग्री ले जा कर आटे के बिस्किट बनवा कर लाना मुझे याद आ रहा है, उन बिस्किटों का स्वाद भुलाये नहीं  भूलता| आज भी बाज़ार में मिलने वाली वस्तुओं से अधिक मुझे घर पर बनी मिठाई, नमकीन, आदि अच्छे लगते हैं, उसमे मुझे माँ का प्यार, स्नेह और आशीर्वाद का आभास होता है और स्वाद दोगुना हो जाता है|
आज जब अभाव नहीं है और हम सभी के बच्चे अभाव के बगैर जी रहे हैं तो इन भावनाओं का ह्रास होता दिख रहा है| सरलता से मिल जाने वाली वस्तु का महत्त्व कम हो जाता है| यही हो रहा है आज घर पर बने व्यंजनों से ज्यादा बाज़ार का रुख हो रहा है, बनी बनाई, पकी पकाई चीजें बाज़ार में हैं और उनका उपयोग करना आज फैशन होता जा रहा है| वो माँ के हाथों का स्वाद,वो ममता, वो भावना से ओत प्रोत व्यंजन आज गायब होते जा रहे हैं| इसका कारण समय की कमी हो सकता है परन्तु फिर समय निकाला भी जा सकता है| घडी की सुइयों का गुलाम बन कर भावनाओं का ह्रास ठीक नहीं|
अभाव अच्छा है क्यूंकि अभाव हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखता है, हमारी भावनाओं को जिन्दा रखता है और सबसे महत्वपूर्ण की ये  की अभाव हमें वस्तुओं का , रिश्तों का, और भावनाओं का मूल्य समझा देता है|

Friday, November 27, 2015

जाने भी दो यारों

अब बहुत हो गया भैय्ये! अब छोडो भी बेचारे को अकेला उसकी बीबी के साथ| तीन चार दिन बीत गए उस बात को और तुम हो की अभी भी लगे पड़े हो पीछे लट्ठ ले के| ये हमारी पहचान नहीं भैय्ये, अपन तो एक दो दिन में भूल जाते हैंगे सब| अरे अभी नहीं देखा बिहार चुनाव के समय|जिसने बिहार को १०० साल पीछे धकेल दिया हैगा, जिसने बिहार को नोच खंसोट लिया हैगा, हमने सब भुला कर फिर उसे ही बिहार सौंप दिया हैगा| भले ही उसने मुखौटा राम का लगा रक्खा हो पर आत्मा तो रावण की ही हैगी भैय्ये| ये हैगी अपन की सही पहचान| अपन का तो लॉन्ग टर्म, शॉर्ट टर्म, आल टर्म सारी मेमोरी का पिराबलम हैगा भैय्ये|इसीलिए कह रहे हैंगे की छोडो उसका पीछा अब, अरे हो गई हैगी गलती उससे शो बाजी में| अब १५/२० मंजिल ऊपर से धरती नहीं दिखती हैगी इसलिए बोल गई उसकी बीबी कुछ| पर भैय्ये यहाँ तो फतवे निकल रहे हैंगे, ये कर दो, वो कर दो| अब बस भी करो, अपने ग़ालिब साहब या ऐसे ही कोई नहीं कह गए हैंगे की “और भी ग़म हैंगे जमाने में मुहब्बत के सिवा” तो ढूंढो नए ग़म| यहाँ तो एक ढूंढो हज़ार मिलेंगे|
अब देखो, एक बबुआ हैंगे अपने माई के दुलारे, वो रोजई कुछ ना कुछ गुल खिला रहे हैंगे उनके बारे में बोलो, उनकी माई के बारे में बोलो| ३०/४० लोग गुंडई कर रहे हैंगे अपनी संसद में और सरकार को काम नई करने दे रहे हैंगे उनके बारे में बोलो| करोड़ों रुपैय्या बरबाद हो रहा हैगा अपन का रोज, उसके बारे में बोलो| इहैं ससुरे अपन के देस की छबि बिगाड़ रहे हैंगे असहिष्णुता असहिष्णुता का हल्ला मचा के, उसके बारे में बोलो| और ऊपर से चिल्ला रहे हैंगे की संसद चलाना सरकार की जिम्मेदारी है, अरे सुसरों तुम सारे दिन गुंडई करोगे, बिना बात का बतंगड़ बनाओगे तो सरकार क्या करेगी| अब तो अपन को ही कुछ करना होगा भैय्ये, इन सुसरों को ४० से ४ तक ले आओ| ई सब मूरख कलाकार लोग फालतू इनके चक्करों में पड़ कर अंट संट बक रहे हैंगे, देस तो इन सुसरों ने छोड़ना चाहिए भैय्ये! असहिष्णु तो ये सुसरे हो रहे हैंगे क्यूंकि इनकी मट्टी पलीद हो रही हैगी| अभी तो भैय्ये सरकार ने जमीन बनाने का काम किया है खुदाई तो अब होगी| इसी का डर है भैय्ये इनको इसीलिए चला रहे हैंगे ये पिरोगराम देस को बरबाद करने का| इसमें कौन कौन सामिल हैगा जे बात सब जान रहे हैंगे तो भैय्ये फतवा निकालना हैगा तो इन सुसरों के खिलाफ निकालो |
और एक बोहोत जरूरी बात, अपन को संख्पुस्पी और चवनप्रास की बहुत जरूरत हैगी भैय्ये, ई सुसरी मेमोरी को सही करना लाजिमी हो गया हैगा| और कोई इलाज तुम्हारे पास हो तो बताना भैय्ये, अपन इन्तेजार कर रहे हैंगे|

असहिष्णुता

अपने राम अपनी औरत से बहुत नाराज़ हैं, ये कैसी करमजली पत्नी है कि बोलती ही नहीं कहीं चलने को! उन शरीफजादियाँ को देखो कैसे एक के बाद एक अपने अपने आदमी से जिद कर रही हैं “चलो न हमको चाँद पर ले चलो, अजी हम तो यहाँ रह नहीं सकते, बरदाश्त नहीं होता अब, चलो जी कहीं दूर निकल जाते हैं | चाँद सितारे में न जाने क्या लटका पड़ा है कि जिसे देखो उसे ही अपनी धरती छोड़ चाँद पर जाने का भूत सवार हो गया है| गुजारिश है सरकार से की इन सभी (शरीफ)जादों और (शरीफ)जादियों को रॉकेट मुह्हैया कराया जाये रियायती दरों पर|
अब तो हद हो गई बर्दाश्त की हमारे भी, हर ऐरा गैरा नत्थू खैरा खड़ा हो कर बकने लग पड़ा है पर हमारी औरत है कि चुप लगा कर बैठी हैं|
खैर, अपनी औरत को तो हम ठीक कर लेंगे पर अभी जरा इन “ऐ आई बी” के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं से तो निपट लें| अच्छा भैये ऐसा क्या हो गया इन महानुभावों को की बजने लगे सब तरफ से| इसी धरती के बाशिंदों के प्यार और दुलार से तो तुम ज़र्रे से आफ़ताब बन गए वरना पड़े रहते किसी कोने में हमारी तरह| अब अर्श पर पहुँच गए तो ये फर्श बरदाश्त नहीं हो रहा तुमको| और उलटे इसे ही कोस रहे हो कि ये तुम्हे सहन नहीं करता|
अपना देस तो भैय्ये, सदियों से इतना सहिष्णु रहा है कि कोई कहीं से भी आ कर बरसों जुलम करे और फिर जाते जाते माल असबाब भी लूट ले जाए तो भी हम कुछ नहीं कहते| इतना सहिष्णु रहा है कि हमारी सारी इतिहास की किताबें उन्ही लुटेरों के बखान से भरी हुई हैं और हम अपने बच्चों को वही झूठा इतिहास पढ़ाते हैं| इतना सहिष्णु रहा है कि मज़हब के नाम पर दो टुकड़े होने के बाद भी ज्यादातरों को यहीं पाल रहा है और तो और खास सहुलतें भी दे रहा है| इतना सहिष्णु रहा है की तुम्हारे जैसे कईयों को सर माथे पे बिठा रखा है| और तुम कहते हो की असहिष्णुता बढ़ गई है और तुम ये देस छोड़ कर दूसरे देस जाना चाहते हो| कहाँ जाओगे भैय्ये? कौन देस तुम्हे पलक पांवड़े बिछा कर बुला रहा है, हमें भी बताओ| भैय्ये, ये तो भारत है की इतनी बक** के बाद भी तुमको बर्दाश्त किये हुए है वरना और कहीं तो तुम्हारा नामोनिशान भी नहीं मिलता अब तक|
देखो भैय्ये, हमारी मानो तो तुम इस पचड़े में मत पड़ो, तुम हो भांड आदमी, पिक्चर बनाओ, ठुमके लगाओ, पैसे लो और चलते बनो| हम वादा करते हैं , तुम्हारी पिक्चर देखने हमारे देस की असहिष्णु जनता भीड़ लगा देगी भीड़! इसलिए इस राजनीती के कीचड के चक्कर में मत पड़ो| दंगल करो, दंगे न कराओ| हमारे देस में एक कहावत है भैय्ये “जिसका काम उसीको साजे, और करे तो डंडा बाजे|” तो भैय्ये जब तक डंडा बजने का काम करे तब तक ही सुधर जाओ वरना .........|
और एक बात सुन लो भैय्ये बहुत पते की है, यहाँ बीबी की तो सभी को सुननी पड़ती है पर चौराहे पर ऐलान कोई नहीं करता| भैय्ये, हमारी वाली तो जो सुनाती है उसका जिक्र हम अपने आप से भी नहीं करते और तुम......|
चलो अब इत्ते में समझ आ गई होगी तुम्हे, तो निकलो अब, हमें भी जाना है अब अपनी बीबी की सुनने|

इति सिद्धम!

Yet another time we proved that we are idiots! The success of a tainted politician & sons in Bihar & a bogus, low IQ, depressing film called Prem Ratan Dhan Payo!
As the first one shall show its results in some time & prove the point, the later continues proving us Idiots.
As for Bihar is concerned Mr. Nitish Kumar simply has no clue what is being handed over to him as the Realm of the BIhar Government. The real Sceptre & signet shall allways be with Lalu Prasad. As you may remember Mr. Lalu Prasad has the distinction of running the state inabsentia with the help of his illiterate wife. Bihar went to dogs then. There is a joke viral now a days that "If you want to experience the extreme of sacrifices, look at the People of Bihar who sacrificed the fortune of their children to improve the future of Lalu's sons". BIHAR needs complete eradication of current political people & establishing a new thought free of जाति, धर्म, पंथ, सम्प्रदाय| This current situation does not seem to have the spark for a better & developed Bihar, because Development in terms of infrastructure, economy, industry is not going to help Bihar. The real development shall be achieved with the complete overhaul of the social system which is based on जाति, धर्म, पंथ, सम्प्रदाय| Once this auto immune disease of जातिवाद is eradicated we shall most definitely have Bahar in Bihar
God be with the people of Bihar.
Now the film, I shall confess that I have not seen the film & have no plans to do so but know for sure that the film is bogus, low IQ & has no substance. The success of the film is directly proportionate to the fact that we are idiots, fools & low IQ.
I fail to understand why people throng the cinema halls for these Salmaans & Shahrookhs of the film world when all they serve is rubbish. The film PRDP seems boring by its story, songs, actors & Director him self. We have grown up watching Rajshree films like Dosti, Uphaar, Jeevan Mrityu, Piya ka Ghar, Tapsya, Chitchor, Payal Ki Jhankaar ,Nadiya ke Paar, Dulhan Vahi jo Piya Man Bhaye, Abodh & for that matter Maine pyar Kiya & Hum Aapke Hain Koun(A remake of Nadiya Ke paar). I have all the doubts in the world, for the directorial capabilities of Mr. Sooraj Barjatya. For me he only made Two good film Maine pyaar kiya & Hum AAp Ke hain Koun which were previously made & he for that matter had only to give the setting an uplift in terms of grandeur. That's all. The films looked good because they had new & fresh faces with the grandeur attracting the audience. After that all film that he made are bogus, extremely melodramatic & unreal. The film PRDP also seems to be a poorer version of his directorial capabilities. A review about the film says & I quote "The problem is that the director glorifies and romanticises every feudal, patriarchal, backward practice portrayed in this yawn-inducing film".
But for the people of this country, A भद्दा डांस or tapori dialouge from Salmaan & Shahrookh is more than enough to crowd the halls. People will say that I am biased & do not know what kind of social service these people do. Yes I agree, I may be biased but for the social service part sorry, they have to do it. After all they make all the money fooling this very society so isn't it fair that they give something back.
Anyway ! The gist of the thing is that we are utmost fools & Idiots & It is proven.
"Q.E.D." इति सिद्धम!

टिम्बकटू

The supposedly ISIS gunmen have taken hostage around 170 people in Mali capital Bamako Africa.
Just in case you don't know, Mali is the country where "Timbaktu"(spelling may be different, this is my Indian version ) is situated.
Timbaktu & Jhumaritillaya are two places which were very mysteriously famous during my childhood. Timbaktu was the place unknown & out of the world and any body who was out of sight for some period was considered gone to Timbaktu.
Jhumaritillaya was always a place from where listeners used to make "फरमाईश" on विविध भारती for every song Vividh Bharati played . We used to feel that Jhumaritillaya is also a place like Timbaktu & is made up by the AIR People until I physically went to the Place in 1987 while working in Hazaribagh {(Bihar) now Jharkhand}.
I shall not be visiting Timbaktu in my life time that's for sure.
Here I am restraining myself from commenting on the ongoing crisis in Mali for obvious reasons.

मन पाती

लो भैय्ये फिर एक बार हमने अपने सर जूतियाँ पडवा लीं| हमें शौक ही है अगले से बे इज्ज़त होने का| पता नहीं किस मादर्णीय(नया शब्द है भैय्ये, असहिष्णुता से जन्मा, धन्यवाद रवि भैय्या)) के दिमाग में ये बात आई की हमें पकिस्तान से क्रिकेट खेलना चाहिए, खेलना तो चाहिए ही, उसे बा इज्ज़त यहाँ बुलाना भी चाहिए| और हमारा मादर्णीय मीडिया तो बाट ही जोह रहा था की कुछ ऐसा मिले जिसे उछाला जा सके तो भैय्ये लग गया मीडिया इस बात के पीछे, और आखिर बी सी सी आई (जो श्रीनिवासन के बाद अपनी धरती खोज रही है) ने भी घुटने टेके और भेज दिया निमंत्रण पकिस्तान को| अरे भैय्ये जहाँ से बिन बुलाये ही इतने घुसे चले आ रहे हैं उन्हें और बुल्लौवा देने की क्या पड़ी है पर नहीं हमारे मादर्णीय मीडिया, और तथाकथित सेक्युलर इंडियन जमात को घुसपैठ से कुछ लेना देना नहीं है उन्हें तो विश्व में भारत की छवि सुधारने का भूत सवार हो गया है सो भेजो बुल्लौआ क्रिकेट टीम को, फूहड़ कॉमेडियनों और कलाकारों को| अब भैय्ये तुम कहोगे की कलाकारों को बक्श दो, कला का कोई धर्म, जात, पात नहीं होती| तो भैय्ये मान लो की हमारे पडोसी से हमारी जानी दुशमनी हो गई है मुहल्ले में और ढेर जूतम पैजार, यहाँ तक की सर फुट्टवल भी हो चुका पर हमारी बीबी पडोसी की बीबी को घर बुला कर खातिर कर रही है तो हम क्या चुप बैठेंगे | ना भैय्ये अपन तो बीबी को भी नहीं छोड़ेंगे, अरे जब यहाँ भाई भाई में दीवारें खड़ी हो जाती हैं तो अड़ोसी अड़ोसी को कौन पूछता है भैय्ये|
खैर जो भी हो ये हमारा व्यक्तिगत मामला है, इसे हम आपस में सुलझा लेंगे|
तो भैय्ये हासिल जमा ये की पकिस्तान को मौका मिल गया फिर एक बार चौका लगाने का और उसने हमारे खुशबु में भीगे निमंत्रण पत्र में मिर्चें भर उसे पुंगली बना कर वापस भेज दिया| हमारे मादर्णीय मीडिया और मादर्णीय सेक्युलर जमात के बाशिंदों को ये पुंगली मुबारक| अब सोचने की जरूरत नहीं है भैय्ये की इसका क्या करें जग जाहिर है क्या करना चाहिए, वही करो|
पोस्ट में कुछ तथ्य हो न हो एक नया शब्द तो मिला ही सोचने पर मजबूर करने के लिए| इसका उपयोग सभ्य समाज में बहुत आदरणीय तरीके से किया जा सकता है इसमें कोई शक नहीं|

तू



तो अब तू भी रूठ गया मुझसे,
मैंने किस्मत से तो पाया था तुझे,
तू मेरा नसीब नहीं!

क्या कहूँ , कैसे समझाऊं  तुझे,
तेरी मूरत है वो इन आँखों में,
तेरा रकीब नहीं!

तमाम उम्र जो संग तराशा मैंने,
वो निरा पत्थर ही निकला,
मेरा हबीब नहीं!

तिरा साथ दिल-ए-बीमार को सुकून देता है,
गमे-ए-दिल का अफ़साना ये मगर,
तू मेरा तबीब नहीं||

स्मार्ट शहर

आजकल स्मार्ट शहर का बड़ा हल्ला चल रहा है, स्मार्ट शहर, स्मार्ट शहर क्या होता है ये स्मार्ट शहर? कैसे बन जायेंगे स्मार्ट शहर भैय्या अपने देश में?
स्मार्ट शहर में हम आप ही रहेंगे ना की नए स्मार्ट नागरिकों की फैक्ट्री डाली हुई है कहीं मेक इन इंडिया के तहत | अरे भैय्या जब आप हम ही रहेंगे तो अभी जिस शहर में हैं वही स्मार्ट शहर क्यूँ नहीं बन गया अब तक| स्मार्ट शहर तो तब बनेगा भैय्ये जब शहर में व्यवस्था कायम रहे, सभी कार्य सुचारू रूप से और समय पर हो जाएँ और हम आप हैं कि व्यवस्था की तो @*#*&@ करने में विश्वास रखते हैं| तो भैय्ये स्मार्ट वार्ट शहर तो भूल जाओ और लगे रहो जो कर रहे हो उसमे, अपन का कुछ नहीं होने का.....

फिल्म सिकंदर-ए-आज़म में एक गीत राजेंद्र कृष्ण साहब ने लिखा था जो बहुत मशहूर भी है और देशभक्ति से ओतप्रोत भी है, उस गीत की प्रेरणा से स्मार्ट शहर के ख्याल पर एक गीत बना है| श्री राजेंद्र कृष्ण और संगीतकार श्री हंसराज बहल जी से माफ़ी मांगते हुए गीत पेश करता हूँ .... इस गीत के बनाने में मेरी छोटी बहन पद्मजा का भी योगदान है जिसके लिए उसे धन्यवाद.....
जहाँ चौक चौक पर गाय भैंसों का दिन भर रहता है बसेरा,
जहाँ गलियों और कूचों में है, बजबज कचरे का ढेरा,
वो स्मार्ट शहर है मेरा, वो स्मार्ट शहर है मेरा|
[जय (आपके शहर का नाम)]

ये धरती वो जहाँ जनता, हर नदी बनाये नाला,
जहाँ गंगा, जमुना, कावेरी, बहते बहते रुक जाये,
शीतल जल में उद्योग जहाँ हर दिशा से ज़हर मिलाये,
जहाँ प्रदुषण का काला बादल, मलिन करता सूर्य सुनहरा||१||
वो स्मार्ट शहर है मेरा .........

अलबेलों के इस शहर में जी, रास्तों के हाल निराले,
सब दौड़ रहे इन पर देखो, नियमों को जेब में डाले,
जहाँ व्यवस्था की ऐसी तैसी हर कोई चाहे करना,
जहाँ रास्तों पर गड्ढ़ों का हो बारह महीने का डेरा||२||
वो स्मार्ट शहर है मेरा......

जहाँ आसमान से बातें करते, मस्जिद, चर्च, शिवाले,
कुछ सोते अपने महलों में कुछ फुटपाथ पे रात बिता लें,
जहाँ गुंडों और दबंगों से नित आम आदमी हारे
जहाँ सत्य, अहिंसा धर्म का सब पीटें झूठा ढिंढोरा||३||
वो स्मार्ट शहर है मेरा......

Wednesday, August 12, 2015

एक अनुवाद



अभी कुछ दिनों पहले मेरे एक मित्र ने व्हाट्स अप पर एक लेख डाला किन्ही प्रशांत दीक्षित साहब ने लिखा हुआ| लेख मराठी भाषा में था और उसे पढ़ कर मुझे लगा की इसका ऐसी भाषा में अनुवाद होना चाहिए जो लोगों तक पहुँच सके और लोग उसे पढ़ें, समझें और उस पर विचार करें| मेरे लिए जो जन जन की भाषा है उस हिंदी में उसका अनुवाद मैं फेसबुक पर डाल रहा हूँ  और  इस लेख के वास्तविक लेखक  श्री प्रशांत दीक्षित जी से इसकी अनुमति इस पोस्ट के माध्यम से ही ले रहा हूँ| आशा है उन्हें मेरे हेतु को समझने के पश्चात्, आपत्ति  नहीं होगी| कृपया इस लेख का सारा श्रेय वास्तविक लेखक को ही दें मैं बस निमित्त मात्र इसे आप तक पहुंचा रहा हूँ ........
ग्रीस के दिवालिया होने का राज़  उसकी संस्कृति में ?
आकलनकर्ता – श्री प्रशांत दीक्षित

ग्रीस जैसे एक छोटे से देश ने सारी दुनिया की जान सांसत में डाल दी है| ग्रीस ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया है| इस आर्थिक संकट की जड़ें उसके गलत अर्थ व्यवहारों में है या ग्रीस सरकार के गलत आर्थिक संकल्पों में, ये सोचने वाली बात है|
गोल्डमन साक जैसी बड़ी अमेरिकन पूंजी निवेश कंपनी ने की हुई आकंड़ों की हेराफेरी ग्रीस के इस संकट का कारण बताया जाता है, जो ठीक भी है| फिर भी इस संकट की जड़ें गलत आर्थिक नीतियों से अधिक ग्रीस की सांस्कृतिक व्यवस्था में निहित हैं| 
प्रत्येक देश का अपना एक स्वभाव होता है, बहुसंख्यकों के इस स्वभाव से ही उस देश की संस्कृति का निर्माण होता है, कैसे जीना है, ये यह संस्कृति बताती है और उस के अनुसार उस देश के नागरिक, जीवन के चढ़ उतारों में अपना जीवन यापन करते हैं| संस्कृति के पाठ जबरदस्ती नहीं सिखाये जाते, पर, पाठशालाओं में, स्कूलों में सिखाये जाने वाले पाठों से अधिक,  संस्कृति के ये नियम मानव के मन मस्तिष्क पर अपना दूरगामी और स्थायी प्रभाव रखते हैं  और सहज रूप से इन नियमों पर अमल करने के लिए देश के बहुसंख्य नागरिकों को मजबूर करते हैं| घूस लेना बुरी बात है, बचपन से हरेक को यह बात स्कूलों में सिखाई जाती है, पर फिर भी पैसे सामने आये तो सत्ताधारी, अधिकारी घूस को ना नहीं करते| सहज भाव से घूस लेने की यही प्रवृत्ति संस्कृति होती है| संस्कृति को हमेशा , साहित्य, तत्वज्ञान, कला, विज्ञान आदि से जोड़ दिया जाता है परन्तु रोजमर्रा की जीवन पद्धति यही संस्कृति का मुख्य और सबसे महत्वपूर्ण अर्थ है| सामान्य जनता की सामान्य दिनचर्या में जो दिखता है वही संस्कृति है , किताबों में लिखा पुस्तकी ज्ञान नहीं|
रोजमर्रा की सामान्य दिनचर्या (अर्थात ही संस्कृति) ही देश को या तो विकास और वैभव के उच्चतम शिखर पर ले जाती है नहीं तो एकदम निम्नतर स्तर पर ला पटकती है| ओ’ब्रायन ब्रौउनी नामक एक विचारक ने संस्कृति के परिपेक्ष्य में दुनिया का विभाजन दो भागों में किया है| एक ‘रेड लाईट संस्कृति’ और दूसरी ‘ग्रीन लाईट संस्कृति’| “रेड लाईट संस्कृति’ याने नियमों का पालन करने वाली संस्कृति और नियम पालन से होने वाले सभी कष्टों को सहन करने वाली संस्कृति, चौराहे में सिग्नल लाल होने पर सिग्नल पर रुक जाने वाली संस्कृति| इसके विपरीत ‘ग्रीन लाईट संस्कृति’ मतलब नियमो को तोड़ने वाली, नियम तोड़ने पर अभिमान करने वाली, नियमों को ताक पर रखना सामर्थ्य और अधिकार मानने वाली संस्कृति|
दुनिया के सभी देशों को इस ‘रेड’ और ‘ग्रीन’ संस्कृतियों में विभाजित कर सकते हैं| देश के प्रदेशों या समाजों का भी ऐसा विभाजन संभव है| यूरोप आदि के परिपेक्ष्य में देखें तो इटली, स्पेन, ग्रीस, रशिया और कुछ हद तक फ़्रांस ‘ग्रीन लाईट संस्कृति’ में आते हैं, और वहीँ जर्मनी ‘रेड लाईट संस्कृति’ का ज्वलंत उदाहरण है| अमेरिका के कुछ  पूर्वी प्रान्त ‘रेड लाईट ‘ में आते हैं पर कैलिफोर्निया राज्य ‘ग्रीन लाईट’ में आता है| कैलिफोर्निया राज्य की अधिकतम महापलिकाएं आर्थिक अवनति पर मरणासन्न स्थिति में हैं|
हमारा देश “भारत” किस संस्कृति विभाग में आता है ये स्पष्ट करने की जरूरत नहीं, सुधि पाठक समझदार हैं| ‘ग्रीन लाईट संस्कृति’ में कष्ट करने की जरूरत नहीं होती, उत्तरदायित्व लेने का प्रश्न ही  नहीं होता| फ़टाफ़ट अमीर बनने की तमाम संधियाँ वहां होती हैं| इसके विपरीत ‘रेड लाईट” संस्कृति में काफी मेहनत करनी पड़ती है, स्वयं के गुणों को बढ़ाना पड़ता है, अपनी क्षमता सिद्ध करनी पड़ती है और इस सब के लिए पढ़ना पड़ता है, सीखना पड़ता है|ये सब करने में काफी वक्त लगता है और इतनी मेहनत के बाद उस मेहनत के बराबरी का पैसा मिलता ही है ऐसा नहीं है| फिर भी ‘रेड लाईट’ पद्धति से जीने की  हठधर्मिता  जिन देशों के नागरिकों ने दिखाई उन्होंने दुनिया पर अपना वर्चस्व कायम किया| ‘ग्रीन लाईट’ वाले देशों ने कुछ समय तो मौज मारी पर आखिरकार पतन की गर्त में चले गए|
 पिछली सदी में दो बार जर्मनी पूर्ण रूप से उजाड़ दिया गया पर फिर भी अपने दम पर फिर उठ खड़ा हुआ| १९४७ में जब भारत को स्वतंत्रता मिली तब जर्मनी आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से पूर्णतः खाक हो चुका था, पर अगले २५ सालों में जर्मनी एक महासत्ता की तरह उभरा और हमारा भारत आज भी उस शिखर पर पहुँचने के स्वप्न टटोलने में ही लगा है| विज्ञान और अभियांत्रिकी के पथ पर चलने के साथ ही जर्मन नागरिकों का मेहनती और नियमों को पालन करने वाला स्वभाव ही जर्मनी के वैभव का मुख्य कारण है| सदा सर्वदा कोई न कोई काम करते रहना, नित नए नए उत्पादों और पद्धतियों का निर्माण करते रहना, कोई देखे या न देखे सतत नियमों का पालन करना ये सारे गुण जर्मन नागरिकों के खून और रग रग में रचे बसे हैं और इसी के कारण जितने भी संकट आये जर्मनी ने हमेशा उन संकटों को मात दी और अपने वैभव के उत्तुंग शिखर को पुनः प्राप्त करता रहा | 
मायकल लेविस नामक एक पत्रकार ने कुछ वर्षों पूर्व दिवालिया होने की कगार पर आये कुछ देशों का दौरा किया और अपना विश्लेषण ‘बूमरैंग” नाम से प्रकाशित किताब में प्रस्तुत किया| ग्रीस पर संकट आएगा ये भविष्यवाणी लेविस ने उसी समय कर दी थी| ग्रीक जनता की जीवन पद्धति ही विनाश की और ले जाएगी ऐसा लेविस का ठोस मत था| सार्वजनिक पैसे का गबन कर के खुद अमीर होना और चैन की जिंदगी जीना ये ग्रीक जनता का स्वभाव था जिसके कारण कुछ दिन तो आर्थिक सम्पन्नता दिखाई पड़ी पर ये सम्पन्नता टिक नहीं पाएगी ऐसा लेविस का विश्लेषण था|
लेविस ने उस समय के ग्रीस का जो वर्णन किया है उस पर एक नज़र डालें: सरकारी नौकरी में गैर सरकारी नौकरी से तीन गुना वेतन मिलता है, पेंशन मिलती है और काम करने का कोई दबाव या सख्ती नहीं है| पुरुषों को ५५ और महिलाओं को ५० साल की उम्र के बाद भरपूर सेवा निवृत्ति लाभ मिलने लगते हैं| कितनी भी कमाई हो, उद्द्योगपतियों और व्यवसाईयों को मामूली सा कर देना होता है, और कर चोरी कर भी ली तो भी कोई नुकसान नहीं क्यूंकि ऐसे मामले अदालतों में पंद्रह, बीस साल तो खिंचते ही हैं और तब तक व्यवसाय,  उद्योग  अबाध गति से चलता ही रहता है| सरकारी अनुदान और खैरात जनता का जन्म सिद्ध अधिकार है ऐसी सोच जनता की है| भ्रष्टाचार ने देश को गर्त मे पहुंचा दिया है ये जुमला हरेक की जुबां पर ब्रह्मवाक्य की तरह है पर भ्रष्टाचार का जिम्मेदार अगला ही है, ऐसा ही हरेक मानता है| सरकारी नौकरों के वेतन और सेवानिवृत्ति के बोझ ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है|  स्कूलों में शिक्षकों की बेशुमार भर्तियाँ हो रही हैं और उनको वेतन भी अच्छा खासा है, फिर भी सरकारी स्कूलों में स्तरीय शिक्षा के आभाव में विद्यार्थी गैर सरकारी स्कूलों और कोचिंग आदि के सहारे ही पढ़ रहे हैं| सरकारी परिवहन व्यवस्था पटरी से उतरी हुई है परन्तु उसके कर्मचारियों का वेतन मिल रहा है और हर साल वेतन वृद्धि भी हो रही है| हरेक सरकारी संगठना घाटे में है पर कर्मचारियों  को मिलने वाला वेतन, सुविधाएँ बदस्तूर जारी हैं|  सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार भरपूर पैसा खर्च कर रही है पर फिर भी स्वास्थ्य सेवा दम तोडती नजर आती है क्यूंकि उस पैसे से आया साधन, सरकारी डाक्टरों, नर्सों और अन्य कर्मचारियों के घरों, नर्सिंग होमों में चला जाता है| भ्रष्टाचार का खुलासा करने वाले का तबादला हो जाता है| सरकारी तंत्र और सत्ताधीश, गुरुओं, मठाधीशों, बाबाओं के चरण कमल पूजते हैं और इन सब बाबाओं, मठाधीशों को भरपूर सरकारी मदद और अनुदान मिलते हैं|
ये वर्णन ग्रीस का है या भारत का ?
ये ग्रीन लाईट संस्कृति है, ग्रीक जनता के नस नस में समाई हुई| भारत की अवस्था ग्रीस जैसी नहीं होगी, ऐसा कहा जा सकता है,क्यूंकि अर्थ व्यवस्था के आंकड़े आशादायक हैं| लेकिन ग्रीस ने भी अपना सकल घाटा जी डी पी का सिर्फ तीन(३) प्रतिशत ही दिखाया था जबकि असल घाटे का प्रतिशत पंद्रह(१५) था , और इसी पर दुनिया विश्वास करती रही|  जरूरी है हम भारतीय आंकड़ों पर इठलाना बंद करें क्यूंकि आंकड़े रेड लाईट संस्कृति के  भले ही होंगे पर अपना मूल स्वभाव तो ग्रीन लाईट संस्कृति वाला ही है|

दिल जो ना कह सका



दिल जो ना कह सका
पहचाना भैय्ये, अरे अपन वही सपने वाले अपने राम!   अब तुम कहोगे की क्या भैय्ये बड़े दिनों बाद ! ईद भी निकल गई और तुम्हारा दीदार नहीं,गधे के सर से सींग की तरह गायब हो गए| तो भैय्या कहना बस इत्ता है की जिंदगी की कुछ जरुरी और कुछ ऐंवे कुत्ती चीजो में फंसा रहा इसीलिए दरसन नई हुए,वरना ऐसी कोई बात नहीं| अब तुम कहोगे की जरुरी तो ठीक है पर ये कुत्ती चीज़ें क्या हैं?  अजी अपनी जिंदगी में बीबी,बच्चे, सगे संबधी और मित्र छोड़ कर सारी कुत्ती चीज़ों की भरमार है| काम धंधा जो करते हैं उसमे दिल लगता नहीं पर किये जा रहे हैं कोल्हू से बंधे बैल की तरह, बस इसी बेदिली का असर है की अपन में भी कुत्तापना आता जा रहा है भैय्ये| अब कुत्तापन मतलब ये कि कुत्ते की वफ़ादारी से धंधा कर रहे हैं, वफादारी भी धंधे से नहीं अपन के भागीदारों से, काम करने वाले करमचारियों से, उनकी रोजी चलती रहे इसीलिए, पड़े हुए हैं बेदिली से घर छोड़ कर गली में| अब तो साहब, भौंकना भी सुरु हो गया है कुत्तों की तरह, थोड़े दिन बाद शायद काटने भी लगें| खैर छोडो ये सब, मुद्दे की बात ये है की आज अपन ने ठान लिया है की दिल में जो बातें हैं उन्हें उगल ही देंगे सब के सामने|
तो साहब अच्छे दिनों के इंतज़ार की इन्तेहां होने आई पर अच्छे दिन हैं की आते ही नहीं| अपन ने तो सोचा था की २०१५ में सुखई सुख होगा, दुःख के बदल छंट जायेंगे पर भैय्ये यहाँ तो दुःख का बदल छंटने की बजाय फट गया है और देश बस नारों और वादों की बाढ़ में डूबता नज़र आ रहा है| कहीं कोई काम ठीक से हो ही नहीं पा रहा, स्वच्छ भारत का सपना सपना ही रह गया, वास्तविक स्वच्छता , वैचारिक स्वच्छता, नैतिक स्वच्छता आदि आदि श्रेणियों में बंट कर ये सपना और धूसर ही होता दिखता है| आप अपने आस पास कहीं भी नज़र दौड़ा लें, कचरा, गन्दगी, मक्खियाँ, मच्छर, बजबजाती नालियां, बस यही है चहुंओर| आम जनता में वैचारिक और नैतिक स्वच्छता का तो नामोनिशान नहीं है| अपन ने सोचा था की भैय्ये जनता ने बड़ी राष्ट्रभक्ति की बात करने वाली सरकार चुनी है तो ये जनता भी राष्ट्रभक्ति और देशप्रेम से ओतप्रोत हो कर कुछ प्रलयंकारी बदलाव ले आएगी और अपना देश अपन को भी प्यारा लगने लगेगा, पर साहब ये बातें तो झूठी निकलीं, निरी बकवास| कोई सरोकार नहीं है भैय्ये देश से, बस अपन अपन का सोचने वाली जनता है इस देस की| स्वच्छता अभियान के फोटू छप गए , भूल जाओ, कला धन वापस आया  नहीं, भूल जाओ, भ्रष्टाचारियों को सजा नहीं मिली, भूल जाओ, संसद नहीं चल रही, भूल जाओ, सरे काम अटके पड़े हैं, भूल जाओ, अजी स्वच्छता अभियान वास्तविक रूप से असफल रहा हो पर प्रतीकात्मक जीत तो हो गई इस अभियान की| कैसे? अरे भैय्ये, चुनाव के पहले के सब सवाल, सब चिंताएं, जनता के दिल दिमाग से स्वच्छ हो गईं| एक दम कोरी पटिया !
चुनाव के समय मोदी जी के नाम ने बवाल मचा रखा था अब एक साल बाद उन्ही की नामराशी वाले एक आदमी ने मचा रखा है| इस एक आदमी की खातिर रोज के अरबों रुपये पानी में जा रहे है, संसद नहीं चलने के कारण, पर जनता है की चुप बैठी है| गिने चुने ४०/५० लोग ५०० सदस्यों वाली संसद को बंधक बनाये हुए हैं, काम ठप्प किये हुए हैं पर जनता है की चुप बैठी है|एक अदद मंत्री के इस्तीफे की मांग पर आकाश पाताल एक हो रहा है, सैकड़ों विधेयक पेश होने हैं पर हो नहीं पा रहे, पर जनता है की चुप बैठी है| सभाओं में अत्यंत मुखर अपने प्रधानमंत्री होठ सिले बैठे हैं पर जनता है की चुप बैठी है|
जनता बोल रही है तो किस पर, एक आतंकवादी को मिली फांसी पर, ढोंगी बाबाओं और माताओं की पोलखोल पर, पोर्न पर लगे प्रतिबन्ध पर|
पोर्न प्रतिबन्ध से याद आया की भैय्ये इसके विरोध में तो जैसे सैलाब उमड़ आया है, अपन को तो लगा की भैय्ये जैसे लोगों की सांस लेने पर प्रतिबन्ध लग गया हो| सारी जनता छटपटाने लगी, चिल्लाने लगी की उसकी आज़ादी छीन ली गई| अपन को नहीं पता था की भैय्ये पोर्न देखना मतलब रोज खा सकने वाली आलू की भुंजिया की तरह जरुरी है हमारे देश की जनता के लिए| कितनी शर्म की बात है की जनता के दिल में आज़ादी का मतलब बेरोकटोक पोर्न देखना ही रह गया है| बाल गंगाधर तिलक ने बहुत सही कहा था गाँधी जी को, कि, बिना रक्त बहाए मिली हुई  स्वतंत्रता का कोई मोल नहीं रहेगा| और वही हुआ आज अपन को स्वतंत्रता का कोई मोल नहीं है| अपन का देश उसकी जनता से ही हार रहा है, इसे किसी दुश्मन की क्या जरुरत है भैय्ये|
देश में स्मार्ट सिटी बनाने के प्रस्ताव बनाये जा रहे हैं, पर भैय्ये स्मार्ट सिटी से पहले स्मार्ट नागरिक बनाओ जो उस स्मार्ट सिटी को स्मार्ट रख सकें वरना अपन तो लंडन को भी मोकामा घाट बनाने का माद्दा रखते हैं|

                                                                           अवी घाणेकर
                                                                           ११.०८.२०१५