जिंदगी भी अजीब शै है भय्ये जब जिस वक्त जिस चीज़ की जरूरत होती है उसे हमसे दूर कर देती है| अब देखिये जवानी में समय की चाहत थी तो वो नहीं था अब बुढ़ापे में जोश की जरूरत है तो वो नहीं है| जवानी गुजर गई जिंदगी को सजाने संवारने में और निन्यानबे के फेर में, जब तक इस आपाधापी से फारिग हुए तो आ गया बुढ़ापा| अब अगर चाहें कि चलो अब जिंदगी के मजे लें तो भैय्ये अब कहीं पैर नहीं काम करता, पैर ठीक है तो पेट की मारामारी है, पेट सही है तो साँस फूलती है, सांस भी सही है तो दिल है की मानता नहीं| अजी साहब अजीब पशोपेश में हैं अपनेराम, करें तो क्या करें|
खैर, जब कुछ हो नहीं पाता तो बैठे हैं हाथ पर हाथ धरे और कर रहें हैं याद पुराने दिनों को| ऐसा होता तो कैसा होता, ये करते तो वो होता, पर अब अपनी पुरानी गलतियों और चूके हुए मौकों पर पछताने के अलावा कुछ हासिल नहीं|
अपनेराम को हरेक बात की बड़ी जल्दी रहा करती थी| १९ की बाली उमर में, जब मसें भी नहीं भीगीं थीं, घर से भाग कर कमाने के फेर में पड गए| इससे पहले १७ की उमर में ही एक लड़की को दिल दे बैठे और जनम जनम साथ निभाने के वादे कर डाले| अब साहब इतनी जल्दी जल्दी सब चक्कर घूमने लगे की २४ आते आते शादी भी कर डाली|
"मैं २४ बरस का वो २३ बरस की, एक दुसरे से जरा दूर रहना, कुछ हो गया तो फिर ना कहना|"
और भैय्ये ये तो होना ही था अब जब सोचा की भैय्ये आराम से शादी शुदा जिंदगी का मजा लेंगे २/४ साल, पर हड़बड़ी और उतावलेपन की आदत यहाँ भी दगा दे गई और २५ के होते न होते २ बच्चियों( जुड़वां थी भैय्ये, कोई बेकार बात न सोचो) के बाप बन गए| यहाँ सब गड़बड़ हो गया, भले ही शादी कर ली थी पर अकल तो भैया आते आते ही आती है, अरे वही जिसे अंग्रेजी में “मैच्योरिटी” कहते है| तो भैय्ये अकल की कमी और हद दर्जे की हड़बड़ी, अपने राम उन नवजात बच्चियों से ही डाह करने लगे| अब तो रोज दिन बीबी से चिकचिक और उन बच्चियों से जलन यही रवैय्या हो गया अपनेराम का| जवानी का जोश ऐसे जोर मार रहा था की अपनी बच्चियां राह का रोड़ा लगती थीं, अब बुढ़ापे में जब अपनी बच्चियां अपन से दूर हैं तो रोज उनकी चिंता में मिटे जा रहे हैं| यही समझ उस समय जिंदगी ने दी होती तो .... पर ये साली जिंदगी है ही ऐसी काईंयाँ की जब जरूरत है तब उस बात को कहाँ छुपा कर रख देती है राम जाने | वो तो अपनेराम की बीबी को जरा जल्दी समझ आ गई थी इसलिए अपन का रिश्ता टिका रहा भैय्ये वगरना तो कोई दूसरी होती तो बिस्तर गोल कर के कब की भाग गई होती|
खैर, जब कुछ हो नहीं पाता तो बैठे हैं हाथ पर हाथ धरे और कर रहें हैं याद पुराने दिनों को| ऐसा होता तो कैसा होता, ये करते तो वो होता, पर अब अपनी पुरानी गलतियों और चूके हुए मौकों पर पछताने के अलावा कुछ हासिल नहीं|
अपनेराम को हरेक बात की बड़ी जल्दी रहा करती थी| १९ की बाली उमर में, जब मसें भी नहीं भीगीं थीं, घर से भाग कर कमाने के फेर में पड गए| इससे पहले १७ की उमर में ही एक लड़की को दिल दे बैठे और जनम जनम साथ निभाने के वादे कर डाले| अब साहब इतनी जल्दी जल्दी सब चक्कर घूमने लगे की २४ आते आते शादी भी कर डाली|
"मैं २४ बरस का वो २३ बरस की, एक दुसरे से जरा दूर रहना, कुछ हो गया तो फिर ना कहना|"
और भैय्ये ये तो होना ही था अब जब सोचा की भैय्ये आराम से शादी शुदा जिंदगी का मजा लेंगे २/४ साल, पर हड़बड़ी और उतावलेपन की आदत यहाँ भी दगा दे गई और २५ के होते न होते २ बच्चियों( जुड़वां थी भैय्ये, कोई बेकार बात न सोचो) के बाप बन गए| यहाँ सब गड़बड़ हो गया, भले ही शादी कर ली थी पर अकल तो भैया आते आते ही आती है, अरे वही जिसे अंग्रेजी में “मैच्योरिटी” कहते है| तो भैय्ये अकल की कमी और हद दर्जे की हड़बड़ी, अपने राम उन नवजात बच्चियों से ही डाह करने लगे| अब तो रोज दिन बीबी से चिकचिक और उन बच्चियों से जलन यही रवैय्या हो गया अपनेराम का| जवानी का जोश ऐसे जोर मार रहा था की अपनी बच्चियां राह का रोड़ा लगती थीं, अब बुढ़ापे में जब अपनी बच्चियां अपन से दूर हैं तो रोज उनकी चिंता में मिटे जा रहे हैं| यही समझ उस समय जिंदगी ने दी होती तो .... पर ये साली जिंदगी है ही ऐसी काईंयाँ की जब जरूरत है तब उस बात को कहाँ छुपा कर रख देती है राम जाने | वो तो अपनेराम की बीबी को जरा जल्दी समझ आ गई थी इसलिए अपन का रिश्ता टिका रहा भैय्ये वगरना तो कोई दूसरी होती तो बिस्तर गोल कर के कब की भाग गई होती|
खैर, जो होना था हुआ और इस सब चक्कर में अपनेराम का कवी ह्रदय अचानक समस्या का समाधान ले आया और एक कविता बन गई जिससे सारे सवाल ही हल हो गए या ये कहें की भैय्ये अपनेराम “मैच्योर” हो गये| अब तो आप समझ ही गए होंगे की अपनेराम ये सारी भूमिका उस कविता को सुनाने के लिए ही बाँध रहे थे तो भैय्ये अगर आप समझ ही गए हैं तो फिर देर काहे की .....
वो जो हममे तुममे प्यार था, वो कहाँ गया, वो गया कहाँ,
वो प्यार वक्त के बीतते , रहा नहीं अब बचा कहाँ|
वो जो हममे तुममे प्यार था, वो कहाँ गया, वो गया कहाँ,
वो प्यार वक्त के बीतते , रहा नहीं अब बचा कहाँ|
१) बात पहले की कुछ और हुआ करती थी,
मैं तुझपे औ तू मुझपे मरा करती थी,
घूमते फिरते थे सपनों के शहर में या रब,
दिन ख्वाबों में औ रात आँखों में कटा करती थी,
इतने मसरूफ हम खुद में ही रहा करते थे,
सारी दुनिया तब हम तुमसे जला करती थी|
मैं तुझपे औ तू मुझपे मरा करती थी,
घूमते फिरते थे सपनों के शहर में या रब,
दिन ख्वाबों में औ रात आँखों में कटा करती थी,
इतने मसरूफ हम खुद में ही रहा करते थे,
सारी दुनिया तब हम तुमसे जला करती थी|
२) जाने किस लम्हे फिर जिंदगी ने दी दस्तक,
प्यार सारा ही बिखर गया यक बक,
दो किनारों पे भौंचक से खड़े थे हम तुम,
दरमियाँ फ़र्ज़ का एक समुन्दर था|
प्यार सारा ही बिखर गया यक बक,
दो किनारों पे भौंचक से खड़े थे हम तुम,
दरमियाँ फ़र्ज़ का एक समुन्दर था|
३) तू तो मशगूल हुई अपने कामों में,
परवरिश बच्चों की, बड़ा होना उनका,
उनकी बीमारी, उन्ही का रोना ,
जैसे मैं कुछ भी नहीं था तेरी दुनिया में|
परवरिश बच्चों की, बड़ा होना उनका,
उनकी बीमारी, उन्ही का रोना ,
जैसे मैं कुछ भी नहीं था तेरी दुनिया में|
४) मैं कुढ़ा करता था उनकी किस्मत पे,
वो, जो मेरे भी तो बच्चे ही हुआ करते थे,
फिर अचानक ही दिल में एक आया ख्याल,
हल हो गए एक झटके में फिर सारे सवाल|
वो, जो मेरे भी तो बच्चे ही हुआ करते थे,
फिर अचानक ही दिल में एक आया ख्याल,
हल हो गए एक झटके में फिर सारे सवाल|
५) ख़त्म हो गया था वो जमाना अपना,
अब इस नई नस्ल को ही हमें संजोना था,
वो प्यार जो चुक गया सा लगता था,
इस नई नस्ल के साथ ही उसे पाना था|
अब इस नई नस्ल को ही हमें संजोना था,
वो प्यार जो चुक गया सा लगता था,
इस नई नस्ल के साथ ही उसे पाना था|
६) प्यार इनपे ही लुटा कर जानम,
अपने माज़ी को जिला रखना था,
उस समुन्दर के किनारों को मिलाने के लिए,
बस इसी प्यार के पुल को बना रखना था|
अपने माज़ी को जिला रखना था,
उस समुन्दर के किनारों को मिलाने के लिए,
बस इसी प्यार के पुल को बना रखना था|
अवी घाणेकर