तो अब तू भी रूठ गया मुझसे,
मैंने किस्मत से तो पाया था तुझे,
तू मेरा नसीब नहीं!
क्या कहूँ , कैसे समझाऊं तुझे,
तेरी मूरत है वो इन आँखों में,
तेरा रकीब नहीं!
तमाम उम्र जो संग तराशा मैंने,
वो निरा पत्थर ही निकला,
मेरा हबीब नहीं!
तिरा साथ दिल-ए-बीमार को सुकून देता है,
गमे-ए-दिल का अफ़साना ये मगर,
तू मेरा तबीब नहीं||
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