अभी कुछ दिनों पहले मेरे एक मित्र ने व्हाट्स अप पर एक लेख डाला किन्ही
प्रशांत दीक्षित साहब ने लिखा हुआ| लेख मराठी भाषा में था और उसे पढ़ कर मुझे लगा
की इसका ऐसी भाषा में अनुवाद होना चाहिए जो लोगों तक पहुँच सके और लोग उसे पढ़ें,
समझें और उस पर विचार करें| मेरे लिए जो जन जन की भाषा है उस हिंदी में उसका अनुवाद
मैं फेसबुक पर डाल रहा हूँ और इस लेख के वास्तविक लेखक श्री प्रशांत दीक्षित जी से इसकी अनुमति इस
पोस्ट के माध्यम से ही ले रहा हूँ| आशा है उन्हें मेरे हेतु को समझने के पश्चात्,
आपत्ति नहीं होगी| कृपया इस लेख का सारा
श्रेय वास्तविक लेखक को ही दें मैं बस निमित्त मात्र इसे आप तक पहुंचा रहा हूँ
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ग्रीस के दिवालिया होने का राज़ उसकी संस्कृति में ?
आकलनकर्ता – श्री प्रशांत दीक्षित
ग्रीस जैसे एक छोटे से देश ने सारी दुनिया की जान सांसत में डाल दी है| ग्रीस
ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया है| इस आर्थिक संकट की जड़ें उसके गलत अर्थ
व्यवहारों में है या ग्रीस सरकार के गलत आर्थिक संकल्पों में, ये सोचने वाली बात
है|
गोल्डमन साक जैसी बड़ी अमेरिकन पूंजी निवेश कंपनी ने की हुई आकंड़ों की हेराफेरी
ग्रीस के इस संकट का कारण बताया जाता है, जो ठीक भी है| फिर भी इस संकट की जड़ें
गलत आर्थिक नीतियों से अधिक ग्रीस की सांस्कृतिक व्यवस्था में निहित हैं|
प्रत्येक देश का अपना एक स्वभाव होता है, बहुसंख्यकों के इस स्वभाव से ही उस
देश की संस्कृति का निर्माण होता है, कैसे जीना है, ये यह संस्कृति बताती है और उस
के अनुसार उस देश के नागरिक, जीवन के चढ़ उतारों में अपना जीवन यापन करते हैं|
संस्कृति के पाठ जबरदस्ती नहीं सिखाये जाते, पर, पाठशालाओं में, स्कूलों में
सिखाये जाने वाले पाठों से अधिक, संस्कृति
के ये नियम मानव के मन मस्तिष्क पर अपना दूरगामी और स्थायी प्रभाव रखते हैं और सहज रूप से इन नियमों पर अमल करने के लिए
देश के बहुसंख्य नागरिकों को मजबूर करते हैं| घूस लेना बुरी बात है, बचपन से हरेक
को यह बात स्कूलों में सिखाई जाती है, पर फिर भी पैसे सामने आये तो सत्ताधारी,
अधिकारी घूस को ना नहीं करते| सहज भाव से घूस लेने की यही प्रवृत्ति संस्कृति होती
है| संस्कृति को हमेशा , साहित्य, तत्वज्ञान, कला, विज्ञान आदि से जोड़ दिया जाता
है परन्तु रोजमर्रा की जीवन पद्धति यही संस्कृति का मुख्य और सबसे महत्वपूर्ण अर्थ
है| सामान्य जनता की सामान्य दिनचर्या में जो दिखता है वही संस्कृति है , किताबों
में लिखा पुस्तकी ज्ञान नहीं|
रोजमर्रा की सामान्य दिनचर्या (अर्थात ही संस्कृति) ही देश को या तो विकास और
वैभव के उच्चतम शिखर पर ले जाती है नहीं तो एकदम निम्नतर स्तर पर ला पटकती है|
ओ’ब्रायन ब्रौउनी नामक एक विचारक ने संस्कृति के परिपेक्ष्य में दुनिया का विभाजन
दो भागों में किया है| एक ‘रेड लाईट संस्कृति’ और दूसरी ‘ग्रीन लाईट संस्कृति’| “रेड
लाईट संस्कृति’ याने नियमों का पालन करने वाली संस्कृति और नियम पालन से होने वाले
सभी कष्टों को सहन करने वाली संस्कृति, चौराहे में सिग्नल लाल होने पर सिग्नल पर
रुक जाने वाली संस्कृति| इसके विपरीत ‘ग्रीन लाईट संस्कृति’ मतलब नियमो को तोड़ने वाली,
नियम तोड़ने पर अभिमान करने वाली, नियमों को ताक पर रखना सामर्थ्य और अधिकार मानने
वाली संस्कृति|
दुनिया के सभी देशों को इस ‘रेड’ और ‘ग्रीन’ संस्कृतियों में विभाजित कर सकते
हैं| देश के प्रदेशों या समाजों का भी ऐसा विभाजन संभव है| यूरोप आदि के
परिपेक्ष्य में देखें तो इटली, स्पेन, ग्रीस, रशिया और कुछ हद तक फ़्रांस ‘ग्रीन
लाईट संस्कृति’ में आते हैं, और वहीँ जर्मनी ‘रेड लाईट संस्कृति’ का ज्वलंत उदाहरण
है| अमेरिका के कुछ पूर्वी प्रान्त ‘रेड
लाईट ‘ में आते हैं पर कैलिफोर्निया राज्य ‘ग्रीन लाईट’ में आता है| कैलिफोर्निया
राज्य की अधिकतम महापलिकाएं आर्थिक अवनति पर मरणासन्न स्थिति में हैं|
हमारा देश “भारत” किस संस्कृति विभाग में आता है ये स्पष्ट करने की जरूरत
नहीं, सुधि पाठक समझदार हैं| ‘ग्रीन लाईट संस्कृति’ में कष्ट करने की जरूरत नहीं
होती, उत्तरदायित्व लेने का प्रश्न ही
नहीं होता| फ़टाफ़ट अमीर बनने की तमाम संधियाँ वहां होती हैं| इसके विपरीत
‘रेड लाईट” संस्कृति में काफी मेहनत करनी पड़ती है, स्वयं के गुणों को बढ़ाना पड़ता
है, अपनी क्षमता सिद्ध करनी पड़ती है और इस सब के लिए पढ़ना पड़ता है, सीखना पड़ता है|ये
सब करने में काफी वक्त लगता है और इतनी मेहनत के बाद उस मेहनत के बराबरी का पैसा
मिलता ही है ऐसा नहीं है| फिर भी ‘रेड लाईट’ पद्धति से जीने की हठधर्मिता
जिन देशों के नागरिकों ने दिखाई उन्होंने दुनिया पर अपना वर्चस्व कायम
किया| ‘ग्रीन लाईट’ वाले देशों ने कुछ समय तो मौज मारी पर आखिरकार पतन की गर्त में
चले गए|
पिछली सदी में दो बार जर्मनी पूर्ण
रूप से उजाड़ दिया गया पर फिर भी अपने दम पर फिर उठ खड़ा हुआ| १९४७ में जब भारत को
स्वतंत्रता मिली तब जर्मनी आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से पूर्णतः खाक हो चुका था,
पर अगले २५ सालों में जर्मनी एक महासत्ता की तरह उभरा और हमारा भारत आज भी उस शिखर
पर पहुँचने के स्वप्न टटोलने में ही लगा है| विज्ञान और अभियांत्रिकी के पथ पर
चलने के साथ ही जर्मन नागरिकों का मेहनती और नियमों को पालन करने वाला स्वभाव ही
जर्मनी के वैभव का मुख्य कारण है| सदा सर्वदा कोई न कोई काम करते रहना, नित नए नए
उत्पादों और पद्धतियों का निर्माण करते रहना, कोई देखे या न देखे सतत नियमों का
पालन करना ये सारे गुण जर्मन नागरिकों के खून और रग रग में रचे बसे हैं और इसी के
कारण जितने भी संकट आये जर्मनी ने हमेशा उन संकटों को मात दी और अपने वैभव के उत्तुंग
शिखर को पुनः प्राप्त करता रहा |
मायकल लेविस नामक एक पत्रकार ने कुछ वर्षों पूर्व दिवालिया होने की कगार पर
आये कुछ देशों का दौरा किया और अपना विश्लेषण ‘बूमरैंग” नाम से प्रकाशित किताब में
प्रस्तुत किया| ग्रीस पर संकट आएगा ये भविष्यवाणी लेविस ने उसी समय कर दी थी|
ग्रीक जनता की जीवन पद्धति ही विनाश की और ले जाएगी ऐसा लेविस का ठोस मत था|
सार्वजनिक पैसे का गबन कर के खुद अमीर होना और चैन की जिंदगी जीना ये ग्रीक जनता
का स्वभाव था जिसके कारण कुछ दिन तो आर्थिक सम्पन्नता दिखाई पड़ी पर ये सम्पन्नता
टिक नहीं पाएगी ऐसा लेविस का विश्लेषण था|
लेविस ने उस समय के ग्रीस का जो वर्णन किया है उस पर एक नज़र डालें: सरकारी
नौकरी में गैर सरकारी नौकरी से तीन गुना वेतन मिलता है, पेंशन मिलती है और काम
करने का कोई दबाव या सख्ती नहीं है| पुरुषों को ५५ और महिलाओं को ५० साल की उम्र
के बाद भरपूर सेवा निवृत्ति लाभ मिलने लगते हैं| कितनी भी कमाई हो, उद्द्योगपतियों
और व्यवसाईयों को मामूली सा कर देना होता है, और कर चोरी कर भी ली तो भी कोई नुकसान
नहीं क्यूंकि ऐसे मामले अदालतों में पंद्रह, बीस साल तो खिंचते ही हैं और तब तक व्यवसाय, उद्योग
अबाध गति से चलता ही रहता है| सरकारी अनुदान और खैरात जनता का जन्म सिद्ध अधिकार है ऐसी सोच जनता की है| भ्रष्टाचार ने देश को गर्त मे पहुंचा दिया है ये जुमला हरेक की जुबां पर
ब्रह्मवाक्य की तरह है पर भ्रष्टाचार का जिम्मेदार अगला ही है, ऐसा ही हरेक मानता
है| सरकारी नौकरों के वेतन और सेवानिवृत्ति के बोझ ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी
है| स्कूलों में शिक्षकों की बेशुमार
भर्तियाँ हो रही हैं और उनको वेतन भी अच्छा खासा है, फिर भी सरकारी स्कूलों में
स्तरीय शिक्षा के आभाव में विद्यार्थी गैर सरकारी स्कूलों और कोचिंग आदि के सहारे
ही पढ़ रहे हैं| सरकारी परिवहन व्यवस्था पटरी से उतरी हुई है परन्तु उसके
कर्मचारियों का वेतन मिल रहा है और हर साल वेतन वृद्धि भी हो रही है| हरेक सरकारी
संगठना घाटे में है पर कर्मचारियों को मिलने
वाला वेतन, सुविधाएँ बदस्तूर जारी हैं| सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार भरपूर पैसा
खर्च कर रही है पर फिर भी स्वास्थ्य सेवा दम तोडती नजर आती है क्यूंकि उस पैसे से
आया साधन, सरकारी डाक्टरों, नर्सों और अन्य कर्मचारियों के घरों, नर्सिंग होमों
में चला जाता है| भ्रष्टाचार का खुलासा करने वाले का तबादला हो जाता है| सरकारी
तंत्र और सत्ताधीश, गुरुओं, मठाधीशों, बाबाओं के चरण कमल पूजते हैं और इन सब
बाबाओं, मठाधीशों को भरपूर सरकारी मदद और अनुदान मिलते हैं|
ये वर्णन ग्रीस का है या भारत का ?
ये ग्रीन लाईट संस्कृति है, ग्रीक जनता के नस नस में समाई हुई| भारत की अवस्था
ग्रीस जैसी नहीं होगी, ऐसा कहा जा सकता है,क्यूंकि अर्थ व्यवस्था के आंकड़े आशादायक
हैं| लेकिन ग्रीस ने भी अपना सकल घाटा जी डी पी का सिर्फ तीन(३) प्रतिशत ही दिखाया
था जबकि असल घाटे का प्रतिशत पंद्रह(१५) था , और इसी पर दुनिया विश्वास करती
रही| जरूरी है हम भारतीय आंकड़ों पर इठलाना
बंद करें क्यूंकि आंकड़े रेड लाईट संस्कृति के भले ही होंगे पर अपना मूल स्वभाव तो ग्रीन लाईट
संस्कृति वाला ही है|
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