Thursday, October 27, 2016

एक और ख़त बिटिया के नाम

ऐश्वर्या मेरा तोता २१ का हो रहा है 16 तारिख को| क्यूंकि मैं उस दिन ट्रेवल कर रहा हूँगा इसलिए आज ही उसे ढेरों आशीर्वाद और जन्मदिन की शुभकामनाएं..........
ऐशू गोड गैशु
तू २१ साल की हो गई पता ही नहीं चला रे! मुझे तो तू अभी भी वही छुटकू सी गुडिया लगती है, तेरी बदमाशियां, तेरा भोला पन आँखों के सामने एक फिल्म चलने लगती है तेरी याद आते ही|
तू जब पैदा हुई तो मैं और तेरी आई एक मिलीजुली सी ख़ुशी और चिंता में घिर गए थे| अक्सर होता ये है कि मां बाप बच्चों की पैदाईश का समय प्लान कर लेते हैं पर हम दोनों कुछ प्लान व्लान नहीं कर पाए या ये कहें की प्लान नहीं किया| अप्पू ताई साडे पांच साल कि होगी जब एक दिन तेरे आने की आहट आई को महसूस हुई| इस समय तक हम दोनों कुछ सम्हल गए थे और हमने तेरे आने का इन्तजार शुरू कर दिया|
16 ऑक्टोबर 1995 नवरात्र के समय तू एक देवी सी हमारे घर आई| हाँ देवी जैसी रे, तेरी आंखें एकदम किसी देवी की तरह ऊपर की ओर उठी हुई थीं, तेरा रूप एकदम दुर्गा देवी के चित्र की तरह था, अस्पताल में सब अचंभित आई को कहने लगे की आपके घर लक्षी आई है और तभी तेरा नाम मैंने सोच लिया “ ऐश्वर्या” , ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी, दुर्गा का एक और नाम|
लोग कहते हैं की ये नाम मैंने उस समय मिस वर्ल्ड बनी ऐश्वर्या राय के नाम पर रखा था पर ऐसा नहीं था ये नाम तेरी आंखों और तेरे रूप के कारण था एक देवी का नाम और अपूर्वा से मिलता जुलता|
उस समय तेरे चेहरे को देख कर मैं तो बहुत खुश था पर फिर पता चला की तेरी आंखें किसी देवी तरह किसी चमत्कार के कारण नहीं कुछ मेडिकल प्रोब्लेम्स के कारण हैं| इसे शायद सिन ओस्टोसिस कहते हैं| तेरे माथे और सर की सारी हड्डियाँ जुडी हुई हैं और जैसा की हर नार्मल बच्चे का होता है उसके सर के ऊपर के हिस्से की हड्डियाँ जुडी नहीं होती, वैसा नहीं था| तेरे चेहरे और सर को समय के साथ बड़ा होने के लिए कोई जगह नहीं थी और इस लिए तेरा माथा आगे की और बढ़ रहा था जिससे तेरी आंखें सीधी होने की बजाय ऊपर की ओर चली गईं थीं| मैं पागल सोच रहा था की मेरे घर देवी का चमत्कार हो गया पर अब पता चला की तू तो बहुत क्रिटिकल सिचुएशन में है| अब शुरू हुई तेरे माथे को ठीक करने की क़वायद, दिन रात डॉक्टरों से चर्चा और निदान ढून्ढने की जद्दोजहद|
तू साढ़े तीन महीने की हो गई और तेरा माथा अब कोनिकल आकार में आगे की ओर बढ़ने लगा| इसी समय, एक नामी न्यूरो सर्जन डॉ कारापुरकर का पता चला जो मुंबई के के. इ. ऍम. हॉस्पिटल में थे, और बच्चों के ऑपरेशन करने में अव्वल दर्जे के सर्जन थे| हमने संपर्क किया और तुझे ले कर चल पड़े बम्बई| सारे इन्वेस्टीगेशन होने के बाद उन्होंने ऑपरेशन का समय तय किया और हमें बताया की तेरा पूरा माथा काट कर हटाया जायेगा, और तेरे चेहरे की हड्डियों से ही तेरे माथे को फिर नया आकार दिया जायेगा| तेरी उन देवी जैसी आँखों को भी सीधा कर के ठीक किया जायेगा| ये सब हम दोनों के लिये भयंकर था, हमारी इत्तू सी बच्ची का माथा काटेंगे, और ब्रेन को कुछ हुआ तो? अब तो हम दोनों अजीब से डर में ऑपरेशन के दिन की राह देख रहे थे|
26 मार्च 1996 ये दिन था जब इत्तू सी तू डॉक्टरों की छुरियों और चाकुओं का सामना करने ऑपरेशन थियेटर में ले जाई गई| सुबह 8 बजे तू अन्दर गई और शाम 6 बजे तक हम दोनों की सांसे हलक में अटकी हुई थीं| ग्यारह घंटे बाद जब शाम को डॉक्टर बाहर आये तो पता चला की ऑपरेशन तो ठीक हो गया पर एक जूनियर की थोड़ी सी लापरवाही के कारण माथे की हड्डी काटते वक्त दिमाग के ऊपर की झिल्ली कट गई और उसमें से फ्लूइड बाहर आने लगा जिसे मेडिकल टर्म में CSF कहते हैं| अब तेरा माथा तो ठीक दिखने लगा पर तेरे माथे केे ठीक ऊपर बायीं तरफ एक उभार हो गया| उसे वैसा ही छोड़ दिया गया और कहा की इसके ऊपर हड्डी आ जाएगी, जून 1996 में फिर आने को कहा गया| ढेरों दवाईयां और सहस्त्रों चिंताएं ले कर हम वापस घर आ गए|
अब सबसे बड़ा काम था तुझे रोने न देना क्यूंकि डॉक्टरों ने कहा की अगर ये रोई तो वो झिल्ली(dura) तनाव की स्थिति में आ जायेगी और उसका असर तेरे दिमाग के विकास पर पड सकता है| चार महीने की छोटी बच्ची को रोने से बचाना मतलब एवरेस्ट की चढ़ाई से भी मुश्किल काम था| खैर आजी और आई के सुरक्षित हाथों ने वो समय बड़ी खूबी से निकाल लिया| अब वो डॉक्टर जो बम्बई में थे दिल्ली के अपोलो अस्पताल में चले आये थे इसलिए जून 96 मे हम तुझे ले कर दिल्ली गए| डॉक्टर ने देख कर कहा की एक और ऑपरेशन करना पड़ेगा क्यूंकि खाली छोड़ी जगह पर हड्डी नहीं आ रही| एक बाहरी graft लगाना पड़ेगा| हम तुझे ले कर AIIMS दिल्ली आये और वहां काम करने वाले मेरे भाई डॉ शशांक के जरिये वहां के न्यूरो सर्जन से मिले| अभी तू सिर्फ 6 महीने की होगी| तेरा फिर एक ऑपरेशन हुआ और डॉक्टरों ने हड्डी के graft को तारों से बांध कर उस खाली जगह को बंद किया| फिर वही प्रतिबन्ध, तुझे रोने नहीं देना, सर पर चोट न लगने देना आदि आदि|
अब तू तो चलने की कोशिशें करने लगी थी और कुछ दिनों में वॉकर का सहारा छोड़ सरपट दौड़ने लगी| घर के एक कोने से दूसरे तक, फर्नीचर को ठोकरे मारते यूँ फर्राटे से दौडती जैसे उसैन बोल्ट की आत्मा तुझमें घुस गई हो| इधर हम सब हाय हुय करते रह जाते पर तू मानती ही ना थी| तुझे डांट डपट भी नहीं करनी थी क्यूंकि रोने न देना था| अब तेरा पहला जन्म दिन भी आ गया था और तेरी बदमाशियां दिनबदिन बढती जा रहीं थीं| सबसे नजर छुपा कर उस graft में ऊँगली डाल डाल कर तूने उस graft को ढीला कर दिया और यहाँ तक की वो जो तार बंधी थी वो बाहर आ गई| अब फिर एक नया ऑपरेशन और इस बार यहीं अपने बोकारो में ही| अबकी बार उस पुराने graft को निकाल कर नया graft लगाया गया और उसे स्वतः घुलने वाले टाँके लगाये कि तू अब उसमे उंगली ना डाल पाए| डॉक्टर ने कहा की इसके बाद अब जब तू १४/१५ साल की हो जाएगी तब एक और आखिरी ऑपरेशन होगा तब तक चोट वगैरे से तुझे बचना था|
तू बड़ी होती गई और अपनी बदमाशियों और मस्तियों से हम सबको लुभाती रही| तू अब तक ये जान गई थी कि तुझे किसी चीज़ के लिए हम ना नहीं कहते और इसका तूने भरपूर फायदा भी उठाया| तेरी बुआ तो तुझे मेरा तोता कहने लगी थी| असल में एक कहानी में एक राक्षस की जान उसके तोते में थी| इसी कहानी का हवाला देते हुए तेरी बुआ ने मुझे राक्षस भी कह डाला यह बात अलग है| एक और ख़ास बात कि तुझे बहुत सुरीली आवाज मिली थी| तू अब गाना गाने लगी और मैं तो जैसे तेरा गाना सुन कर पागल ही हो जाता| ये भी एक कारण था तेरी हर बात मानने का|
अपनी सभी इच्छा, आकांक्षाओं को येन केन प्रकारेण हासिल करती हुई तू अब दसवीं में आ गई थी बोर्ड की परीक्षा के बाद तेरा एक और ऑपरेशन यहीं बोकारो में हुआ और लगा जैसे हमने गंगा नहा ली| अब कोई चिंता नहीं थी, ऑपरेशन ठीक हुआ और सारी परेशानियाँ दूर हो गईं| और दो तीन साल गुजर गए और अब तू बंगलुरु में दांतों की डॉक्टर बनने की तयारी में है|
इन २१ सालों में ये दूसरी बार है की हम तेरे जन्मदिन पर तेरे साथ नहीं हैं| तू १८०० किलोमीटर दूर बंगलुरु में है और हम यहाँ बोकारो में| अब शायद कुछ ही बार हम तेरे जन्मदिन में साथ रहेंगे और फिर तुझे धीरे धीरे आदत हो जाएगी हमारे ना रहने की| लोग कहते हैं की लड़की पराया धन होती है और एक बार घर से बाहर निकली तो फिर उसका घर दूर ही होता जाता है| मैं देख रहा हूँ न तेरी दीदी को जो अब घर आती है तो बस ४ दिनों के लिए, अब हम सब जुड़े हैं तो बस फ़ोन की तारों से| तू भी अब बड़ी हो गई है, अपने फैसले खुद लेने की ताकत और अक्ल तुझे आने लगी है,| अच्छा है, पर एक बात हमेशा ध्यान रखना, तेरे भोले पन के कारण तू हरेक को उसके बाहरी आवेश से ही आंकती है| ये सही नहीं है लोगों के दांत दिखाने के और, और खाने के और होते हैं| किसी चीज़ के भी बारे में निर्णय लेने के पहले दस बार सोचना और समझना| और ना समझ आये तो हम तो हैं हीं, तेरी मदद के लिए| हमेशा अपनी आई और अप्पू ताई का आदर्श अपने सामने रखना, उनके जो गुण हैं उन्हें आत्मसात करना और कुछ अवगुण हैं तो उनसे सीख लेना| तेरे इक्कीसवें जन्मदिन पर हम साथ नहीं है पर ये राक्षस अपने तोते से बहुत प्यार करता है ये याद रखना| ऐसी ही दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर और अपने क्षेत्र में ऊँचा नाम कर यही आशीर्वाद है तुझे| संभल कर रहना और गाना गाते और सुनाते रहना|

Thursday, April 28, 2016

यकीन



तुझसे हो जाती है मुलाकात जिस रोज,
जिंदगी पर यकीं आ जाता है|
दिल के कोने में दुबकी हुईं, सारी,
ख्वाहिशों पर यकीं आ जाता है|
तेरी महकती साँसों के घेरे से,
बहारों पर यकीं आ जाता है|
तेरी घनेरी जुल्फों के साये में, अवी,
इन घटाओं पर यकीं आ जाता है|
तेरी आँखों में आंसुओं से हमें,
बारिशों पर यकीं आ जाता है|
तू है मांझी जो मेरी कश्ती का,
तब किनारों पे यकीं आ जाता है|
तू जो हौले से कभी पुकारे है हमें,
अपने होने पे हमको यकीं आ जाता है|

तुझसे मिलते ही मिल जाते हैं सारे जवाब,
इन सवालों पर भी यकीं आ जाता है|
तेरे दो लफ्ज प्यार के सुन कर,
इक हजारों पर यकीं आ जाता है|
दो घडी जो तेरा साथ हो जाये,
सारे रिश्तो पे यकीं आ जाता है|
तेरा ज़ज्बा औ कद-ए-किरदार देख कर,
अब पहाड़ों पर भी यकीं आ जाता है|
तेरी रूह की पाकीज़गी से सनम,
अब खुदाओं पर भी यकीं आ जाता है|
             अवी घाणेकर

Thursday, April 21, 2016

दुआ



कतरा कतरा जिंदगी जी हमने, और ना किया कोई शिकवा,
मौत मगर एक इकट्ठा ही मिले ये दुआ करिये||

कोशिशे लाख हुईं  कि, ख़्वाब सच हों  वो अनदेखे,
अब मगर नींद भी आ जाये ये दुआ करिये||


यूँ तो सुनते हैं कि फासले अच्छे हैं मुहब्बत के लिए,
विसाल-ए-यार भी अब हो ही जाये, ये दुआ करिये||


खिजां की ख़लिश क्या कम थी औ उस पे ये ताब-ए-खुर्शीद का कहर,
बहारें फिर से आएँगी , ये दुआ करिये||


कुछ सोच कर नहीं थामी थी कलम मैंने अवी,
अब मगर गज़ल बन ही जाये, ये दुआ करिये|

Saturday, April 9, 2016

ई और आ


अपने राम बहुत नाराज हैं कोर्ट वगैरे की धमकी तक देना चाहते हैं, इतने व्यथित हैं की किसी काम में मन नहीं लग रहा उनका, बस बौराए से इधर उधर घूम रहे हैं| अब तुम कहोगे भैय्ये की क्या बात हैगी जो अपने राम  इतने गुस्से हो गए और वो भी किस पर भैय्ये?  तो सुनो अब ....
पिछले दिनों एक फिलम आई है अपने सहर में, की और का, इसकी कहानी में जो हीरो हैगा, हॉउस हसबेंड, वो घर पे रह कर खाना वाना बनता हैगा और घर सम्हालता हैगा और हिरोईनी बाहर काम करने जाती हैगी| जे ष्टोरी तो भैय्ये हमारी पत्नी की लिखी हुई हैगी, ३० साल पहले!

 इस कहानी को तो भैय्ये अपन ३० सालों से जी रहे हैंगे और कर रहे हैंगे हॉउस हसबेंड गिरी, तो उस ससुर बल्कि के बाल्की, नाम भी ऐसा धरा है अपना कि नहाने की इच्छा हो रही है अपनी......... इससे तो बल्कि ना ही रखता तो ठीक होता| देखा भैय्ये कित्ता परेसान हैंगे अपनेराम की क्या कह रहे थे वो भी भूल के कुछ और ही लाइन पकड़ ली| खैर उस अजब नाम वारे ने हमारी जिंदगी पे फिलम कैसे बना दी सुसरी और हमसे पूछा भी नहीं, अच्छा हमसे नहीं पूछा तो नहीं सही हमारी बेगम से तो परमिसन लेनी चाहिए थी जिनकी कहानी हैगी|
जे बात इत्ती परेसान कर रही हैगी की हमने लगा दिया फ़ोन उस बल्कि को और सुना दी उसको खरी खोटी... बल्कि खरी खरी| अरे जब तुम फिल्लम वाले कहते हो की हमारी निजी जिंदगी में दखल ना दो तो तुम को किसने जे परमिसन दे दी हम आम आदमी की जिंदगी में घुसने की| घुसे तो घुसे  सारी दुनिया को बड़ी बड़ी पिक्चर दिखाने की क्या जरुअत हो गई थी भैय्ये| चुपके से अपने दो चार आदमियों को दिखा लेते(बैसे इत्ते ही लोगों ने देखी हैगी हमारी जानकारी में)| सरे आम उस सुसरे बल्कि ने अपनेराम की बेईज्जती खराब कर के रख दी हैगी| अब जो भी मिलता है बड़े प्यार से पूछता है भैय्ये “की और का” देखी, अब क्या जवाब दें हम| अच्छा भैय्ये कहानी तो चुराई सो चुराई, ससुर, कहानी का नाम भी चुरा लिया, बस मीटर बदल कर| हमारी बेगम की कहानी का नाम था “ई और आ”| हमारी मदर टंग में औरत को “बाई” और आदमी को “बुआ”(बुवा) कहते हैंगे तो उसी हिसाब से रखा था “ई और आ”| हमारी बात सुन कर वो अजब नाम धारी आदमी कहने लगा की क्या प्रूफ है भैय्ये तुम्हारे पास की ये फिल्लम तुम्हारी कहानी पर बनी है, ये हमारी कहानी हैगी और इसे हमने ही लिखा हैगा| और तो और ससुर कहने लगा की तुम तो स्साले “११ महीने वाले भारत” हो गए, एकदम असहिष्णु और दूसरों की स्वतंत्रता छीनने वाले दक्सिन पंथी|


तुम ससुर हमारी लाइफ में घुसी आओ और हम सहिष्णु बने रहें, हमें भरे बाज़ार नंगा करो और उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहो| हद हो गई भैय्ये तुम तो फिल्लम वाले हो फिर जे बिस्वबिद्यालय वाली भासा का परयोग काहे कर रहे| अभी तक तो तुम फिल्लम वाले बस अपनी बीबी से चाय पे चर्चा को सार्बजनिक कर रहे थे,  पर हमारे फटे में टांग अड़ाने का तुम्हे किसने परवाना दे दिया भैय्ये| तुम्हे लिखनी है कहानी तो अपने ऊपर लिखो, ससुर हमारी कहानी मति चुराओ |प्रूफ व्रूफ़ की बात भी मति करो तुम समझे.....
अरे ससुर के नाती “बल्कि”, ३० साल से जो जिंदगी हम जी रहे हैं उसका प्रूफ दें अब तुझे| जे तो वही हो गया की हम हम हैं इसका सबूत दें| चलो हम हम हैं का सबूत हमारे आधार कार्ड से मिल जायेगा पर हमारी जिंदगी की चाल के  सबूत के लिए तो साला कोई कार्ड नहीं हैगा तो कैसे दें प्रूफ| आधार कार्ड में तो न लिखा हैगा पेशा – हॉउस हसबेंड, सेल्फ इम्प्लोयेड भले लिखा हो, औरत लोग का तो लिख देवें हैं  “गृहिणी”
जब हमने और दो चार खरी खरी सुनाई तो मांडवली पे आ गया ससुर कहने लगा “ठीक है हम मान लेंगे की कहानी तुम्हारी बेगम ने लिखी और दे भी देंगे क्रेडिट उसको और कुछ पैसे तुम्हे भी पर एक सरत है की तुम्हे “भारत माता की जय” बोलना होगा २४ घंटे में १०० बार”| जे तो भैय्ये हद से भी हद हो गई, हम  ना बोलें तो आधी खाकी वालों से मार खाएं और बोलें तो पूरी खाकी वालों का डंडा तो लाजिमी हैगा पड़ना| अच्छी मुसीबत में डाल दिया इस बल्कि ने तो अपनेराम को ...

 हमें बस अब आप सब का ही सहारा हैगा, भैय्ये जितने भी हमारी जिंदगी से बाकिफ हैं और जो जो हमारी बेगम को जानते हैंगे सब से हाथ जोड़ कर बिनती कर रहे हैंगे अपनेराम की आओ भैय्ये प्रूफ दे दो की जे कहानी हमारी है| इन्तेजार कर रहे हैंगे भैय्ये, अपने राम की इत्ती मदद तो करई दो अब|  

Friday, April 1, 2016

एक ख़त बिटिया के नाम!

प्रिय अपूर्वा!

 २८ साल पहले की वो सुबह याद आती है तो आज भी मैं रोमांचित हो उठता हूँ| कम उम्र में ही मैंने और वर्षा ने अपना आशियाँ बनाना शुरू ही किया था की जिंदगी ने हमारे अधखुले दरवाजे पर दस्तक दे दी| इतनी जल्दी एक नई जिंदगी के लिए हम शायद तैयार नहीं थे पर फिर भी इसका सामना तो करना ही था| ३१ मार्च १९८९ सुबह 7 बजे तुम्हारी मां अपनी नाईट ड्यूटी निपटा कर अस्पताल से लौटी ही थी कि उसे कुछ तकलीफ होने लगी और उसे फिर से अस्पताल ले जाना पड़ा| अभी तेरे जन्म में काफी देर थी क्यूंकि सिर्फ ३0 या 3२वां हफ्ता ही तो चल रहा था आई की प्रेगनेंसी का, लेकिन १५ दिनों की लगातार ड्यूटी और महीने में सिर्फ एक छुट्टी इस कमरतोड़ मेहनत से शायद तेरी २४ वर्षीय नाजुक और कमसिन मां की तबियत पर असर होना ही था| खैर उसे अस्पताल ले गया तो डॉक्टरों ने बताया कि प्री मेच्योर डिलीवरी होगी तो पांव के नीचे से जमीन खिसक गई| जुम्मा जुम्मा २५ साल का मैं पहली बार बाप बनने जा रहा था और उसमे भी प्री मेच्योर बच्चा| किसी तरह से अपने आप को संभाला और घर आई बाबा को और रांची में मामा के यहाँ फ़ोन किया और इन्तजार करता रहा | ९.५२ पर एक नर्स खबर ले कर आई की बेटी हुई है वजन बहुत कम है पर जीवित है और मेरी पत्नी ठीक है,, जान में जान आई उस नवजात (तुझ से) तो अभी कोई नाल मेरी जुडी नहीं थी तो मैं तो अपनी पत्नी के विषय में ही चिंतित था| १० मिनट बाद एक और नर्स दौड़ते हुए आई तो मेरी सांस अटक गई वर्षा की चिंता से, पर उस नर्स ने जो बताया वो तो और भी परेशान करने वाला था| एक और बच्ची पैदा हुई है १०.०२ बजे सुबह| कहाँ तो मैं एक की खबर से भौंचक था यहाँ तो दो दो हो गईं| वो नर्स चुपके से तुझे उठा कर मुझे दिखाने ले आई, एक हड्डियों का ढांचा, भिंची हुई मुठ्ठियां, रंग रूप तेरी बुआ की तरह| तुझे देख कर मैं और घबरा गया, नर्स बोली अभी बहुत कमजोर है इसलिए इन्क्युबेटर में रखना होगा दोनों को| दो बच्चियों ने आपस में बांटा हुआ ढाई किलो वजन| सच कहूँ मैं बौरा गया था उस समय| खैर ..... 

समय गुजरता रहा और तुम दोनों की हालत में सुधार होने लगा, इन्क्युबेटर से निकल कर तुम दोनों घर आ गए| तुम्हारी आजी और आत्या ने दोनों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली, पर कितने दिन वो आजोबा को छोड़ कर यहाँ रह सकते थे इसलिए हमने तय किया की अभी तुम दोनों को उनके साथ सागर भेजने में ही समझदारी है| 
इन दिनों में जब तक तुम यहाँ हमारे पास थी मैं पागलों की तरह व्यवहार कर रहा था, तुम दोनों का रात बे-रात रोना मुझे और वहशी बना देता और तुम्हारी हालत या तबियत और तुम्हारी माँ की भावनाओं का कोई ख़याल न करते हुए मैं अमानवीय हद तक की चिडचिडाहट करता था| आज उस व्यवहार की बात सोच कर अपने आप से चिढ होने लगाती है| आजी हमेशा कहती थी मुझे “अवी तू गुणों की खान है बस ये गुस्सा छोड़ दे, इस एक गुस्से से तेरे सारे गुण छुप जाते हैं”| मैंने उसकी बात उस समय नहीं सुनी, मैं उस समय शायद मेच्योर नहीं था(तेरे काका, आजोबा और भी कई लोग हँसेंगे कहेंगे “उस समय”) खैर धीरे धीरे मुझे समझ आने लगी और मैं भी तेरे साथ साथ बड़ा होने लगा| 
इस बीच तुम दोनों का नाम रख दिया “अपूर्व़ा” और “अनघा”| मेरे मन की कहें तो तेरा नाम मैं “अपराजिता” रखना चाहता था, और रख भी देता मगर फिर अपूर्वा पर ही सबका एक मत हो गया| तू अब तक संभल गई थी पर अनघा की तबियत नहीं सुधर पाई| 
तू तेरे न रखे हुए नाम की तरह ही, रही, है और रहेगी “अपराजिता”|

अब तू आजी आजोबा और आत्या की आँख का तारा हो गई थी| मैं और वर्षा तो इतने दूर थे की शायद तू हमें भूल ना जाये ये डर सताने लगा| तेरी मस्तियों और बदमाशियों का हाल आत्या और आजी की चिठ्ठियों से और कभी कभार होने वाले फ़ोन से पता लग जाता था| तू जैसे हमारे घर को बांधे रखने के लिए एक मजबूत कड़ी थी, तेरी बातें करते कोई न थकता था| हमें अब तुझे अपने पास लाने की जल्दी होने लगी और हम तुझे अपने साथ ले आये| तेरे घुंघराले बाल, बड़ी बड़ी आँखे, लम्बी लम्बी पलकें और तेरी वो जान ले लेने वाली हंसी हम तो जैसे पागल हो गए थे तेरे प्यार में| दिन भर घर बाहर दौड़ते फिरते मेरी मोटर साइकिल को “धधध” बोलते कब बड़ी हो गई पता नहीं लगा| अब हम सेक्टर में रहने आ गए थे और तू लोटली (रोटरी) स्कूल जाने लगी थी| बाद में डी पी एस में पढने लगी|इस समय की एक घटना आज भी मेरी आँखें गीली कर देती है पर साथ ही गर्व से सीना भी तन जाता है| 

तू ४ साल की होगी मैं और तू ट्रेन से सागर जा रहे थे लेकिन रिजर्वेशन नहीं था मैं तुझे ले कर अपनी सूटकेस पर बाथरूम के दरवाजे पर बैठा था और टी टी का इन्तजार कर रहा था| रात के १० बजे ट्रेन धनबाद से छूटती थी और तुझे बहुत नींद आ रही थी| रात १ बजे तक हमें सीट नहीं मिली और तू मेरे साथ बैठी रही एक पल भी नहीं सोई, जब मैंने कहा की सो जा तो तेरा जवाब मुझे आज भी याद है “ बाबा मैं सो जाउंगी तो तुम मुझे कैसे संभाल पाओगे, तुम्हारा हाथ दुखेगा न, इसलिए मैं बैठती हूँ”| उस दिन ही मेरी समझ में आ गया था की तू किसी और मिटटी की बनी है| आज तू अपने बूते पर जो सारे मुकाम हासिल कर रही है उससे इस बात की सौ प्रतिशत पुष्टि होती है|

धीरे धीरे न जाने क्यूँ (मेरी ही चिडचिडाहट और बेकाबू गुस्से के कारण)तेरे स्वभाव में बदलाव आने लगा, अब तूने चहकना छोड़ दिया था, जिस अपूर्वा की अपूर्व चहचहाहट से हमारे दिल ख़ुशी से भर जाते थे उसने चहकना छोड़ दिया, इसका भी गुनहगार मैं ही हूँ| कुछ सालो में ऐश्वर्या का जन्म, उसकी मेडिकल प्रोब्लेम्स और हमारा उसकी तरफ ज्यादा ध्यान देना तझे हमसे और दूर करने लगा| शुक्र था की तू आजी और आत्या से काफी सहज थी और अपनी सारी मन की बात उनसे करती थी| इस बीच सिर्फ तेरे लिए हम जोरो को घर ले आये और तू कुछ कुछ फिर चहकने लगी| आजी के जाने के बाद और तेरी बारहवीं के बाद तू आत्या के पास नागपुर चली गई और अब तू फिर हमसे दूर हो गई| आज हम लोग बहुत खुले दिल से एक दुसरे से बातें करते हैं और मैं बहुत गर्व महसूस करता हूँ जब तू कोई बात मुझसे साझा करना चाहती है| तू कहती है की हमने तुम्हे बहुत अच्छे संस्कार दिए और अलग तरह से बड़ा किया पर इस सब में मेरा कितना योगदान है मैं नहीं जानता| मेरी मां और बहन ने ही तुझे बड़ा किया है हम शायद सिर्फ बायोलॉजिकल पेरेंट्स ही बन कर रह गए थे| आज तू २७ साल की हो गई और अपने घर की धुरी बन गई है, कोई भी समस्या, कोई सलाह हम सब तेरी तरफ देखते हैं, तू मेरी बेटी तो है पर बेटे से बढ़ कर| 
मेरे व्यवहार के कारण जो परिणाम बचपन में तेरे नाजुक मन पर होने थे वो हो ही गए और एक अजीब सी कठोरता  तेरे व्यक्तित्व में आने लगी, तू बहुत रिजिड लगने लगी| इन सालों में कई बार मैंने सोचा था की तुझसे अपने व्यवहार से तुझ पर हुए बदलाव पर बात करूँगा पर हिम्मत नहीं कर पाया| आज भी लिख कर ही पूछ रहा हूँ| मैं जानता हूँ तू क्या कहेगी इस पर “ क्या बाबा, कुछ भी, ऐसा कुछ नहीं है”| पर फिर भी वो घुंघराले बालों वाली, लम्बी लम्बी पलकों वाली, बड़ी बड़ी आँखों वाली, हमेशा हंसने हंसाने वाली और सारे घर को एक डोरी में बाँध के रखने वाली अप्पू आज कहीं खो गई है|
मेरी वो चहकती चिड़िया रानी फिर कभी मुझे नहीं दिखेगी क्या? क्या करना होगा मुझे उस अपूर्वा को वापस लाने के लिए, या अब मैं कुछ नहीं कर सकता| ठीक है मैं नहीं कर सकता पर तू तो कर सकती है ना, लौटा दे न वो हमारी प्यारी चहकती, खिलखिलाती अपूर्वा इस साल अपने जन्मदिन पर हमें| मुझे मालूम है की जन्मदिन का तोहफा मुझे देना चाहिए पर इस बार मैं ये तोहफा तुझसे मांग रहा हूँ| खाली हाथ मत लौटाना अपने बाबा को प्लीज! 
जन्म दिवस की शुभकामनाओं और ढेरों आशीषों के साथ 
तेरा बाबा|

Thursday, March 24, 2016

इंद्र धनुष

भैय्ये बहुत सालों बाद इच्छा हुई इस बरस होली खेलने की, इन बीच के सालों में पता नहीं किन चक्करों में होली हुई ही नहीं| अपन को बचपन से जान्ने वाले जानते हेंगे की होली आने के ५/७ दिनों पहले ही अपनेराम मुडिया जाते थे और ऐसी ऐसी होली खेलते थे की राम भजो| खैर अब इन्ने सालों  बाद होली की याद आई तो अपनेराम निकल पड़े होली के हुडदंग में सामिल होने| अपन एक सहर में रहते हैंगे जहाँ आबादी को सेक्टरों में बाँट रखा है भैय्ये| सेक्टर को हमारे सहर में और हमारी रास्ट्र भासा में जनवृत्त कहते हैंगे  लेकिन हम तो सेक्टर ही कहेंगे भैय्ये वरना लोग हमारे पर बामपंथी होने का लांछन लगाने से नहीं चूकेंगे| नहीं समझे? अरे भैय्ये सारे शब्द जो जन से सुरु होते हैंगे जैसे जनवादी, जनयू इन सब पर बस एक ही बिचारधारा का हक है और वो “साड्डा हक ऐथे रख” वाली मानसिकता के पुजारी हैंगे| खैर..... तो बात रही ऐसी की अपनेराम निकल पड़े सेक्टरों में माहौल देखने| एक बात और बताते चलें की भैय्ये होली के दिन मोटर कार, स्कूटर, साईकिल से नहीं निकलना बस भंग की या वोदका की तरंग में पैदल ही निकलना तबई होली का असली मजा आवेगा| अब तुम सोच रहे होगे की भंग तो ठीक है ये सुसरी वोदका कहाँ से आ गई खालिस हिन्दुस्तानी त्यौहार में| तो भैय्ये एक तो अपनेराम के बचपन के समय रसियन परभाव था हैगा इस देश में और दुसरे वोदका होती है रंगहीन तो जिनको पता नहीं लगना चईये उन्हें पता नहीं लगता और अपनेराम फुल तरंग का मजा भी ले लेते हैंगे, और तीसरे अब रसिया बामपंथी रहा नहीं तो VODKA IS  “RIGHT” CHOICE BABY!!!
अपनेराम घर से निकले ही थे की सामने से एक टोली सेक्टर ९ से आ रही थी, सेक्टर ९ हमारे सहर में सबसे बड़ा, सबसे जादा आबादी वाला और सबसे गन्दा सेक्टर हैगा| इस सेक्टर में रोजई कोई ना कोई कांड होता रहता हैगा| इस टोली में सब के सब बस लाल रंग में रंगे दिख रहे थे हैगे और उनके पास रंग भी लाल ही था हैगा| एक अजीब बात थी की ये २०/२५ लड़के लुडके  रस्ते की दायीं तरफ चल रहे थे और सारे ट्रेफिक को अस्तव्यस्त कर रहे थे| इनका लीडर बात बात में लाल सलाम की बात करता था और उसे होली से कोई मतलब नहीं था हैगा|वो तो गाना भी गा रहा था “साड्डा हक ऐथ्थे रख”| इनके पास पिचकारियों के नाम पे चाइनीस खिलौने थे और बड़े खूंखार दिख रहे थे हैगे| अपनेराम समझ गए की भैय्ये ये सब ससुर बामपंथी हैंगे जो सारे देश को लाल करने में लगे हुए हैं अब वो लाल रंग खून का हो तो भी चलेगा| बड़ी मुश्किल से अपनेराम इस लाल रंग से बचते हुए बायीं तरफ से भाग निकले|
अभी कुछ दूर गए ही थे की एक बहुत बड़ा रंग भरा गुब्बारा अपनेराम के सर पर आ पड़ा और अपनेराम सर से पांव तलक सिन्दूरी रंग में रंग गए| कुछ देर बाद जब होश आया तो सामने एक बड़ा हुजूम पूरे गणवेस में राष्ट्र भक्ति के गीत गाता चला आ रहा था हैगा और बीच  बीच में भारत माता की जय के नारे भी लगा रहा था| अपने राम को बात कुछ समझ नहीं आई की भैय्ये होली के हुडदंग में ये भारत माता की जय का क्या मतलब, पर भैय्ये ये नसल तो अपनी सुहाग रात भी इसी नारे से सुरु करती हैगी तो  फिर होली की क्या बात| ठीक है भैय्ये देसप्रेम होना चईये हरेक देसवासी में, पर दिखावा करने की जरुरत तो ना हैगी| हम देस से प्रेम करे हैं तो देस को नुकसान पहुँचाने वाला कोई काम न करें और कोई कर रहा हो तो उसे रोकें क्या इस बात से अपनेराम का देशप्रेम नहीं दीखता? लेकिन अब इन्हें कौन समझाए? अपनेराम ने भी होली के रंग में और वोदका की तरंग में दो चार बार भारत माता की जय बोल कर अपना देसप्रेम साबित किया और आगे बढ़ गए|
अगले चौराहे से अपनेराम मुड़े ही थे की कुछ लोग छातियाँ पीटते एक दुसरे पर रंग उछाल रहे थे इसी समय सेक्टर ९ वाली टोली भी इन सब में सामिल हो गई और फिर तो जो रंगों की बौछार हुई है की पूछो मत|सेक्टर ९ वाली टोली का लाल रंग और इस छातियाँ पीटने वाली टोली का हरा(नीले और पीले  का मेल) रंग दोनों मिल के इन दोनों टोलियों के दिल का रंग निखर आया और सारी होली अब काली हो गयी| अपनेराम इस काली होली से बचते बचाते अगले सेक्टर पहुंचे तो तब तक यहाँ होली हो ली थी|
अपनेराम ने सोचा की अब और सेक्टरों में जाने का कोई मतलब नहीं और घर की तरफ बढ़ लिए| वापसी के सफ़र में अपनेराम सोच रहे थे की अजब होली है भैय्ये, हर एक अपने अपने रंग पकडे हुए है और उसी में सबको रंगना चाहते हैं| अरे भैय्ये हमारा अपना कोई रंग है की नहीं या बस ये दो तीन रंग ही बच गए हैं इस देस में? हम तो इस देस के इन्द्रधनुषी रंग में रंगना चाहते हैं भैय्ये और उस रंग के ऊपर और कोई रंग ना चढ़े इस की दुआ मांगते हैं| अपनेराम को परहेज नहीं है किसी भी रंग से पर किसी एक रंग में रंग जाना भी अपनेराम की फितरत नहीं है तो भैय्ये हमें ऐसे ही रहने तो ईस्ट मैन कलर और सारे देस को भी रंग दो इसी इन्द्रधनुषी रंग में|


होली की शुभकामना भैय्ये और वोदका कम पड गई हो तो आ जाओ इसमें जो रंग मिलेगा ये उसी रंग की हो जाएगी भैय्ये, इसलिए चिंता न करो और लगाओ नारा होली है , बुरा ना मानो होली है|  

Sunday, March 13, 2016

उठो लाल अब आँखें खोलो!!!!

दोस्तों, 
तैयार हो जाईये एक गृहयुद्ध जैसी परिस्थिति के लिए, कल आपने देखा ही एक नए लालू प्रसाद के जन्म को| देश में अलग अलग संगठन, शैक्षणिक संस्थान, विविध विचारधारा के लोग, अविचारी लोग, और ना जाने कौन कौन, सत्ता के विरोध में तरह तरह के हथकंडे सभ्य असभ्य तरीके से अपना रहे हैं और व्यवस्था को हिलाने की कोशिश में जुटे हैं| 
कहते हैं इन्हें आज़ादी चाहिए| किससे आज़ादी? ये दो चार दस लोग एक जगह इकट्ठे हो कर अनर्गल बकवास करेंगे और आज़ादी लेंगें| अरे जिनकी दुनिया में बस एक चीन के सिवा कहीं कोई औकात  नहीं वो हमारे देश से आज़ादी चाहते हैं, दे दो भैय्या इनको आज़ादी, निकाल फेंको इन्हें इस देश से| 

मुझे तो लगता है ये सारा नाटक अड़ोसी पडोसी के निर्देशन में खेला जा रहा है, सूत्रधार के रूप में विदेशी बहुरिया और उनके आधे अधूरे देसी बबुआ हैं और जो सदियों से उनके साथ रहे, या कहें हिन्दुओं के खिलाफ रहे, वो सारे देसी गद्दार इसमें सटीक अभिनय कर रहे हैं| इन सबको केसरिया रंग नहीं भाता, बस लाल रंग बहुत प्यारा है, तो आओ इनका पिछवाडा भी लाल कर दिया जाए| 

इन सब चक्करों में हमारे देश की प्रगति, विकास, सरकार द्वारा किये हुए उल्लेखनीय कार्य सब परदे के पीछे छुप गए हैं, और सामने हैं इन भांडों की नौटंकी| हमारे देश का बिका हुआ मिडिया इस नौटंकी को ही दिखा रहा है और हम आप जैसे सामान्य जन इस नौटंकी को यथार्थ समझ रहे हैं| लोगों को जागरूक होना जरुरी है इन भीतरी दुश्मनों के प्रति वरना देश गृहयुद्ध जैसी परिस्थिति का सामना कर रहा होगा और इसका फायदा इस देश के बाहरी दुश्मन उठा जायेंगे| ये सब नौटंकी बाज़ अपनेआप को महानायक समझते हैं और कुछ पत्रकारों आदि ने तो उस नवलालू को चे गुरेवा का अवतार तक घोषित कर दिया| ठीक है भैय्ये कर लो कुछ दिन नौटंकी, लेकिन ये जान लो की जनता तुम सब भांडों का असली रूप पहचान रही है और जल्दी ही तुम्हे तुम्हारी औकात दिखा देगी|

अभी सत्ता को चाहिए की इन सब नाटकों को अनदेखा करे और जिन विकास के कामों में वो लगी हुई है उन्हें जारी रखे|अपनी शक्ति इन भांडों के नाटक का प्रत्युत्तर देने में जाया न करे और जनता के सामने अपनी उपलब्धियां लाये और जनता का विश्वास जीते| ये विश्वास रखें की right हमेशा सही ही होता है वो विचारधारा हो या दिशा(डायरेक्शन)

एक और बात जो मेरे छोटे से अविकसित दिमाग को नहीं समझ आती वो ये की(इसे अंग्रेजी में ही कहना होगा) 

HOW the hell every "RIGHT" thing becomes "LEFT"