Friday, April 1, 2016

एक ख़त बिटिया के नाम!

प्रिय अपूर्वा!

 २८ साल पहले की वो सुबह याद आती है तो आज भी मैं रोमांचित हो उठता हूँ| कम उम्र में ही मैंने और वर्षा ने अपना आशियाँ बनाना शुरू ही किया था की जिंदगी ने हमारे अधखुले दरवाजे पर दस्तक दे दी| इतनी जल्दी एक नई जिंदगी के लिए हम शायद तैयार नहीं थे पर फिर भी इसका सामना तो करना ही था| ३१ मार्च १९८९ सुबह 7 बजे तुम्हारी मां अपनी नाईट ड्यूटी निपटा कर अस्पताल से लौटी ही थी कि उसे कुछ तकलीफ होने लगी और उसे फिर से अस्पताल ले जाना पड़ा| अभी तेरे जन्म में काफी देर थी क्यूंकि सिर्फ ३0 या 3२वां हफ्ता ही तो चल रहा था आई की प्रेगनेंसी का, लेकिन १५ दिनों की लगातार ड्यूटी और महीने में सिर्फ एक छुट्टी इस कमरतोड़ मेहनत से शायद तेरी २४ वर्षीय नाजुक और कमसिन मां की तबियत पर असर होना ही था| खैर उसे अस्पताल ले गया तो डॉक्टरों ने बताया कि प्री मेच्योर डिलीवरी होगी तो पांव के नीचे से जमीन खिसक गई| जुम्मा जुम्मा २५ साल का मैं पहली बार बाप बनने जा रहा था और उसमे भी प्री मेच्योर बच्चा| किसी तरह से अपने आप को संभाला और घर आई बाबा को और रांची में मामा के यहाँ फ़ोन किया और इन्तजार करता रहा | ९.५२ पर एक नर्स खबर ले कर आई की बेटी हुई है वजन बहुत कम है पर जीवित है और मेरी पत्नी ठीक है,, जान में जान आई उस नवजात (तुझ से) तो अभी कोई नाल मेरी जुडी नहीं थी तो मैं तो अपनी पत्नी के विषय में ही चिंतित था| १० मिनट बाद एक और नर्स दौड़ते हुए आई तो मेरी सांस अटक गई वर्षा की चिंता से, पर उस नर्स ने जो बताया वो तो और भी परेशान करने वाला था| एक और बच्ची पैदा हुई है १०.०२ बजे सुबह| कहाँ तो मैं एक की खबर से भौंचक था यहाँ तो दो दो हो गईं| वो नर्स चुपके से तुझे उठा कर मुझे दिखाने ले आई, एक हड्डियों का ढांचा, भिंची हुई मुठ्ठियां, रंग रूप तेरी बुआ की तरह| तुझे देख कर मैं और घबरा गया, नर्स बोली अभी बहुत कमजोर है इसलिए इन्क्युबेटर में रखना होगा दोनों को| दो बच्चियों ने आपस में बांटा हुआ ढाई किलो वजन| सच कहूँ मैं बौरा गया था उस समय| खैर ..... 

समय गुजरता रहा और तुम दोनों की हालत में सुधार होने लगा, इन्क्युबेटर से निकल कर तुम दोनों घर आ गए| तुम्हारी आजी और आत्या ने दोनों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली, पर कितने दिन वो आजोबा को छोड़ कर यहाँ रह सकते थे इसलिए हमने तय किया की अभी तुम दोनों को उनके साथ सागर भेजने में ही समझदारी है| 
इन दिनों में जब तक तुम यहाँ हमारे पास थी मैं पागलों की तरह व्यवहार कर रहा था, तुम दोनों का रात बे-रात रोना मुझे और वहशी बना देता और तुम्हारी हालत या तबियत और तुम्हारी माँ की भावनाओं का कोई ख़याल न करते हुए मैं अमानवीय हद तक की चिडचिडाहट करता था| आज उस व्यवहार की बात सोच कर अपने आप से चिढ होने लगाती है| आजी हमेशा कहती थी मुझे “अवी तू गुणों की खान है बस ये गुस्सा छोड़ दे, इस एक गुस्से से तेरे सारे गुण छुप जाते हैं”| मैंने उसकी बात उस समय नहीं सुनी, मैं उस समय शायद मेच्योर नहीं था(तेरे काका, आजोबा और भी कई लोग हँसेंगे कहेंगे “उस समय”) खैर धीरे धीरे मुझे समझ आने लगी और मैं भी तेरे साथ साथ बड़ा होने लगा| 
इस बीच तुम दोनों का नाम रख दिया “अपूर्व़ा” और “अनघा”| मेरे मन की कहें तो तेरा नाम मैं “अपराजिता” रखना चाहता था, और रख भी देता मगर फिर अपूर्वा पर ही सबका एक मत हो गया| तू अब तक संभल गई थी पर अनघा की तबियत नहीं सुधर पाई| 
तू तेरे न रखे हुए नाम की तरह ही, रही, है और रहेगी “अपराजिता”|

अब तू आजी आजोबा और आत्या की आँख का तारा हो गई थी| मैं और वर्षा तो इतने दूर थे की शायद तू हमें भूल ना जाये ये डर सताने लगा| तेरी मस्तियों और बदमाशियों का हाल आत्या और आजी की चिठ्ठियों से और कभी कभार होने वाले फ़ोन से पता लग जाता था| तू जैसे हमारे घर को बांधे रखने के लिए एक मजबूत कड़ी थी, तेरी बातें करते कोई न थकता था| हमें अब तुझे अपने पास लाने की जल्दी होने लगी और हम तुझे अपने साथ ले आये| तेरे घुंघराले बाल, बड़ी बड़ी आँखे, लम्बी लम्बी पलकें और तेरी वो जान ले लेने वाली हंसी हम तो जैसे पागल हो गए थे तेरे प्यार में| दिन भर घर बाहर दौड़ते फिरते मेरी मोटर साइकिल को “धधध” बोलते कब बड़ी हो गई पता नहीं लगा| अब हम सेक्टर में रहने आ गए थे और तू लोटली (रोटरी) स्कूल जाने लगी थी| बाद में डी पी एस में पढने लगी|इस समय की एक घटना आज भी मेरी आँखें गीली कर देती है पर साथ ही गर्व से सीना भी तन जाता है| 

तू ४ साल की होगी मैं और तू ट्रेन से सागर जा रहे थे लेकिन रिजर्वेशन नहीं था मैं तुझे ले कर अपनी सूटकेस पर बाथरूम के दरवाजे पर बैठा था और टी टी का इन्तजार कर रहा था| रात के १० बजे ट्रेन धनबाद से छूटती थी और तुझे बहुत नींद आ रही थी| रात १ बजे तक हमें सीट नहीं मिली और तू मेरे साथ बैठी रही एक पल भी नहीं सोई, जब मैंने कहा की सो जा तो तेरा जवाब मुझे आज भी याद है “ बाबा मैं सो जाउंगी तो तुम मुझे कैसे संभाल पाओगे, तुम्हारा हाथ दुखेगा न, इसलिए मैं बैठती हूँ”| उस दिन ही मेरी समझ में आ गया था की तू किसी और मिटटी की बनी है| आज तू अपने बूते पर जो सारे मुकाम हासिल कर रही है उससे इस बात की सौ प्रतिशत पुष्टि होती है|

धीरे धीरे न जाने क्यूँ (मेरी ही चिडचिडाहट और बेकाबू गुस्से के कारण)तेरे स्वभाव में बदलाव आने लगा, अब तूने चहकना छोड़ दिया था, जिस अपूर्वा की अपूर्व चहचहाहट से हमारे दिल ख़ुशी से भर जाते थे उसने चहकना छोड़ दिया, इसका भी गुनहगार मैं ही हूँ| कुछ सालो में ऐश्वर्या का जन्म, उसकी मेडिकल प्रोब्लेम्स और हमारा उसकी तरफ ज्यादा ध्यान देना तझे हमसे और दूर करने लगा| शुक्र था की तू आजी और आत्या से काफी सहज थी और अपनी सारी मन की बात उनसे करती थी| इस बीच सिर्फ तेरे लिए हम जोरो को घर ले आये और तू कुछ कुछ फिर चहकने लगी| आजी के जाने के बाद और तेरी बारहवीं के बाद तू आत्या के पास नागपुर चली गई और अब तू फिर हमसे दूर हो गई| आज हम लोग बहुत खुले दिल से एक दुसरे से बातें करते हैं और मैं बहुत गर्व महसूस करता हूँ जब तू कोई बात मुझसे साझा करना चाहती है| तू कहती है की हमने तुम्हे बहुत अच्छे संस्कार दिए और अलग तरह से बड़ा किया पर इस सब में मेरा कितना योगदान है मैं नहीं जानता| मेरी मां और बहन ने ही तुझे बड़ा किया है हम शायद सिर्फ बायोलॉजिकल पेरेंट्स ही बन कर रह गए थे| आज तू २७ साल की हो गई और अपने घर की धुरी बन गई है, कोई भी समस्या, कोई सलाह हम सब तेरी तरफ देखते हैं, तू मेरी बेटी तो है पर बेटे से बढ़ कर| 
मेरे व्यवहार के कारण जो परिणाम बचपन में तेरे नाजुक मन पर होने थे वो हो ही गए और एक अजीब सी कठोरता  तेरे व्यक्तित्व में आने लगी, तू बहुत रिजिड लगने लगी| इन सालों में कई बार मैंने सोचा था की तुझसे अपने व्यवहार से तुझ पर हुए बदलाव पर बात करूँगा पर हिम्मत नहीं कर पाया| आज भी लिख कर ही पूछ रहा हूँ| मैं जानता हूँ तू क्या कहेगी इस पर “ क्या बाबा, कुछ भी, ऐसा कुछ नहीं है”| पर फिर भी वो घुंघराले बालों वाली, लम्बी लम्बी पलकों वाली, बड़ी बड़ी आँखों वाली, हमेशा हंसने हंसाने वाली और सारे घर को एक डोरी में बाँध के रखने वाली अप्पू आज कहीं खो गई है|
मेरी वो चहकती चिड़िया रानी फिर कभी मुझे नहीं दिखेगी क्या? क्या करना होगा मुझे उस अपूर्वा को वापस लाने के लिए, या अब मैं कुछ नहीं कर सकता| ठीक है मैं नहीं कर सकता पर तू तो कर सकती है ना, लौटा दे न वो हमारी प्यारी चहकती, खिलखिलाती अपूर्वा इस साल अपने जन्मदिन पर हमें| मुझे मालूम है की जन्मदिन का तोहफा मुझे देना चाहिए पर इस बार मैं ये तोहफा तुझसे मांग रहा हूँ| खाली हाथ मत लौटाना अपने बाबा को प्लीज! 
जन्म दिवस की शुभकामनाओं और ढेरों आशीषों के साथ 
तेरा बाबा|

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