अपने राम बहुत नाराज
हैं कोर्ट वगैरे की धमकी तक देना चाहते हैं, इतने व्यथित हैं की किसी काम में मन
नहीं लग रहा उनका, बस बौराए से इधर उधर घूम रहे हैं| अब तुम कहोगे भैय्ये की क्या
बात हैगी जो अपने राम इतने गुस्से हो गए
और वो भी किस पर भैय्ये? तो सुनो अब ....
पिछले दिनों एक फिलम
आई है अपने सहर में, की और का, इसकी कहानी में जो हीरो हैगा, हॉउस हसबेंड, वो घर
पे रह कर खाना वाना बनता हैगा और घर सम्हालता हैगा और हिरोईनी बाहर काम करने जाती
हैगी| जे ष्टोरी तो भैय्ये हमारी पत्नी की लिखी हुई हैगी, ३० साल पहले!
इस कहानी
को तो भैय्ये अपन ३० सालों से जी रहे हैंगे और कर रहे हैंगे हॉउस हसबेंड गिरी, तो उस ससुर “बल्कि” के “बाल्की”, नाम भी ऐसा धरा है अपना कि
नहाने की इच्छा हो रही है अपनी......... इससे तो बल्कि ना ही रखता तो ठीक होता|
देखा भैय्ये कित्ता परेसान हैंगे अपनेराम की क्या कह रहे थे वो भी भूल के कुछ और
ही लाइन पकड़ ली| खैर उस अजब नाम वारे ने हमारी जिंदगी पे फिलम कैसे बना दी सुसरी
और हमसे पूछा भी नहीं, अच्छा हमसे नहीं पूछा तो नहीं सही हमारी बेगम से तो परमिसन
लेनी चाहिए थी जिनकी कहानी हैगी|
जे बात इत्ती परेसान
कर रही हैगी की हमने लगा दिया फ़ोन उस बल्कि को और सुना दी उसको खरी खोटी... बल्कि
खरी खरी| अरे जब तुम फिल्लम वाले कहते हो की हमारी निजी जिंदगी में दखल ना दो तो
तुम को किसने जे परमिसन दे दी हम आम आदमी की जिंदगी में घुसने की| घुसे तो
घुसे सारी दुनिया को बड़ी बड़ी पिक्चर
दिखाने की क्या जरुअत हो गई थी भैय्ये| चुपके से अपने दो चार आदमियों को दिखा लेते(बैसे
इत्ते ही लोगों ने देखी हैगी हमारी जानकारी में)| सरे आम उस सुसरे बल्कि ने
अपनेराम की बेईज्जती खराब कर के रख दी हैगी| अब जो भी मिलता है बड़े प्यार से पूछता
है भैय्ये “की और का” देखी, अब क्या जवाब दें हम| अच्छा भैय्ये कहानी तो चुराई सो
चुराई, ससुर, कहानी का नाम भी चुरा लिया, बस मीटर बदल कर| हमारी बेगम की कहानी का
नाम था “ई और आ”| हमारी मदर टंग में औरत को “बाई” और आदमी को “बुआ”(बुवा) कहते
हैंगे तो उसी हिसाब से रखा था “ई और आ”| हमारी बात सुन कर वो अजब नाम धारी आदमी
कहने लगा की क्या प्रूफ है भैय्ये तुम्हारे पास की ये फिल्लम तुम्हारी कहानी पर
बनी है, ये हमारी कहानी हैगी और इसे हमने ही लिखा हैगा| और तो और ससुर कहने लगा की
तुम तो स्साले “११ महीने वाले भारत” हो गए, एकदम असहिष्णु और दूसरों की स्वतंत्रता
छीनने वाले दक्सिन पंथी|
तुम ससुर हमारी लाइफ
में घुसी आओ और हम सहिष्णु बने रहें, हमें भरे बाज़ार नंगा करो और उसे अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता कहो| हद हो गई भैय्ये तुम तो फिल्लम वाले हो फिर जे बिस्वबिद्यालय
वाली भासा का परयोग काहे कर रहे| अभी तक तो तुम फिल्लम वाले बस अपनी बीबी से चाय
पे चर्चा को सार्बजनिक कर रहे थे, पर
हमारे फटे में टांग अड़ाने का तुम्हे किसने परवाना दे दिया भैय्ये| तुम्हे लिखनी है
कहानी तो अपने ऊपर लिखो, ससुर हमारी कहानी मति चुराओ |प्रूफ व्रूफ़ की बात भी मति
करो तुम समझे.....
अरे ससुर के नाती “बल्कि”,
३० साल से जो जिंदगी हम जी रहे हैं उसका प्रूफ दें अब तुझे| जे तो वही हो गया की
हम हम हैं इसका सबूत दें| चलो हम हम हैं का सबूत हमारे आधार कार्ड से मिल जायेगा
पर हमारी जिंदगी की चाल के सबूत के लिए तो
साला कोई कार्ड नहीं हैगा तो कैसे दें प्रूफ| आधार कार्ड में तो न लिखा हैगा पेशा –
हॉउस हसबेंड, सेल्फ इम्प्लोयेड भले लिखा हो, औरत लोग का तो लिख देवें हैं “गृहिणी”
जब हमने और दो चार
खरी खरी सुनाई तो मांडवली पे आ गया ससुर कहने लगा “ठीक है हम मान लेंगे की कहानी
तुम्हारी बेगम ने लिखी और दे भी देंगे क्रेडिट उसको और कुछ पैसे तुम्हे भी पर एक
सरत है की तुम्हे “भारत माता की जय” बोलना होगा २४ घंटे में १०० बार”| जे तो
भैय्ये हद से भी हद हो गई, हम ना बोलें तो
आधी खाकी वालों से मार खाएं और बोलें तो पूरी खाकी वालों का डंडा तो लाजिमी हैगा
पड़ना| अच्छी मुसीबत में डाल दिया इस बल्कि ने तो अपनेराम को ...
हमें बस अब आप सब का ही सहारा हैगा, भैय्ये
जितने भी हमारी जिंदगी से बाकिफ हैं और जो जो हमारी बेगम को जानते हैंगे सब से हाथ
जोड़ कर बिनती कर रहे हैंगे अपनेराम की आओ भैय्ये प्रूफ दे दो की जे कहानी हमारी
है| इन्तेजार कर रहे हैंगे भैय्ये, अपने राम की इत्ती मदद तो करई दो अब|
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