Thursday, October 27, 2016

एक और ख़त बिटिया के नाम

ऐश्वर्या मेरा तोता २१ का हो रहा है 16 तारिख को| क्यूंकि मैं उस दिन ट्रेवल कर रहा हूँगा इसलिए आज ही उसे ढेरों आशीर्वाद और जन्मदिन की शुभकामनाएं..........
ऐशू गोड गैशु
तू २१ साल की हो गई पता ही नहीं चला रे! मुझे तो तू अभी भी वही छुटकू सी गुडिया लगती है, तेरी बदमाशियां, तेरा भोला पन आँखों के सामने एक फिल्म चलने लगती है तेरी याद आते ही|
तू जब पैदा हुई तो मैं और तेरी आई एक मिलीजुली सी ख़ुशी और चिंता में घिर गए थे| अक्सर होता ये है कि मां बाप बच्चों की पैदाईश का समय प्लान कर लेते हैं पर हम दोनों कुछ प्लान व्लान नहीं कर पाए या ये कहें की प्लान नहीं किया| अप्पू ताई साडे पांच साल कि होगी जब एक दिन तेरे आने की आहट आई को महसूस हुई| इस समय तक हम दोनों कुछ सम्हल गए थे और हमने तेरे आने का इन्तजार शुरू कर दिया|
16 ऑक्टोबर 1995 नवरात्र के समय तू एक देवी सी हमारे घर आई| हाँ देवी जैसी रे, तेरी आंखें एकदम किसी देवी की तरह ऊपर की ओर उठी हुई थीं, तेरा रूप एकदम दुर्गा देवी के चित्र की तरह था, अस्पताल में सब अचंभित आई को कहने लगे की आपके घर लक्षी आई है और तभी तेरा नाम मैंने सोच लिया “ ऐश्वर्या” , ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी, दुर्गा का एक और नाम|
लोग कहते हैं की ये नाम मैंने उस समय मिस वर्ल्ड बनी ऐश्वर्या राय के नाम पर रखा था पर ऐसा नहीं था ये नाम तेरी आंखों और तेरे रूप के कारण था एक देवी का नाम और अपूर्वा से मिलता जुलता|
उस समय तेरे चेहरे को देख कर मैं तो बहुत खुश था पर फिर पता चला की तेरी आंखें किसी देवी तरह किसी चमत्कार के कारण नहीं कुछ मेडिकल प्रोब्लेम्स के कारण हैं| इसे शायद सिन ओस्टोसिस कहते हैं| तेरे माथे और सर की सारी हड्डियाँ जुडी हुई हैं और जैसा की हर नार्मल बच्चे का होता है उसके सर के ऊपर के हिस्से की हड्डियाँ जुडी नहीं होती, वैसा नहीं था| तेरे चेहरे और सर को समय के साथ बड़ा होने के लिए कोई जगह नहीं थी और इस लिए तेरा माथा आगे की और बढ़ रहा था जिससे तेरी आंखें सीधी होने की बजाय ऊपर की ओर चली गईं थीं| मैं पागल सोच रहा था की मेरे घर देवी का चमत्कार हो गया पर अब पता चला की तू तो बहुत क्रिटिकल सिचुएशन में है| अब शुरू हुई तेरे माथे को ठीक करने की क़वायद, दिन रात डॉक्टरों से चर्चा और निदान ढून्ढने की जद्दोजहद|
तू साढ़े तीन महीने की हो गई और तेरा माथा अब कोनिकल आकार में आगे की ओर बढ़ने लगा| इसी समय, एक नामी न्यूरो सर्जन डॉ कारापुरकर का पता चला जो मुंबई के के. इ. ऍम. हॉस्पिटल में थे, और बच्चों के ऑपरेशन करने में अव्वल दर्जे के सर्जन थे| हमने संपर्क किया और तुझे ले कर चल पड़े बम्बई| सारे इन्वेस्टीगेशन होने के बाद उन्होंने ऑपरेशन का समय तय किया और हमें बताया की तेरा पूरा माथा काट कर हटाया जायेगा, और तेरे चेहरे की हड्डियों से ही तेरे माथे को फिर नया आकार दिया जायेगा| तेरी उन देवी जैसी आँखों को भी सीधा कर के ठीक किया जायेगा| ये सब हम दोनों के लिये भयंकर था, हमारी इत्तू सी बच्ची का माथा काटेंगे, और ब्रेन को कुछ हुआ तो? अब तो हम दोनों अजीब से डर में ऑपरेशन के दिन की राह देख रहे थे|
26 मार्च 1996 ये दिन था जब इत्तू सी तू डॉक्टरों की छुरियों और चाकुओं का सामना करने ऑपरेशन थियेटर में ले जाई गई| सुबह 8 बजे तू अन्दर गई और शाम 6 बजे तक हम दोनों की सांसे हलक में अटकी हुई थीं| ग्यारह घंटे बाद जब शाम को डॉक्टर बाहर आये तो पता चला की ऑपरेशन तो ठीक हो गया पर एक जूनियर की थोड़ी सी लापरवाही के कारण माथे की हड्डी काटते वक्त दिमाग के ऊपर की झिल्ली कट गई और उसमें से फ्लूइड बाहर आने लगा जिसे मेडिकल टर्म में CSF कहते हैं| अब तेरा माथा तो ठीक दिखने लगा पर तेरे माथे केे ठीक ऊपर बायीं तरफ एक उभार हो गया| उसे वैसा ही छोड़ दिया गया और कहा की इसके ऊपर हड्डी आ जाएगी, जून 1996 में फिर आने को कहा गया| ढेरों दवाईयां और सहस्त्रों चिंताएं ले कर हम वापस घर आ गए|
अब सबसे बड़ा काम था तुझे रोने न देना क्यूंकि डॉक्टरों ने कहा की अगर ये रोई तो वो झिल्ली(dura) तनाव की स्थिति में आ जायेगी और उसका असर तेरे दिमाग के विकास पर पड सकता है| चार महीने की छोटी बच्ची को रोने से बचाना मतलब एवरेस्ट की चढ़ाई से भी मुश्किल काम था| खैर आजी और आई के सुरक्षित हाथों ने वो समय बड़ी खूबी से निकाल लिया| अब वो डॉक्टर जो बम्बई में थे दिल्ली के अपोलो अस्पताल में चले आये थे इसलिए जून 96 मे हम तुझे ले कर दिल्ली गए| डॉक्टर ने देख कर कहा की एक और ऑपरेशन करना पड़ेगा क्यूंकि खाली छोड़ी जगह पर हड्डी नहीं आ रही| एक बाहरी graft लगाना पड़ेगा| हम तुझे ले कर AIIMS दिल्ली आये और वहां काम करने वाले मेरे भाई डॉ शशांक के जरिये वहां के न्यूरो सर्जन से मिले| अभी तू सिर्फ 6 महीने की होगी| तेरा फिर एक ऑपरेशन हुआ और डॉक्टरों ने हड्डी के graft को तारों से बांध कर उस खाली जगह को बंद किया| फिर वही प्रतिबन्ध, तुझे रोने नहीं देना, सर पर चोट न लगने देना आदि आदि|
अब तू तो चलने की कोशिशें करने लगी थी और कुछ दिनों में वॉकर का सहारा छोड़ सरपट दौड़ने लगी| घर के एक कोने से दूसरे तक, फर्नीचर को ठोकरे मारते यूँ फर्राटे से दौडती जैसे उसैन बोल्ट की आत्मा तुझमें घुस गई हो| इधर हम सब हाय हुय करते रह जाते पर तू मानती ही ना थी| तुझे डांट डपट भी नहीं करनी थी क्यूंकि रोने न देना था| अब तेरा पहला जन्म दिन भी आ गया था और तेरी बदमाशियां दिनबदिन बढती जा रहीं थीं| सबसे नजर छुपा कर उस graft में ऊँगली डाल डाल कर तूने उस graft को ढीला कर दिया और यहाँ तक की वो जो तार बंधी थी वो बाहर आ गई| अब फिर एक नया ऑपरेशन और इस बार यहीं अपने बोकारो में ही| अबकी बार उस पुराने graft को निकाल कर नया graft लगाया गया और उसे स्वतः घुलने वाले टाँके लगाये कि तू अब उसमे उंगली ना डाल पाए| डॉक्टर ने कहा की इसके बाद अब जब तू १४/१५ साल की हो जाएगी तब एक और आखिरी ऑपरेशन होगा तब तक चोट वगैरे से तुझे बचना था|
तू बड़ी होती गई और अपनी बदमाशियों और मस्तियों से हम सबको लुभाती रही| तू अब तक ये जान गई थी कि तुझे किसी चीज़ के लिए हम ना नहीं कहते और इसका तूने भरपूर फायदा भी उठाया| तेरी बुआ तो तुझे मेरा तोता कहने लगी थी| असल में एक कहानी में एक राक्षस की जान उसके तोते में थी| इसी कहानी का हवाला देते हुए तेरी बुआ ने मुझे राक्षस भी कह डाला यह बात अलग है| एक और ख़ास बात कि तुझे बहुत सुरीली आवाज मिली थी| तू अब गाना गाने लगी और मैं तो जैसे तेरा गाना सुन कर पागल ही हो जाता| ये भी एक कारण था तेरी हर बात मानने का|
अपनी सभी इच्छा, आकांक्षाओं को येन केन प्रकारेण हासिल करती हुई तू अब दसवीं में आ गई थी बोर्ड की परीक्षा के बाद तेरा एक और ऑपरेशन यहीं बोकारो में हुआ और लगा जैसे हमने गंगा नहा ली| अब कोई चिंता नहीं थी, ऑपरेशन ठीक हुआ और सारी परेशानियाँ दूर हो गईं| और दो तीन साल गुजर गए और अब तू बंगलुरु में दांतों की डॉक्टर बनने की तयारी में है|
इन २१ सालों में ये दूसरी बार है की हम तेरे जन्मदिन पर तेरे साथ नहीं हैं| तू १८०० किलोमीटर दूर बंगलुरु में है और हम यहाँ बोकारो में| अब शायद कुछ ही बार हम तेरे जन्मदिन में साथ रहेंगे और फिर तुझे धीरे धीरे आदत हो जाएगी हमारे ना रहने की| लोग कहते हैं की लड़की पराया धन होती है और एक बार घर से बाहर निकली तो फिर उसका घर दूर ही होता जाता है| मैं देख रहा हूँ न तेरी दीदी को जो अब घर आती है तो बस ४ दिनों के लिए, अब हम सब जुड़े हैं तो बस फ़ोन की तारों से| तू भी अब बड़ी हो गई है, अपने फैसले खुद लेने की ताकत और अक्ल तुझे आने लगी है,| अच्छा है, पर एक बात हमेशा ध्यान रखना, तेरे भोले पन के कारण तू हरेक को उसके बाहरी आवेश से ही आंकती है| ये सही नहीं है लोगों के दांत दिखाने के और, और खाने के और होते हैं| किसी चीज़ के भी बारे में निर्णय लेने के पहले दस बार सोचना और समझना| और ना समझ आये तो हम तो हैं हीं, तेरी मदद के लिए| हमेशा अपनी आई और अप्पू ताई का आदर्श अपने सामने रखना, उनके जो गुण हैं उन्हें आत्मसात करना और कुछ अवगुण हैं तो उनसे सीख लेना| तेरे इक्कीसवें जन्मदिन पर हम साथ नहीं है पर ये राक्षस अपने तोते से बहुत प्यार करता है ये याद रखना| ऐसी ही दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर और अपने क्षेत्र में ऊँचा नाम कर यही आशीर्वाद है तुझे| संभल कर रहना और गाना गाते और सुनाते रहना|

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