Thursday, October 27, 2016

अपनेराम का आध्यात्म

अपनेराम आज अलगई मूड में हैं, आज उनके दिमागे शरीफ में आध्यात्म को ले कर कुलबुलाहट हो रही है| आखिर अपनेराम के मित्र, परिवार में हरेक दूजा बंदा आध्यात्म झाड़ता रहता है| ऐसे नहीं वैसे होना चाहिए, वैसे नहीं ऐसे होना चाहिए| जब अपने ऊपर बात आती है तो सब आध्यात्म वाध्यात्म लाल पोटली में बांध कर राम जाने कहाँ छुपा देते हैं| अपनेराम को तो लगता है की इन आध्यात्म के बाबा गुरुओं को उसका मतलब भी पता नहीं है| अपनेराम के हिसाब से तो आध्यात्म मतलब अपने गिरेबान में झांकना| अगर संधि विच्छेद कर के देखा जाये तो अधि + आत्म अर्थात स्व के सम्बन्ध में ज्ञान, या, स्व का ज्ञान मतलब हुआ के नहीं अपने गिरेबान में झांकना| अब ये बाबा लोग अपने तो जो हैं सो हैं पर दूसरे की जिंदगी में घुस कर उसे जीवन जीने के तरीके सिखाने लग पड़ते हैं| अरे साहब अगर अपनेराम खुद को अन्दर से पहचानते हैं तो उनसे बढियां जीना कोई जानता ही नहीं है| ये आध्यात्म की लफ्फाजी चाहिए किसको ? हम जब स्वयं को अन्दर बाहर से अच्छी तरह से समझ चुके हैं तो किसी दूसरे को दोष या उपदेश देने की जरूरत ही नहीं है क्यूंकि हम ये जान गए हैं की मनुष्य स्वभाव चंचल है वो अलग अलग परिस्थितियों में अलग अलग तरह से प्रतिक्रिया देता है| इन आध्यात्म के पुजारियों और पंडों से एक ही बिनती है अपनेराम की कि भैय्ये अपनी अपनी जिंदगी जिओ और पहले आध्यात्म का मतलब तो समझ लो|
आध्यात्म का उल्टा होता है भौतिकता| इसी भौतिकता के गहरे समुन्दर में डूबते उतराते ये तथाकथित आध्यात्म गुरु आध्यात्म की बाते झाड़ते हैं| अपने तो चमड़ी जाये पर दमड़ी ना जाये के उसूल पर चलेंगे और हमें सिखायेंगे की तेरा क्या था, क्या ले कर आया था और क्या ले कर जायेगा, सब मोह माया है| खुद तो उस माया की लीला में रत रहेंगे पर अगले को उससे दूरी बनाने की शिक्षा देंगें| अरे सुसरों तुम सारी जिंदगी निन्यानबे के फेरे में रहे और अब जब सारी जवाबदेहियों से मुक्त हो गए तो लगे झाड़ने आध्यात्म का ज्ञान और ऊपर से तुर्रा ये की हमने तो अपनी जिंदगी भैय्ये इन्ही उसूलों पर जी| अरे अब मुंह न खुलवाओ सुसर के नातियों अब रेहन दो|
अच्छा ये मित्र और परिवार के गुरूजी क्या कम थे की अब तो भैय्ये फेसबुक और व्हाट्स अप आदि आदि पर भी सैकड़ों ज्ञान के पिटारे खुल गए हैं| रोज कोई न कोई बंदा या बंदी किसी न किसी ऐसे ही गुरुओं का फ़ॉर्वर्डेड ज्ञान शेयर करता फिरता है| अपने तो जिंदगी में कभी नैतिक या न्याय संगत आचरण किया ही नहीं होगा पर फेसबुक और व्हाट्स अप पर नैतिकता और न्याय प्रियता के मैस्कॉट बन कर कर फॉरवर्ड हो रहे हैं| अरे लानत भेजो ऐसे दिखाऊ ज्ञान पे|
वैसे भी भैय्ये , आध्यात्म माने अंग्रेजी में स्पिरिचुअलिटी के इतने अलग अलग और व्यापक अर्थ हैं की कौन सा अर्थ किस सन्दर्भ में लगेगा ये भी पता करना मुश्किल है| इन पाखंडी बाबाओं और गुरुओं ने आध्यात्म को धर्म और जीवन पद्धति से ही जोड़ कर देखा है| इसके दूसरे प्रारूप भी हैं ये इनको ज्ञात ही नहीं है| अरे भैय्ये अब मुझे अपनी जिंदगी जीने की कला किसी दूसरे से क्यूँ सीखनी है, दिन रात हाड़ तोड़ मेहनत करते हैं, अपने माता पिता की सदा सेवा करते हैं, अपने सभी कर्तव्य अच्छे से पूर्ण करते हैं, अपने परिवार को पूर्णतः समर्पित हैं किसी और के फटे में टांग नहीं अडाते, सदा खुश रहते हैं, इससे बढियां जीना किसे कहते है भैय्ये| अपने राम तो ऐसे ही जीते हैं और ऐसे ही जियेंगे, क्या जरूरत है आध्यात्म ज्ञान की| अपने राम को ज्ञान झाड़ने की जरूरत ही नही है भैय्ये अपन तो आध्यात्म के जीते जागते उदहारण हैं| 
अपने एक जानने वाले हैं जिनको किस्मत का ऐसा आशीर्वाद प्राप्त है की जनम से ले कर अभी तक उनके सब काम अपने आप ही हो जाते हैं, जनम तो उनका अपने आप ही हो गया उसमे उनको कोई कष्ट नहीं लेना पड़ा, पर उसके बाद भी भैय्ये, पढाई लिखाई, शादी, बच्चे, पैसा, जायदाद सब आशीर्वाद रूप में प्राप्त हुआ, और हो रहा है| अब ये भाई साहब भी आध्यात्म आध्यात्म की रट लगाये घूमते हैं और अपने आप को किसी महापुरुष से कम नही समझते| जिसने आज तक कोई कष्ट ही नहीं किया और फल पाता गया वो गीता का ज्ञान ही सुनाएगा भैय्ये, क्यूंकि उसे नहीं मालूम की कष्ट करने के बाद जब फल ना मिले तो क्या दुःख होता है, बकवास करना कि कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर बहुत आसान है| 
खैर............ अपना आध्यात्म तो यही कहता है की भैय्ये अपने आप को शत प्रतिशत जान लो और वैसे ही आचरण करो| ढोंग और दिखावा करने से कुछ हासिल नहीं, हाड़ तोड़ मेहनत करो और थक जाओ तो किसी अपने के कंधे पे सर रख कर सुस्ता लो और ज्यादा ही थक गए हो तो श्रम परिहार के लिए आध्यात्म ज्ञान का निचोड़(जो बाज़ार में बोतल बंद रूप में मिलता है) धकेल लो हलक के नीचे और आध्यात्म के गहरे समुन्दर में डूब जाओ| कल तो फिर है ही नया सवेरा........ 
अवी घाणेकर

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