Tuesday, January 27, 2015

नया साल



"उम्मीदों वाली धूप , सनशाइन वाली आशा,
रोने की वजहें कम हों, हंसने के बहाने ज्यादा| "
पिछले साल को हमने कुछ इस तरह विदा किया था और देखते देखते वर्तमान वर्ष भी बीत जाने को आतुर है|
इस गीत के शब्दों की तरह ही ये साल उम्मीद और आशा जगाने वाला रहा, रोने की वजहें कुछ कम हुईं और हंसने के बहाने मिले अगरचे थोड़े ही हों|
देश के राजनीतिक भाग्यपटल में श्री नरेन्द्र मोदी जी का अवतरण नई उम्मीद और आशाओं का सैलाब लाने वाली घटना रही| उनके ओज और तेज से भारतीय जनमानस में चमत्कारिक जोश का संचरण हुआ और हम पलक पांवड़े बिछाए नए भारत के उगम की प्रतीक्षा करने लगे| विश्व ने फिर भारत की ओर आदर , सन्मान और आशा के साथ देखना आरम्भ किया|
श्री मोदी जी अगुआई में भारतीय जनता पार्टी की सरकार की कार्यशैली देख कर सभी अचंभित रहे परन्तु उनके चचेरे, फुफेरे, ममेरे भाई बन्दों की करतूतें जनता के मन में सवाल पैदा करती रहीं| श्री मोदी अगर दो कदम आगे बढ़ने की बात कर रहे हैं तो उनके अपने ही उन्हें चार कदम पीछे धकेलने में लगे रहे| जनता दिग्भ्रमित सी समझने में लगी है है की इनका असली लक्ष्य क्या है| नये साल में श्री मोदी जी को अपने परिवार को दुरुस्त रखने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है जिससे जनता का विश्वास उन पर बना रहे और उनके वादों और इरादों पर शक ना किया जा सके|
महंगाई की मार झेल रही जनता को इस साल कुछ राहत मिली तो मुरझाये चेहरों पर थोड़ी हंसी आ सकी| भ्रष्टाचार का राक्षस अब भी अपने अनगिनत चेहरों से हमें मुंह चिढ़ा रहा है और हम फिर अगले साल और श्री मोदी जी की ओर आस लगाये बैठने को विवश हैं| महिलाओं , बच्चियों पर होने वाले बलात्कार और उनके प्रति असहिष्णुता भरा व्यवहार बदस्तूर जारी है और ये एक ही कारण पिछले साल की तमाम उपलब्धियों पर कालिख पोतने के लिए काफी है| जिस देश में माँ, बहिन, पत्नी, पुत्री सुरक्षित नहीं उस देश को भारत माँ कहने का औचित्य मुझे समझ नहीं आता| हमारी कथनी और करनी में ये अंतर विकास की चरम पायदान पर भी हमें शर्मिंदा करता रहेगा ये ध्यान रहे|
नए साल में नयी सोच की जरूरत है विशेष कर हम सभी पुरुषों को| नयी सोच जो नारों से निकल कर वास्तविकता की धरातल पर हमें विकास के साथ साथ सभ्य और अनुशासित भी रखे|
आइये हम कामना करें की ये आने वाला वर्ष पिछले साल की कड़वाहटों को मिटा कर हम सबके जीवन में खुशियों की मिठास घोल दे|

वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आयेगी, इन काली सदियों के सर से, जब रात का आँचल ढलकेगा, जब दुःख का बादल पिघलेगा, जब सुख के सागर छलकेंगे, जब अम्बर झूम के नाचेगा, जब धरती नगमे गायेगी, वो सुबह कभी तो आयेगी..................
आशा है कल की सुबह वो सुबह होगी जिसका सदियों से हम इंतज़ार कर रहे हैं| इसी आशा के साथ आप सबको नए साल की शुभकामनायें ................................

Friday, January 16, 2015

सांसों में बसे हो तुम




पिछले कुछ दिनों से अपनेराम की रातें आँखों ही आँखों में कट रही हैं, ना ना ग़लतफ़हमी में मत रहिये साहब कोई रोमांटिक लफड़ा नहीं है, बात ये है की अपनेराम की नींद आधी रात में अचानक खुल जाने के बाद उन्हें लगता है की अब अगर आँख बंद हुई तो सुबह का मुंह नहीं देख पायेंगे और इसी डर के मारे रातें आँखों में कट रही हैं| करीब चार पांच रातें इसी तरह गुज़ारने के बाद अपनेराम जब दिन में ऊँघने लगे और घर की व्यवस्था चाक चौबंद रहने की बजाय जब अव्यवस्थित दिखने लगी तो उनकी पत्नी को दाल में कुछ काला लगने लगा| तमाम तरह की व्यस्तताओं के बावजूद अपनेराम की पत्नी ने अपनेराम को घेर ही लिया और लगीं जवाब तलब करने| अब अपनेराम क्या बताएं उन्हें कि उनकी रातों की नींद उड़ने का कारण कोई घरेलु, व्यावसायिक या सामाजिक परेशानी नहीं है और ना ही किसी दूसरी वजह के कारण उनकी नींद उड़ गई है| इस दूसरी  वजह के वजूद को नकारने के लिए अपनेराम की दिन की  नींद भी उड़ गई और भरी दोपहर उन्हें तारे दिखाई देने लगे| खैर, साहब किसी तरह समझा बुझा कर जब पत्नी मानी तो असल वजह की छान बीन शुरू हुई|  सारी बातें सुनने के बाद पत्नी जी इस निष्कर्ष पर पहुंची कि अपनेराम की इस परेशानी की वजह सांस की बीमारी हो सकती है या फिर रात ज्यादा ठूंस (खा) लेने के कारण एसिडिटी से फूला हुआ पेट फेंफडों की ज़मीन पर अतिक्रमण कर लेता है और फेंफडे सांस नहीं ले पाते|
 उसी रात से अपनेराम का रात का खाना बंद हो गया और बिचारे, मुंह में आया पानी पी कर भूखे पेट ही सोने लगे| एक दो रातें तो ठीक से गुज़रीं  पर तीसरे दिन से फिर वही ढाक के तीन पात| अब तो मरने के डर के साथ साथ भूख से मरने का डर भी अपनेराम को सोने नहीं देता था| चौथे दिन डरते डरते अपनेराम ने पत्नी से कहा कि सुनती हो, अभी भी रात में नींद खुल जाती है और सांस लेने में कठिनाई होती है| पत्नी आश्चर्य चकित होते हुए बोलीं मुझे तो इन तीन रातों में जरा भी पता नहीं लगा कि तुम्हारी नींद उड़ गई है| अपनेराम अब उन्हें क्या समझाते कि भागवान आप तो बिस्तर पर पड़ते ही खर्राटे मारने लगती हो और अपनेराम करवटें बदल बदल कर बमुश्किल रात १ बजे तक सो पाते हैं और दो से ढाई बजते तक मरने के डर से फिर उठ बैठते हैं| पत्नी के खर्राटों की बात कर अपनेराम रातों की नींद के साथ अपने दिन का चैन भी नहीं खोना चाहते थे अतः चुप रहे| 
आखिरकार पत्नी जी को दया आई और वो अपनेराम  को अपने साथ अस्पताल ले गईं|
अस्पताल का नाम सुन के अपनेराम वैसे ही विचलित हो जाते हैं पर अब जब कोई रास्ता ही नहीं बचा तो मरता क्या ना करता, पहुँच गए अस्पताल| अपनेराम की पत्नी डॉक्टर हैं तो बिना लाइन में लगे छाती रोग विशेषज्ञ के कमरे के बाहर लाइन लगाये हुए दर्जनों मरीजों की बददुआयें लेते हुए, अपनेराम सपत्नीक डॉक्टर के कक्ष में घुस गए| इधर उधर की बातें करने के बाद डॉक्टर साहब अपनेराम का परीक्षण करने लगे और उनकी डॉक्टर पत्नी से बोले इनकी फेंफडों का शक्ति परीक्षण करा लिया जाये "मैडम"| एक दूसरे कमरे में जहाँ कुछ अजीब सी मशीने रखी हुईं थी अपनेराम को खड़ा कर दिया गया| वहां बैठे तकनीशियन ने अपनेराम के मुंह में एक टोंटी घुसेड़ी और अपनेराम को जोर लगा कर उनके अन्दर की पूरी हवा टोंटी में छोड़ने को कहा| जैसा कहा था वैसा करते ही, यानि फूँक मारते ही, अपनेराम कटे पेड़ की तरह नीचे गिर पड़े, अचानक हुई इस घटना से अपनेराम की पत्नी और उस तकनीशियन  की भी हवा खिसक गई| खैर, दो तीन मिनिटों के भीतर अपनेराम के होश वापस आ गए और उनकी पत्नी ने चैन की सांस ली| अपनेराम को हिंदी मुहावरे हवा निकल जाना का सही अर्थ समझ आ गया था, रट्टू तोते की तरह बचपन में याद किये हुए मुहावरे, कहावतें जीवन में ऐसे ही अपना अर्थ समझा जाती हैं| अपनेराम सोच रहे थे की भैय्या वो तो ऐंवे ही खुद को तोप समझे थे, जबकि उनके अस्तित्व का सार बस हवा ही थी, निकल गई तो बस फुस्स.............| चलिए   देर आयद दुरुस्त आयद- ओह, फिर एक मुहावरा|
उस मशीन से निकली रिपोर्ट ले कर अब अपनेराम का काफिला फिर छाती रोग विशेषज्ञ के कमरे में दाखिल हुआ|  डॉक्टर साहब कुछ देर तक रिपोर्ट पढ़ते रहे और फिर रिपोर्ट पर लाल पेन से निशान बनाते हुए बोले "सांस लेने में कोई तकलीफ नहीं, छोड़ने का प्रॉब्लम है|" अपनेराम ठहरे व्यापारी छोड़ने में तकलीफ तो होगी ही, धंधे का उसूल है भैय्या, कुछ ना छोडो और लेने में हिचको मत | यू मस्ट डू ब्रीदिंग एक्सरसाइज़डॉक्टर साहब अंग्रेजी में बोले| अब उन्हें कौन समझाये की  सांस लेना ही अपनेराम के लिए एक एक्सरसाइज़ हो गई है| खैर उनकी अंग्रेजी का अंग्रेजी में उत्तर देते हुए अपनेराम बोले डॉक्टर, ब्रीदिंग इटसेल्फ इज ए बिग एक्सरसाइज़ फॉर मी, यू मस्ट सजेस्ट समथिंग एल्स| डॉक्टर साहब को अपनेराम का मजाक समझ नहीं आया या उसे नजरंदाज करते हुए वो बड़ी संजीदगी और थोड़ी खुन्नस से अपनेराम की पत्नी से बोले मैडम, सबसे पहले तो आप इनकी सिगरेट बंद करवाएं,  इनका बी एम् आई भी ठीक नहीं है , वजन भी कम करने की जरूरत है और फिर इन्हें एक शंख या बांसुरी  ला कर दें, रोज़ शंख बजाने से अपनेआप ही सांस की कसरत हो जाएगी| बाकि घबराने की कोई बात नहीं है सब ठीक हो जायेगा| अपनेराम की पत्नी मुस्कुराते हुए अपनेराम से बोलीं चलो तुम्हारा पंसन्दीदा काम ही कसरत की तरह करना है| यहाँ बता दूँ की अपनेराम मराठी भाषी हैं और मराठी में एक कहावत शंख करणे का मतलब अंग्रेजी में ब्लोइंग वन्स ओन ट्रम्पेट और हिंदी में अपना राग अलापना होता है| अच्छा तो अब अपनेराम की पत्नी हंसी ठिठोली पर उतर आईं हैं, कुछ देर पहले तक तो चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं जब अपनेराम की हवा खिसक गई थी, खैर कोई बात नहीं|
तो साहब, पहले से भरे पूरे  घर में एक शंख और एक बांसुरी की और आमद हुई और अपनेराम शंख  करते(मराठी में) और बांसुरी (चैन की) बजाते सांस की कसरतें करने लगे| वजन कम करने के लिए तरह तरह के डायट चार्ट बनाये गए और शुरू हो गयी अपनेराम को भूखे मारने की कवायद| आठ दस दिन इसी तरह कट गए पर ना वजन कम हुआ ना शंख और बांसुरी बजाने से सांस की सरगम ही सुरीली हो सकी| 
तो साहब डायट चार्ट के टुकड़े टुकड़े करने और शंख को पूजा घर में प्रतिष्ठापित करने के बाद अपनेराम समस्या के समाधान के लिए आत्मविश्लेषण और आत्मनिरीक्षण की दहलीज पर आ खड़े हुए|  और बस, जैसे साक्षात्कार हुआ हो, अपनेराम के ज्ञानचक्षु खुल गए| समस्या कहीं और है और इलाज किसी और का हो रहा है, समाधान निकले कैसे?
बात दरअसल ये है की अपनेराम अपनी पत्नी को प्राणों से भी ज्यादा प्रेम करते है, और आज भी, बच्चों की गधा पचीसी हो जाने के बाद भी, रोमांस का कोई क्षण बेकार नहीं जाने देते| ऐसे ही रोमांटिक क्षणों में वे पत्नी के लिए बार बार गाते रहते हैं दिल की धड़कन में तुम, मेरी साँसों में तुम, रहती हो अजी यही तो  समस्या है| अब शादी के २६/२७ सालों में पत्नी का मोटापा कुछ बढ़ गया है और अपनेराम की दिल की धडकनों और सांस की नलियों में उनका  विचरण जवानी के दिनों जैसा आसानी से नहीं हो पा रहा है| देखिये साहब क्या नाइंसाफी है, करे कोई और भरे कोई| मोटापा पत्नी का बढ़ गया है और डॉक्टर वजन अपनेराम का कम करा रहे हैं|

अब भैय्या, पत्नी वजन कम करे तो ठीक, नहीं तो अपनेराम को अब इसी तरह जाग जाग कर बची रातें गुजारनी हैं, क्यूंकि समस्या का समाधान इतना बिकट और दुखदायी है की अपनेराम की गति सांप छछूंदर वाली हो गई है, ना निगलते बने ना उगलते|

अवी घाणेकर
१५.०१.२०१५


Sunday, November 9, 2014

भीड़ है जिंदगी मौत है एकांत



भीड़

भीड़ में घुटता है दम मेरा, मुझे चाह बस एकांत की|
बंद आँखों में भीड़ है, अधूरे ख्वाबों की,
खुली आँखों में,  मंजिलों औ राहों की|
भीड़ विचारों की मेरे जेहन में, और हजारों की मेरे सेहन में,
भीड़ अनजाने अनचीन्हे चेहरों की मेरे आस पास,
भीड़ में ही हो रहा मेरा जीवन प्रवास ||
भीड़ समस्याओं  की मेरे सामने, भीड़ सलाहों की औरों की जुबां पे,,
रिश्ते नाते भी तो हैं भीड़ का हिस्सा,  भीड़ उनसे उपजे कर्तव्यों की,
भीड़ है जिंदगी और मौत है एकांत ||
भीड़ में घुटता है दम मेरा ,मुझे चाह बस एकांत की|
                                                 - अवी घाणेकर

Wednesday, November 5, 2014

स्वच्छ भारत और हम-२ ( तारे जमीं पर)





सुबह सवेरे मोहल्ले की तमाम भाभियों को सजे धजे देख कर अपने राम को बहुत आश्चर्य हुआ की भैय्या दशहरा, दिवाली और तो और छठ भी बीत गया, फिर ये आज क्या नया त्यौहार आन पड़ा की फजीरे फजीरे भाभियां तमाम, गहने वहने से लदी फदी, मार रंग रोगन करा कर सड़कों पर उतर आईं हैं| अब गौर करने लायक तो कोई नहीं है पर फिर भी गौर से देखा तो पता लगा कि सबकी सब हाथों में डंडों वाली झाड़ू उठाए कचरा पेटी के पास पल्लू से नाक दबाये खड़ीं हैं| अब ये क्या माजरा है राम जाने, क्या कोई थीम पार्टी है जिसमें झाड़ू पर सवार हो कर चुडैलों की तरह जाना है, अपने राम तो समझ नहीं पा रहे| अच्छा पार्टी में जाना है तो जाओ लेकिन ३० मिनट से वहीं खड़े हो कर जाने किसका इन्तजार कर रही हैं ये चुडैलें, ओह माफ़ कीजियेगा, भाभियां| खैर... जब एक आध घंटा बीत गया तो अपनेराम का सबर जवाब देने लगा और जिज्ञासा की खुजली जोर मारने लगी| लाख हिम्मत करने पर भी जब अपने राम भाभियों से पूछने से हिचकिचाते वापस अपने घर में घुसने लगे तो उनकी काम वाली सुमित्रा देवी अचानक प्रकट हुईं| अपनेराम तुरत ही सुमित्रा देवी से भाभियों के झुण्ड के बारे में जानकारियां हासिल करने लगे| कुछ नहीं साहब, सब भाभी लोग आज सड़क की सफाई करने वाली हैं| वो अपने परधान मंत्री जी ने टीवी पर लगाई थी न झाड़ू वैसे ही|  सुमित्रा बोली| सडक सफाई! अरे तो करो ना एक घंटे से बस झाड़ू उठाए खड़ीं हैं ये सब तो| अपने राम ने कहा| साहब, वो पेपर वाले और फोटू खींचने वाले नहीं आये अब तक इसलिए खड़ीं हैं| सुमित्रा ने सफाई दी|ओहो तो ये बात है असली, वही कहूँ अपने घर में तिनका भी ना उठाने वालीं ये सब आज गली मुह्हले की सफाई कैसे करने लगीं? पिछले बीस सालों से अपने राम जब अपने घर के आस पास साफ सफाई करते थे तो यही झुण्ड उन्हें बड़ी हिकारत से देखता था, भला हो श्री मोदी जी का जिन्होंने आज इस झुण्ड को भी झाड़ू पकडवा ही दी|
अपने राम सोचने लगे की भैय्या  मोदी जी ने तो अक्टूबर की २ तारीख को स्वच्छ भारत का नारा दिया था और उसी दिन झाड़ू उठा ली थी फिर पूरे एक महीने बाद इन भाभी जानों को झाड़ू की याद कैसे आई? अब तक क्यूँ नहीं इस सफाई अभियान में शामिल हुईं , आज अचानक ही कैसे याद आई झाड़ू की? अपने राम दिमाग पर जोर दे रहे थे कारण ढूँढने के लिए पर बात उनके समझ में आई नहीं|चलो हमें बात समझ आये ना आये, मोहल्ले वालों को अकल तो आई , ये सोचते हुए अपनेराम घर में घुसे और टीवी पर समाचारों की चैनेल लगा कर बैठ गए| कुछ देर दिल्ली का हाल, काले धन, मोदी जी का नया नारा इत्यादि पर बहस करते करते एक समाचार ने अपने राम को चौंका दिया|
महानायक श्री अमिताभ बच्चन साहब ने मुंबई की सड़कों पर झाड़ू लगाई|’’

तो ये है भैय्या, हमारी भाभियों के सडक पर आने की असल वजह| कुछ नास्तिक लोग बेकार ही साबित करने में लगे रहते हैं की हमारा जीवन सितारों की चाल पर निर्भर नहीं है|देख लीजिये, सचिन तेंदुलकर, सलमान खान, आमिर खान, अमिताभ बच्चन जैसे अंतरिक्ष में विचरने वाले तारे सितारे जब जमीन पर आने लगे तो हमारे मुह्हले की भाभियों को भी सडक पर आना ही पड़ा| हुआ न हमारा जीवन सितारों की चाल से प्रभावित? बात करते हैं................|
बाहर अचानक शोरगुल होने लगा तो अपनेराम  लपक कर खिड़की पर आये तो देखते हैं की सड़क के एक ही हिस्से में करीब १५/२० भाभियां झाड़ू लगा रहीं हैं | अजब नज़ारा देखने को मिल रहा था अपनेराम को, अलग अलग डिजाईन की भाभियां नई नवेली झाडुएँ हाथ में ले कर पोज़ पर पोज़ दिए जा रहीं थीं और ३/४ फोटूग्राफर तडातड उनके फोटू खींच रहे थे|  अपने राम बचपन में पढ़ी रूसी लोक कथाओं की चुड़ैल बुड्ढी ड्द्धो बगा यगा की याद करते हुए खिड़की से हट गए| ५/ १० मिनिटों में सारा शोरगुल ख़तम हो गया और गली में मातमी सन्नाटा पसर गया| अपने राम वापस खिड़की पर आये तो देखते हैं की गली और सड़क पर जो कचरा पड़ा था वो वैसे ही पड़ा है पर सारी भाभियां और उनकी झाड़ू गायब हैं| फोटू और अखबार वाले भी नदारद हैं| ये क्या हुआ साहब, स्वच्छ भारत अभियान समाप्त!
अपनेराम असमंजस में पड़े खिड़की से बाहर झांकते रहे पर उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, ये वाकई कोई अभियान है या बस एक दिखावा जो हर बड़ा और छोटा नागरिक अपनी अपनी औकात से कर रहा है| बड़े बड़ों को राष्ट्रीय टीवी पर जगह मिल रही है और छुटभैय्ये अपने अपने स्थानीय चैनलों  और अख़बारों में छप रहे हैं| कचरा और भारत वैसे ही जैसे थे| 
अपने छोटे से दिमाग पर जोर डालते अपने राम के समझ में एक बात आई की भैय्या, हम भारतीय, नारों से और अभियानों से सुधरने वाले नहीं, हमसे कुछ करवाना है तो हमें मजबूर करो तब ही हम करेंगे| अपनेराम को फिर रुसी लोक कथा में पढ़ा हुआ डंडा प्यारा कष्ट निवारण हारा  याद आने लगा| उस लोक कथा में हर किसी गलती पर, हर जुल्म पर, एक जादुई डंडा लोगों पर बरसने लगता था और लोग मजबूरन सही काम करने लगते थे| वही डंडा हमें चाहिए, हर एक भारतीय के पीछे (पिछवाड़े) अगर ये डंडा पड़ जाए तो हर एक सुधरने लगेगा, ३०० साल की गुलामी और ६७ साल की अर्थहीन आज़ादी ने हमें यही तो सिखाया है की अपने आप देश के हित में कुछ नहीं करने का, अगर मजबूरी में कर गए तो कोई नहीं| 

श्री मोदी जी ने स्वच्छता अभियान का प्रतीक गाँधी जी का चश्मा रखा है यहीं गलती हो गई भैय्या, गाँधी जी ने तो कहा था की बुरा मत देखो, तो बस हम भारतीय गन्दगी को अनदेखा कर रहे हैं, स्वच्छता अभियान का सही प्रतीक गाँधी जी की लाठी होनी चाहिए थी, वैसे भी मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी कहने का चलन देश में बरसों से है ही|
खैर, अब जो हो गया वो हो गया, अपने राम ने सोचा और झाड़ू उठा कर निकल पड़े सड़क की गन्दगी साफ़ करने| भाभियों ने जो कचरा सडक के कोने में छितरा दिया था उसे उठा कर कचरा पेटी में डालने के लिए पहुंचे तो देखते हैं की महीनों का कचरा उस हफ्ते की पेटी में पड़ा है|
सड़क का ये कचरा उसमें डालते ही कचरापेटी में से एक कुतिया हडबडा कर बाहर निकल भागी और भागते भागते कचरा पेटी का आधे से अधिक कचरा सडक पर फैला गई|अपने राम ने अपना माथा पीट लिया , करने गए थे स्वच्छता और देखिये क्या हो गया| कचरा पेटी से गिरा हुआ कचरा उठाते अपनेराम सोच रहे थे की वाकई देशवासी, अपना परिसर साफ़ कर लेंगे, सडक साफ कर लेंगे पर जमा किया हुआ कचरा कहाँ डालेंगें, इन बजबजाती लबालब भरी कचरा पेटियों में, जिन्हें यहाँ रख कर प्रशासन की याददाश्त खो जाती है| मोदी जी ने स्वच्छ भारत का नारा लगा कर झाड़ू तो लगा दी, पर कचरा प्रबंधन पर कुछ नहीं कहा| इसलिए जगह जगह झाड़ू लग रही है पर जमा किये हुए कचरे का कोई ठोस प्रबंध नहीं हो रहा, हर कोई मोदी जी की ओर देख रहा है की शायद कचरा प्रबंधन पर भी कोई नया कार्यक्रम मोदी जी लायेंगे और तभी हम सब की और प्रशासन की नींद टूटेगी| कचरे से विदेशों में कहीं बिजली बन रही है तो कहीं उसे सड़क बनाने में इस्तमाल किया जा रहा है, ऐसा ही कोई उपयोग मोदी जी शायद अब ,देश को बताएँगे और इन कचरा पेटियों का भाग्य खुल जायेगा|  
सारा गिरा हुआ कचरा उठा कर पेटी को व्यवस्थित करके अपनेराम घर की ओर जैसे ही निकले, देखते हैं की सड़क पर १०/१२ भैंसों का झुण्ड जुगाली करते हुए आ रहा है| एक झुण्ड गया और दूसरा हाज़िर, अपनेराम ने सोचा| ये गाय भैंसे सड़कों पर करती क्या हैं, ये आज तक अपनेराम को नहीं समझ आया| माना की देश की सड़कें गड्ढों से भरी है पर अभी तक उन गड्ढों में घांस नहीं उगी है, कि चरने चली आती हैं, अच्छा इनको हांकने के लिए कोई ग्वाला भी साथ नहीं होता, जब मर्जी, जहाँ मर्जी ये झुण्ड जुगाली करते घुस आता है| अपने राम मना रहे थे की ये झुण्ड आराम से सड़क से गुजर जाये पर आज तो भैय्या, स्वच्छ भारत अभियान का समापन होना ही था| उन १०/१२ भैंसों ने शायद ज्यादा ही चारा खा लिया था, और जो हम इंसानों को ज्यादा रेशेदार खाना खाने से होता है, वही इन भैंसों का हाल हुआ| सड़क के बीचों बीच गोबर से चित्रकारी करते हुए, झुण्ड गली से गुजर गया| अच्छी खासी साफ़ सडक अब गोबर से पटी पड़ी थी| अपनेराम आसमान में इश्वर को खोजते घर को चल पड़े| अभी घर पहुँच ही रहे थे कि देखा, पड़ोस वाली भाभी जी अपनी चार पहिया गाड़ी से उन तमाम फोटूग्राफरों को पहुँचाने निकलीं हैं| अपनेराम उन्हें गोबर से बचा कर चलने के लिए नसीहत देने ही वाले थे कि उनकी गाडी सड़क पर पड़े गोबर में घुसी और फच फचाता गोबर अपनेराम के खुले मुंह में जा घुसा| अब तो हद हो गई, स्वच्छ भारत, स्वच्छ भारत, का गुणगान करने वाले और तन मन धन से उस अभियान को पिछले २० सालों से चलाने वाले अपनेराम गोबर से सने खड़े थे और स्वच्छता का महज दिखावा करने वाली भाभियाँ स्थानीय अख़बारों और टीवी पत्रिकाओं में छप रहीं थीं| गोबर सने अपनेराम बीच सड़क खड़े खड़े सोच रहे थे, भाड़ में जाये स्वछता अभियान, हम तो सालों से कर ही रहे हैं, स्वच्छता अपने आस पास की, और करते रहेंगे, हमें किसी विशेष अभियान की गरज नहीं|  इस देश में स्वच्छता अभियान की नहीं अनुशासन अभियान की जरूरत है जी, अनुशासित करने के लिए दंड का प्रावधान होना चाहिए और दंड के लिए डंडा जरूरी है|स्वच्छ भारत अभियान को कोसते, अपने राम चल पड़े गुसलखाने की ओर स्वच्छ होने के लिए|

                                                                           - अवी घाणेकर


४ नवम्बर २०१४