Friday, January 16, 2015

सांसों में बसे हो तुम




पिछले कुछ दिनों से अपनेराम की रातें आँखों ही आँखों में कट रही हैं, ना ना ग़लतफ़हमी में मत रहिये साहब कोई रोमांटिक लफड़ा नहीं है, बात ये है की अपनेराम की नींद आधी रात में अचानक खुल जाने के बाद उन्हें लगता है की अब अगर आँख बंद हुई तो सुबह का मुंह नहीं देख पायेंगे और इसी डर के मारे रातें आँखों में कट रही हैं| करीब चार पांच रातें इसी तरह गुज़ारने के बाद अपनेराम जब दिन में ऊँघने लगे और घर की व्यवस्था चाक चौबंद रहने की बजाय जब अव्यवस्थित दिखने लगी तो उनकी पत्नी को दाल में कुछ काला लगने लगा| तमाम तरह की व्यस्तताओं के बावजूद अपनेराम की पत्नी ने अपनेराम को घेर ही लिया और लगीं जवाब तलब करने| अब अपनेराम क्या बताएं उन्हें कि उनकी रातों की नींद उड़ने का कारण कोई घरेलु, व्यावसायिक या सामाजिक परेशानी नहीं है और ना ही किसी दूसरी वजह के कारण उनकी नींद उड़ गई है| इस दूसरी  वजह के वजूद को नकारने के लिए अपनेराम की दिन की  नींद भी उड़ गई और भरी दोपहर उन्हें तारे दिखाई देने लगे| खैर, साहब किसी तरह समझा बुझा कर जब पत्नी मानी तो असल वजह की छान बीन शुरू हुई|  सारी बातें सुनने के बाद पत्नी जी इस निष्कर्ष पर पहुंची कि अपनेराम की इस परेशानी की वजह सांस की बीमारी हो सकती है या फिर रात ज्यादा ठूंस (खा) लेने के कारण एसिडिटी से फूला हुआ पेट फेंफडों की ज़मीन पर अतिक्रमण कर लेता है और फेंफडे सांस नहीं ले पाते|
 उसी रात से अपनेराम का रात का खाना बंद हो गया और बिचारे, मुंह में आया पानी पी कर भूखे पेट ही सोने लगे| एक दो रातें तो ठीक से गुज़रीं  पर तीसरे दिन से फिर वही ढाक के तीन पात| अब तो मरने के डर के साथ साथ भूख से मरने का डर भी अपनेराम को सोने नहीं देता था| चौथे दिन डरते डरते अपनेराम ने पत्नी से कहा कि सुनती हो, अभी भी रात में नींद खुल जाती है और सांस लेने में कठिनाई होती है| पत्नी आश्चर्य चकित होते हुए बोलीं मुझे तो इन तीन रातों में जरा भी पता नहीं लगा कि तुम्हारी नींद उड़ गई है| अपनेराम अब उन्हें क्या समझाते कि भागवान आप तो बिस्तर पर पड़ते ही खर्राटे मारने लगती हो और अपनेराम करवटें बदल बदल कर बमुश्किल रात १ बजे तक सो पाते हैं और दो से ढाई बजते तक मरने के डर से फिर उठ बैठते हैं| पत्नी के खर्राटों की बात कर अपनेराम रातों की नींद के साथ अपने दिन का चैन भी नहीं खोना चाहते थे अतः चुप रहे| 
आखिरकार पत्नी जी को दया आई और वो अपनेराम  को अपने साथ अस्पताल ले गईं|
अस्पताल का नाम सुन के अपनेराम वैसे ही विचलित हो जाते हैं पर अब जब कोई रास्ता ही नहीं बचा तो मरता क्या ना करता, पहुँच गए अस्पताल| अपनेराम की पत्नी डॉक्टर हैं तो बिना लाइन में लगे छाती रोग विशेषज्ञ के कमरे के बाहर लाइन लगाये हुए दर्जनों मरीजों की बददुआयें लेते हुए, अपनेराम सपत्नीक डॉक्टर के कक्ष में घुस गए| इधर उधर की बातें करने के बाद डॉक्टर साहब अपनेराम का परीक्षण करने लगे और उनकी डॉक्टर पत्नी से बोले इनकी फेंफडों का शक्ति परीक्षण करा लिया जाये "मैडम"| एक दूसरे कमरे में जहाँ कुछ अजीब सी मशीने रखी हुईं थी अपनेराम को खड़ा कर दिया गया| वहां बैठे तकनीशियन ने अपनेराम के मुंह में एक टोंटी घुसेड़ी और अपनेराम को जोर लगा कर उनके अन्दर की पूरी हवा टोंटी में छोड़ने को कहा| जैसा कहा था वैसा करते ही, यानि फूँक मारते ही, अपनेराम कटे पेड़ की तरह नीचे गिर पड़े, अचानक हुई इस घटना से अपनेराम की पत्नी और उस तकनीशियन  की भी हवा खिसक गई| खैर, दो तीन मिनिटों के भीतर अपनेराम के होश वापस आ गए और उनकी पत्नी ने चैन की सांस ली| अपनेराम को हिंदी मुहावरे हवा निकल जाना का सही अर्थ समझ आ गया था, रट्टू तोते की तरह बचपन में याद किये हुए मुहावरे, कहावतें जीवन में ऐसे ही अपना अर्थ समझा जाती हैं| अपनेराम सोच रहे थे की भैय्या वो तो ऐंवे ही खुद को तोप समझे थे, जबकि उनके अस्तित्व का सार बस हवा ही थी, निकल गई तो बस फुस्स.............| चलिए   देर आयद दुरुस्त आयद- ओह, फिर एक मुहावरा|
उस मशीन से निकली रिपोर्ट ले कर अब अपनेराम का काफिला फिर छाती रोग विशेषज्ञ के कमरे में दाखिल हुआ|  डॉक्टर साहब कुछ देर तक रिपोर्ट पढ़ते रहे और फिर रिपोर्ट पर लाल पेन से निशान बनाते हुए बोले "सांस लेने में कोई तकलीफ नहीं, छोड़ने का प्रॉब्लम है|" अपनेराम ठहरे व्यापारी छोड़ने में तकलीफ तो होगी ही, धंधे का उसूल है भैय्या, कुछ ना छोडो और लेने में हिचको मत | यू मस्ट डू ब्रीदिंग एक्सरसाइज़डॉक्टर साहब अंग्रेजी में बोले| अब उन्हें कौन समझाये की  सांस लेना ही अपनेराम के लिए एक एक्सरसाइज़ हो गई है| खैर उनकी अंग्रेजी का अंग्रेजी में उत्तर देते हुए अपनेराम बोले डॉक्टर, ब्रीदिंग इटसेल्फ इज ए बिग एक्सरसाइज़ फॉर मी, यू मस्ट सजेस्ट समथिंग एल्स| डॉक्टर साहब को अपनेराम का मजाक समझ नहीं आया या उसे नजरंदाज करते हुए वो बड़ी संजीदगी और थोड़ी खुन्नस से अपनेराम की पत्नी से बोले मैडम, सबसे पहले तो आप इनकी सिगरेट बंद करवाएं,  इनका बी एम् आई भी ठीक नहीं है , वजन भी कम करने की जरूरत है और फिर इन्हें एक शंख या बांसुरी  ला कर दें, रोज़ शंख बजाने से अपनेआप ही सांस की कसरत हो जाएगी| बाकि घबराने की कोई बात नहीं है सब ठीक हो जायेगा| अपनेराम की पत्नी मुस्कुराते हुए अपनेराम से बोलीं चलो तुम्हारा पंसन्दीदा काम ही कसरत की तरह करना है| यहाँ बता दूँ की अपनेराम मराठी भाषी हैं और मराठी में एक कहावत शंख करणे का मतलब अंग्रेजी में ब्लोइंग वन्स ओन ट्रम्पेट और हिंदी में अपना राग अलापना होता है| अच्छा तो अब अपनेराम की पत्नी हंसी ठिठोली पर उतर आईं हैं, कुछ देर पहले तक तो चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं जब अपनेराम की हवा खिसक गई थी, खैर कोई बात नहीं|
तो साहब, पहले से भरे पूरे  घर में एक शंख और एक बांसुरी की और आमद हुई और अपनेराम शंख  करते(मराठी में) और बांसुरी (चैन की) बजाते सांस की कसरतें करने लगे| वजन कम करने के लिए तरह तरह के डायट चार्ट बनाये गए और शुरू हो गयी अपनेराम को भूखे मारने की कवायद| आठ दस दिन इसी तरह कट गए पर ना वजन कम हुआ ना शंख और बांसुरी बजाने से सांस की सरगम ही सुरीली हो सकी| 
तो साहब डायट चार्ट के टुकड़े टुकड़े करने और शंख को पूजा घर में प्रतिष्ठापित करने के बाद अपनेराम समस्या के समाधान के लिए आत्मविश्लेषण और आत्मनिरीक्षण की दहलीज पर आ खड़े हुए|  और बस, जैसे साक्षात्कार हुआ हो, अपनेराम के ज्ञानचक्षु खुल गए| समस्या कहीं और है और इलाज किसी और का हो रहा है, समाधान निकले कैसे?
बात दरअसल ये है की अपनेराम अपनी पत्नी को प्राणों से भी ज्यादा प्रेम करते है, और आज भी, बच्चों की गधा पचीसी हो जाने के बाद भी, रोमांस का कोई क्षण बेकार नहीं जाने देते| ऐसे ही रोमांटिक क्षणों में वे पत्नी के लिए बार बार गाते रहते हैं दिल की धड़कन में तुम, मेरी साँसों में तुम, रहती हो अजी यही तो  समस्या है| अब शादी के २६/२७ सालों में पत्नी का मोटापा कुछ बढ़ गया है और अपनेराम की दिल की धडकनों और सांस की नलियों में उनका  विचरण जवानी के दिनों जैसा आसानी से नहीं हो पा रहा है| देखिये साहब क्या नाइंसाफी है, करे कोई और भरे कोई| मोटापा पत्नी का बढ़ गया है और डॉक्टर वजन अपनेराम का कम करा रहे हैं|

अब भैय्या, पत्नी वजन कम करे तो ठीक, नहीं तो अपनेराम को अब इसी तरह जाग जाग कर बची रातें गुजारनी हैं, क्यूंकि समस्या का समाधान इतना बिकट और दुखदायी है की अपनेराम की गति सांप छछूंदर वाली हो गई है, ना निगलते बने ना उगलते|

अवी घाणेकर
१५.०१.२०१५


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