Tuesday, January 27, 2015

नया साल



"उम्मीदों वाली धूप , सनशाइन वाली आशा,
रोने की वजहें कम हों, हंसने के बहाने ज्यादा| "
पिछले साल को हमने कुछ इस तरह विदा किया था और देखते देखते वर्तमान वर्ष भी बीत जाने को आतुर है|
इस गीत के शब्दों की तरह ही ये साल उम्मीद और आशा जगाने वाला रहा, रोने की वजहें कुछ कम हुईं और हंसने के बहाने मिले अगरचे थोड़े ही हों|
देश के राजनीतिक भाग्यपटल में श्री नरेन्द्र मोदी जी का अवतरण नई उम्मीद और आशाओं का सैलाब लाने वाली घटना रही| उनके ओज और तेज से भारतीय जनमानस में चमत्कारिक जोश का संचरण हुआ और हम पलक पांवड़े बिछाए नए भारत के उगम की प्रतीक्षा करने लगे| विश्व ने फिर भारत की ओर आदर , सन्मान और आशा के साथ देखना आरम्भ किया|
श्री मोदी जी अगुआई में भारतीय जनता पार्टी की सरकार की कार्यशैली देख कर सभी अचंभित रहे परन्तु उनके चचेरे, फुफेरे, ममेरे भाई बन्दों की करतूतें जनता के मन में सवाल पैदा करती रहीं| श्री मोदी अगर दो कदम आगे बढ़ने की बात कर रहे हैं तो उनके अपने ही उन्हें चार कदम पीछे धकेलने में लगे रहे| जनता दिग्भ्रमित सी समझने में लगी है है की इनका असली लक्ष्य क्या है| नये साल में श्री मोदी जी को अपने परिवार को दुरुस्त रखने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है जिससे जनता का विश्वास उन पर बना रहे और उनके वादों और इरादों पर शक ना किया जा सके|
महंगाई की मार झेल रही जनता को इस साल कुछ राहत मिली तो मुरझाये चेहरों पर थोड़ी हंसी आ सकी| भ्रष्टाचार का राक्षस अब भी अपने अनगिनत चेहरों से हमें मुंह चिढ़ा रहा है और हम फिर अगले साल और श्री मोदी जी की ओर आस लगाये बैठने को विवश हैं| महिलाओं , बच्चियों पर होने वाले बलात्कार और उनके प्रति असहिष्णुता भरा व्यवहार बदस्तूर जारी है और ये एक ही कारण पिछले साल की तमाम उपलब्धियों पर कालिख पोतने के लिए काफी है| जिस देश में माँ, बहिन, पत्नी, पुत्री सुरक्षित नहीं उस देश को भारत माँ कहने का औचित्य मुझे समझ नहीं आता| हमारी कथनी और करनी में ये अंतर विकास की चरम पायदान पर भी हमें शर्मिंदा करता रहेगा ये ध्यान रहे|
नए साल में नयी सोच की जरूरत है विशेष कर हम सभी पुरुषों को| नयी सोच जो नारों से निकल कर वास्तविकता की धरातल पर हमें विकास के साथ साथ सभ्य और अनुशासित भी रखे|
आइये हम कामना करें की ये आने वाला वर्ष पिछले साल की कड़वाहटों को मिटा कर हम सबके जीवन में खुशियों की मिठास घोल दे|

वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आयेगी, इन काली सदियों के सर से, जब रात का आँचल ढलकेगा, जब दुःख का बादल पिघलेगा, जब सुख के सागर छलकेंगे, जब अम्बर झूम के नाचेगा, जब धरती नगमे गायेगी, वो सुबह कभी तो आयेगी..................
आशा है कल की सुबह वो सुबह होगी जिसका सदियों से हम इंतज़ार कर रहे हैं| इसी आशा के साथ आप सबको नए साल की शुभकामनायें ................................

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