Tuesday, January 27, 2015

वसंत दूत



प्रिय आज नहीं है संग मेरे,  
मैं क्या वसन्त का गान करूँ,
  फूलें उपवन, उल्हासित मन,  
पर कैसे मैं मधुपान करूँ! ।।
इस मिलन मास में विरही मन,  
उद्वेलित है प्रति पल, प्रति क्षण,  
श्यामल धरती, जगमग अम्बर,
 प्रिय संग सुखी हर्षित जन जन,  
मैं प्रेम पियासा चातक हूँ,
 घनश्याम मिलन को तरसे तन,  
इस विरह दशा में तुम ही कहो, ऋतु राज तुम्हारा मान करूँ ?।।
प्रिय आज नहीं है संग मेरे,  
मैं क्या वसंत का गान करूँ........
।।विरह अग्नि से तप्त हृदय,  
जैसे पलाश आच्छादित वन,

प्रिय मिलन खिले वासन्ती रंग,
 प्रिय दर्शन से हों तृप्त नयन,  
अब तुम ही मेरे दूत बनो,  
ढूंढो मेरा श्यामल प्रियतम,
 आल्हादित मन, उद्वेलित तन, तब ऋतुराज तेरा गुणगान करूँ।।
प्रिय आज नहीं है संग मेरे,  
मैं क्या वसंत का गान करूँ,  
फूलें उपवन, उल्हासित मन,  
पर कैसे मैं मधुपान करूँ।।।

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