Wednesday, April 17, 2013

मन अरण्य !


मन अरण्य
कहीं पढ़ा था कि,मन अरण्य है,
हाँ शायद सही है ,मन अरण्य है |
||पशु जैसे पाते हैं अभय,मानव निर्मित उद्यानों में,
वैसे ही पातें हैं अभय ये विचार,मनुष्य के मन उपवन में,
वर्जित है अभय पाए पशुओं की हत्या,और इन विचारों की भी ||
||कहीं पढ़ा था की विचार अजरामर हैं,हाँ शायद सही है,विचार अजर- अमर हैं,
तभी तो कितने दावानल,जला गए,तन को,मन को और मनु को,
पर नहीं झुलसा सके इन अभय प्राप्त विचारों को||

                                           - अवी घाणेकर

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