आज साउथ आफ्रिका से दो दुखद खबरे सुनने को मिलीं| एक ऐतिहासिक पुरुष नेल्सन
मंडेला की मृत्यु और दुसरी भारतीय क्रिकेट कि कब्र खुदने की|
मै हमेशा से ही नेल्सन मंडेला का प्रशंसक रहा हूँ और उनके आजीवन कार्यों से प्रभावित भी| साठ के दशक
से २७ साल साऊथ अफ्रीका की विभिन्न जेलों में बंद कर, अनेक पाशविक यातनाएं देने पर
भी उनके जज्बे और उनके आदर्शों को वहां की नस्लवादी सरकार तोड़ नहीं पाई, और आखिर
वैश्विक दबाव और अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के अनवरत प्रयत्नों और विरोध के कारण
नेल्सन मंडेला जेल से बाहर आये| इतनी लम्बी अवधि तक नस्लवादियों के अमानवीय
अत्याचारों को सहन कर भी उनके भाषणों में या उनके किसी कार्य से कभी भी उन्होंने
गोरे नस्लवादियों के खिलाफ प्रतिशोध या बदले की भावना को हवा नहीं दी और सतत इसी
प्रयास में रहे की कैसे श्वेत और अश्वेत आपस में घुलमिल कर रहे और बराबरी का मौका
पाते रहें| सन १९९४ के चुनावों में ए एन सी
भारी बहुमत से विजयी हुई और नेल्सन मंडेला राष्ट्रपति चुने गए|सत्ता हाथ
में आने पर भी उनके कार्यकलापों से उनकी विनम्रता और राष्ट्र प्रेम का जज्बा कभी भी ओझल नहीं हुआ| उनका कार्यकाल साऊथ
अफ्रीका को एक नए पायदान पर स्थापित कर गया, एक ऐसा देश जिसने ४००/५०० साल नस्लवाद
का दंश झेला पर सत्ता परिवर्तन के बाद जिसने रंगभेद को त्याग कर शेत और अश्वेतों
को सामान अधिकार और मौका दिया| १९९९ में अपने कार्यकाल के ५ वर्ष बाद स्वयं ही
सत्ता सुख त्याग कर शासन की बागडोर अपने दूसरे साथियों को सौंप देना आज के वैश्विक
परिपेक्ष में अविचारणीय है|मैं और मेरे साथ विश्व की अरबों सामान्य जनता उनके इस
फैसले से अभिभूत हो गई और उनका स्थान हमारे मन में हिमालय के शिखर से भी ऊँचा उठ
गया| १९९९ से सतत वो वैश्विक स्तर पर किसी न किसी समाज कल्याण के कार्य में लगे
रहे और करीब २५० पुरस्कारों ने उन्हें
सम्मानित कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस किया,, इसमें शांति का नोबल, भारत रत्न,
आदि कई पुरस्कार शामिल हैं|
नेल्सन मंडेला ने साऊथ अफ्रीका के दलित और शोषित वर्ग का प्रतिनिधित्व किया और
वर्षों के संघर्ष के बाद सत्ता की बागडोर सम्हाली| इतने संघर्ष के बाद भी पूर्व
सत्ताधीशों के प्रति प्रतिशोध लेने का कोई विचार भी उन्हें छू नहीं पाया| सत्ता
ऐसा नशा है की जिसकी खुमारी में भ्रष्टाचार का चखना बहुत स्वादिष्ट लगता है परन्तु
साऊथ अफ्रीका की १९९४ से अब तक की सरकार में भ्रष्टाचार का कोई मामला विश्व के
सामने आया हो मुझे याद नहीं पड़ता|
अब अगर हम भारतीय परिपेक्ष में नेल्सन मंडेला को देखें तो पाएंगे की हमारे
राजनैतिक इतिहास में शायद ही कोई ऐसा संत जन्मा होगा जो दशकों के संघर्ष के बाद
हाथ आई सत्ता से मुंह मोड़ ले| हमारे यहाँ तो कब्र में पैर लटकाए हुए भी हम कुर्सी
का ही सपना देखते रहते हैं| और तो और यदि कुर्सी हाथ आ गयी तो उसे स्वयं के पास ही
रखने के लिए अनेकों तंत्र और कुतंत्र का सहारा लेते हैं| लोकतंत्र के महापर्व कहे
जाने वाले चुनावों को हम एक महायुद्ध की भांति ही देखते हैं| पर्व से युद्ध तक का
परिवर्तन हमें असंख्य कुचक्रों को करने पर मजबूर करता है| कुछ राज्यों में तो
चुनाव एक दहशत ही बन गए हैं और जिसकी लाठी उसकी भैंस की तर्ज पर ही होते हैं|
अब अगर दलित शोषित वर्ग का तथाकथित प्रतिनिधित्व करने वाले दलों या व्यक्ति
विशेषों का रुख करें तो पाएंगे की ऐसे दल या व्यक्ति अपनी अपनी झोली भरने में ही
लगे हुए हैं और अवसरवादिता की पराकाष्टा के नित नए मापदंड बना रहे हैं| कुछ राज्य
विशेषों में तो सरकारें बनती ही हैं घोटाले करने के लिए, आज एक दल और कल दूसरे दल
के समर्थन से या समर्थन दे कर, उन्हें राज्य की उन्नति या जनता की खुशहाली से कोई
सरोकार नहीं है, उनका काम है बेईमानी से धन कमा कर शान-ओ-शोकत की जिंदगी जीना|
शर्म तो तब आती है जब ये दल गाँधी, अम्बेडकर, मंडेला जैसे राजनैतिक महापुरुषों का
नाम ले कर अपनी अपनी राजनितिक रोटियां सेंकतें हैं|
माफ़ कीजिये मैं विषयांतर कर गया परन्तु क्या करूँ, नेल्सन मंडेला की महानता का
जिक्र करते ही मुझे हमारे आज के राजनैतिक टुच्चेपन
का अहसास होने लगता है| खैर ... भारतीय क्रिकेट की बात फिर कभी क्यूंकि हमारी टीम
हमें ये मौका फिर जल्द ही देगी ये यकीन है|
अंत में इश्वर से यही प्रार्थना है की वो दिवंगत नेल्सन मंडेला की आत्मा को
शांति दें और यदि इश्वर उन्हें पुनर्जन्म देने
का विचार कर रहा हो तो उनका जन्म भारत में हो|
तथास्तु!!!!!!
- अवी घाणेकर
6.१२.२०१३
No comments:
Post a Comment