Wednesday, December 11, 2013

दिल्ली का दिल



दिल्ली के चुनाव परिणाम आने के बाद भी दिल्ली का दिल उदास है| बिखरा हुआ चुनाव परिणाम दिल्ली को असमंजस की स्थिति में डाले हुए है| आम आदमी पार्टी एक नए राजनितिक दल के तौर पर उभरा है और राष्ट्रीय दलों को नाकों चने चबवा रहा है| उसके २७ विधायक चुने जा चुके हैं पर पूर्ण बहुमत किसी भी पार्टी को नहीं मिला है| बी जे पी के ३२ विधायक हैं और वो सरकार बनाने से हिचक रही है| ऐसे में दिल्ली की जनता ठगा हुआ महसूस कर रही दिखती है| इसका कोई हल जल्द ही निकलना जरूरी है, पुनः चुनावों में उतरना इसका हल नहीं हो सकता ये निश्चित है, आखिर चुनाव  का खर्च तो जनता की गाढ़ी कमाई से ही होता है| इस सन्दर्भ में दोनों दलों को विचार करना चाहिए|हठधर्मिता छोड़ जनता की इच्छा का सम्मान करना चाहिए| क्या हो सकता है इस परिस्थिति में  इसका विचार करें तो मुझे एक बहुत आदर्श हल दिखाई पड़ता है|
बी जे पी और ‘आप’ इन दोनों को मिल कर सरकार का गठन करना दिल्ली को इस असमंजस से निकाल सकता है| ‘आप’ जिन मुद्दों को ले कर चुनावों में उतरी है उन मुद्दों को यथार्थ में उतरने का ये एक अच्छा मौका हो सकता है| ‘आप’ राजनीती से भ्रष्टाचार और गन्दगी को हटाने का मन रखती है तो बी जे पी के साथ सरकार में शामिल हो कर बी जे पी की तथाकथित गन्दगी साफ़ कर सकती है| मैं कांग्रेस का साथ लेने के लिए इसलिए नहीं कहूँगा क्यूंकि कांग्रेस की पूरी की पूरी चुनरी  ही काली है, बी.जे.पी. की चुनर कुछ तो साफ़ है| अब ‘आप’ के पास ये सिद्ध करने का मौका है की भाई हम तो जो कहते हैं वो ही करते हैं अगर दूसरा दल नहीं सुधरेगा तो जनता उसे सबक सिखलाए|  यहाँ बी.जे.पी भी खुद को एक आदर्शवादी पार्टी के तौर पर पुनर्स्थापित कर सकती है, अरे हम नहीं कह रहे की वो अपनी विचारधारा छोड़ कर नई राहें बना ले  पर स्वयं को राष्ट्रवादी और राष्ट्रप्रेमी कहने वाली पार्टी राष्ट्र और जनता के हित  में स्वयं सुधार  के रास्ते  पर तो चल ही सकती है|   अच्छा, अगर ‘आप’ को आगे कभी भी लगता है कि बी.जे.पी.  साझा न्यूनतम कार्यक्रम से भटक रही है तो वो तत्क्षण जनता के बीच जा कर अपनी बात रख सकती है और जनता उसे निश्चित ही हाथों हाथ लेगी|
 आप भी उसी विचारधारा की बात करती है परन्तु सुर कुछ अलग है|अब साहब अगर एक अच्छी धुन बनानी हो तो सात सुरों के सुन्दर मिलन से ही उसमे मधुरता और रस आता है| वही कुछ प्रयोग दिल्ली  के राजनितिक आकाश में भी हो जाये और देखें तो की कैसी सुहानी धुन बनती है| एक कहावत दोनों दलों ने याद रखनी चाहिए कि आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी मिले ना पूरी पावे| अतः मेरी  दोनों दलों के महानुभावों से नम्र विनती है की वो पहल करें और दिल्ली को खुश कर दें| आप को इस पहल से फायदा ही होगा और देश को भी|
                                                     
 
-  अवी घाणेकर
३०१०, सेक्टर ४/सी,
बोकारो स्टील सिटी

१२.१२.२०१३

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