Wednesday, April 17, 2013

दौलत


                                             दौलत
अधनींदी अलसाई आँखों के पोरों पर ,सुनहरी धुप नज़र आई है,
चाँद के चेहरे पर जैसे अब, एक सूरज की परछाई है|

रात की खांसी अब भी छलके गाल के गड्ढों में,
इस सजीले मुखड़े पर, दर्द की परत बिछाई है|

करवट बदल- बदल कर बीता, रात का हर इक लम्हा,
बिस्तर की सलवटें "अवी", अब माथे पर सजाई हैं|

भोर की प्याली पी लेती, सब दर्द गुजरती रातों के,
आज मगर ये भोर भी देखो, इतने देर से आई है|

क्या सोचूं क्या याद करूँ, बस चुभन है टूटे शीशों की,
अक्सर वो भोर की प्याली, तो मैंने ही तोड़ गिराई है|

टूटे ख्वाबों के कुछ टुकडे, कुछ लोगों के चुभते फिकरे,
वो नमक आंसुओं का मेरे, कुछ रिश्ते जिन पर काई  है,
कुछ भोर रात के बीच के पल, कुछ दर्द भरे मेरे नगमें,
अपनी हस्ती में तो हमने,  बस दौलत यही कमाई है ||
                                                                         
                                                                 - अवी घाणेकर

विरोधाभास


विरोधाभास

चाह हो भौतिक सुखों की,और सादगी जीवन में हो,
पाँव मेरे हों  धरा पर,दृष्टि हो आकाश में|
मिलन में हो शूल,विरह में खिल रहें हों फूल जब,
प्रणय की वर्षा तो हो,मन शुष्क हो मधुमास में,
दृष्टि चंचल,फिर भी प्रियतम तू हो मेरे पाश में,
क्यूँ न जाने फँस गया हूँ,इस विरोधाभास में ||१||
बंधनों से मुक्त ‘अवी,उड़ता फिरूँ आकाश में,
प्रेम और कर्त्तव्य के सम्बन्ध भी हों पास में,
हाँ नहीं की इस डगर पर,संतुलन स्थिरता भी हो,
कर रहा अस्थिर स्वयं को,इस बेतुके प्रयास में ||२||

                                                                                    - अवी घाणेकर

नव प्रभात !


नव प्रभात
जिंदगी है चार दिन की,
तू मजा कर,
सोचे क्यूँ दुनिया जहाँ की,
तू मजा कर,
देश चाहे गर्त में ही जा रहा हो,
तू मजा कर,
नेता,दीमक बन के इसको खा रहा हो,
तू मजा कर,
सीमा पर अब युद्ध चाहे चल रहा हो,
तू मजा कर,
मर रहा हो देश का जवान फिर भी,
तू मजा कर,
कैसे दुश्मन घुस गया कश्मीर में,
तू मजा कर,
न हो चिंतित इस स्थिति से,
तू मजा कर,
काम ये सरकार का है,
तू मजा कर,
दामाद सरकारी अफसर बने हैं,
तू मजा कर,
खा रहे जनता का पैसा,
तू मजा कर,
क्यूँ तेरा ही खून खौले,
तू मजा कर,
और भी तो है वो बोलें
तू मजा कर,
छीनता रोटी गरीबों की कोई,
तू मजा कर,
रोटी है, पानी नहीं है ,
तू मजा कर,
क्या अमीरी क्या गरीबी,
तू मजा कर,
न तेरा नाता करीबी,
तू मजा कर,
बढ़ रही है गुंडा गर्दी,
तू मजा कर,
बिक रही पुलिस की वर्दी,
तू मजा कर,
किसलिए रोता है भाई,
तू मजा कर,
मौत तो आनी थी आई,
तू मजा कर,
लड़ रहा भाई से भाई,
तू मजा कर,
बढ़ रही वर्णों की खाई,
तू मजा कर,
बाढ़ चुनावों की आई ,
तू मजा कर,
सरकार कोई टिक न पाई,
तू मजा कर,
कुर्सी से है प्यार सबको,
तू मजा कर,
देश से सरोकार किसको,
तू मजा कर,
भारत से बन गया इंडिया,
तू मजा कर,
माथे से खो गई बिंदिया,
तू मजा कर,
श्लील और अश्लील  की सोच मत,
तू मजा कर,
सब हैं भ्रष्टाचार में रत,
तू मजा कर,
माँ बहिन की लुटती सरेआम इज्जत,
तू मजा कर,
उसकी माँ थी,क्या ‘अवी’ तुझको है दिक्कत,
तू मजा कर.
पर है गलत इस वक्त तेरा सोचना,के तू मजा कर,
देख चारों ओर अपनी दृष्टि का उपयोग कर,
देश का ये रूप है कैसा भयंकर,जाग ले अवतार बन तू प्रलयंकर,
उठ,स्वयं,इन कुम्भ्करणों को उठा,बस स्वयं का सोचते उनको मिटा,
कर स्वयं को शुद्ध,औरों को बता,स्वार्थ छोड़ें और दें लालच को धता,
गर बचा यह देश तो हम भी बचेंगें,प्रण करें अन्याय अब हम ना सहेंगे,
अस्मिता को राष्ट्र की अक्ष्क्षुण रखेंगे.
चल बजा बिगुल ‘अवी नव क्रांति का,चीर दे आकाश भय और भ्रान्ति का,

उठ ऐ धरतीपुत्र  बीतेगी काली रात, सूर्य से ले स्फूर्ति,दे अँधेरे को मात,
फिर दिखा इस राष्ट्र को तू नव प्रभात,फिर दिखा इस राष्ट्र को तू नव प्रभात|

                                                                                                                    - अवी घाणेकर

मन अरण्य !


मन अरण्य
कहीं पढ़ा था कि,मन अरण्य है,
हाँ शायद सही है ,मन अरण्य है |
||पशु जैसे पाते हैं अभय,मानव निर्मित उद्यानों में,
वैसे ही पातें हैं अभय ये विचार,मनुष्य के मन उपवन में,
वर्जित है अभय पाए पशुओं की हत्या,और इन विचारों की भी ||
||कहीं पढ़ा था की विचार अजरामर हैं,हाँ शायद सही है,विचार अजर- अमर हैं,
तभी तो कितने दावानल,जला गए,तन को,मन को और मनु को,
पर नहीं झुलसा सके इन अभय प्राप्त विचारों को||

                                           - अवी घाणेकर