Sunday, December 15, 2013

ग्लोबल वार्मिंग और मेरी गली के कुत्ते!


ग्लोबल वार्मिंग का अपने राम पर अब तक कोई असर नई पड़ रिया था और अपने राम को उसका मतलब भी नई पता था| वो तो भला हो मेरी गली के खुजलाहे कुत्तों का कि उन्होंने हमारे दिमाग की बत्ती जला दी| असल में बरसात बीते करीब डेढ़ महिना होने को आया पर मेरी गली में कुत्तों की संसद अभी भी गुलजार है| रोज ही, सुबह देखी न शाम लगे पड़े हैं आम सभा करने में| गली की एकमात्र मरियल कुतिया बेचारी अपनी अस्मत की दुहाई देते देते थक गई है पर ये साले कुत्ते हैं की मानते नहीं| ऐसे में हमने अपने, सब जानता गमछा वाला पडोसी से कुत्तों की इस बेमौसम चिल्लपों का कारण पूछा तो बड़ी हिकारत से हमें देखते हुए उन्होंने इसका सारा इल्जाम ग्लोबल वार्मिंग पर डाल दिया| अब साहब ग्लोबल वार्मिंग का कुत्ता वार्मिंग से क्या नाता? पर बात कुछ कुछ समझ आने लगी| हर साल  इस समय तक ये  सारे कुत्ते  ठण्ड के मारे कहीं न कहीं दुबक जाते थे और ठण्ड से जान बचाने के चक्कर में उनका कुतिया प्रेम भी ठंडा पड़ जाता था, इस साल ठण्ड कुछ देर से आई है या शायद बहुत कम है और यहीं ग्लोबल वार्मिंग का रिश्ता कुत्तों से क्या है समझ आने लगा| अब साहब, अपने राम भी बाल की खाल निकालने को तैयार रहते हैं इसलिए इस विषय पर थोडा रिसर्च करने की ठान बैठे और निकल पड़े कुत्तों के पीछे|
अपने राम ने देखा की अलग अलग रंगों, ऊँचाइयों और पर्सनाल्टी वाले कुत्ते एक साथ एक कोने में एक साथ भौंक रहे हैं, एक साथ एक दूसरे को दांत दिखाते हुए,अपनी अपनी औकात दिखा रहे हैं, और एक अदद मरगिल्ली कुतिया पूंछ दबाये बीच बीच में गुर्रा कर उनको दूर ढकेल रही है| अजी ये सीन तो अपन ने कहीं देखा है, याद आया टीवी पे दिखा रहे थे एक दिन, लेकिन उसमें तो कुत्ते नई थे, आदमी दिख रहे थे| रोजई  तो दिखाते हेंगे न्यूज़ चैनल पर नेता लोगन को| एक दूसरे की धोती खींचते, गाली गलौज करते, एक कुर्सी की खातिर| खैर कुत्तों पर ध्यान केन्द्रित करने की सोच कर मैंने टीवी बंद कर दिया और लगा कुत्तों को देखने| करीब आधा दिन  मैं उन कुत्तों के पीछे लगा रहा और उस आधे दिन   में अलग अलग श्रेणियों के कुत्तों ने अलग अलग  कोने में उस बेचारी कुतिया की इज्जत लूटी, उन छः  घंटों में जैसे अपने राम सारे भारत का चक्कर लगा आये| अब तो अपन को घिन आने लगी और अपन ने घर वापस लौटने की ठान ली| घर आ कर  भी दिल में उस कुतिया के लिए अजीब सी सहानुभूति की लहर उठ रही थी| बड़ी कोशिश के बाद नींद आई और सुबह अपने राम अपने काम में लग गये और कुत्तों का ग्लोबल वार्मिंग से सम्बन्ध इस विषय पर रिसर्च ठन्डे बस्ते में चली गयी|  ठण्ड से याद आया इस साल ठण्ड वाकई देर से आई है|
करीब पांच महीने तक कुत्ते मेरे दिमाग से बाहर रहे और कुछ दूसरी कुत्ती चीजें मुझे व्यस्त रखने में कामयाब हुईं|
एक दिन जब मैं अपनी पत्नी की दिलाई कार से कहीं जाने के लिए घर से निकला तो अचानक एक कुत्ते के बच्चे की कुईं कुईं सुनाई दी, गाडी रोक कर देखा तो एक अदद कुत्ते का बच्चा मेरी गाडी के नीचे आते आते बचा है और अब अपनी माँ को याद कर के रो रहा है| अपने राम ने गाडी से उतर कर उस बच्चे को उठाया तो तीन चार रंगों के उस चितकबरे खूबसूरत बच्चे ने किकियाना बंद कर दिया(बच्चे खूबसूरत ही होते हैं, नई?)| उसे देख कर अनायास मुझे ग्लोबल वार्मिंग और कुत्तों पर अपनी अधूरी रिसर्च याद आ गयी|पूंछ हिलाती मेरी गली की वो मरियल कुतिया मेरे पास आ कर अपने बच्चे के लिए आँखों ही आँखों से मुझसे दया की भीक मांगने लगी| बच्चे को सहला कर मैंने उसे उसकी माँ के पास छोड़ दिया और गाडी में बैठ कर अपने गंतव्य की ओर निकल पड़ा| गाडी चलाते हुए भी वो बच्चा मेरी आँखों से ओझल नहीं हो रहा था और मुझे पांच महीने पहले का अपना वो भारत भ्रमण याद आने लगा| वो बच्चा उन अलग अलग श्रेणियों के कुत्तों की मिली जुली गैर नस्लवादी, गैर जातिवादी और गैर वर्ग वादी कोशिश का एक अदद नमूना था जिसका हश्र भी उसके अनगिनत बापों की तरह ही होना था| अब जब उन कुत्तों का बच्चा इस संसार में आ चुका  था तो वो सारे कुत्ते जैसे गधे के सर पर सींग की तरह गायब हो चुके थे| जैसे जन्म देने के बाद उनका कोई कर्तव्य ही नहीं और वो  किसी और जगह मुंह मारने को आजाद हैं| कोशिश करने पर भी मैं अपने को रोक नहीं पा रहा था इस सब का सम्बन्ध हम इंसानों से जोड़ने पर, मिली जुली कोशिश, मिलीजुली सरकार, खैर इस विचार को झटक कर मैंने गियर बदला |
मैंने देखा की कुतिया अब उस बच्चे को चाट पोंछ कर साफ़ करने की नामुमकिन कोशिश कर रही है और वो बच्चा मजे से भविष्य की चिंता किये बगैर अपनी माँ की गोद में आराम से सो रहा है|
उन खुजलाहे कुत्तों की मिली भगत का परिणाम एक अच्छी नस्ल को तो नहीं विकसित कर सकता और आने वाली नस्ल  भी उनकी तरह कोने कोने में अपनी औकात दिखाते ही नजर आएगी| मुझे लगा की मैं कुत्ते के उस छोटे बच्चे को अपने घर ले आऊँ और उसकी नस्ल में पनप रही गन्दगी और रोग को जड़ से उखाड़ फेंकूं, पर फिर  एक सच्चे भारतीय की तरह मैने अपने मन में सोचा मेरी बला से और एक्सलेटर दबा कर निकल पड़ा अपनी मंजिल पर|

अवी घाणेकर

१५.१२.२०१३

Wednesday, December 11, 2013

दिल्ली का दिल



दिल्ली के चुनाव परिणाम आने के बाद भी दिल्ली का दिल उदास है| बिखरा हुआ चुनाव परिणाम दिल्ली को असमंजस की स्थिति में डाले हुए है| आम आदमी पार्टी एक नए राजनितिक दल के तौर पर उभरा है और राष्ट्रीय दलों को नाकों चने चबवा रहा है| उसके २७ विधायक चुने जा चुके हैं पर पूर्ण बहुमत किसी भी पार्टी को नहीं मिला है| बी जे पी के ३२ विधायक हैं और वो सरकार बनाने से हिचक रही है| ऐसे में दिल्ली की जनता ठगा हुआ महसूस कर रही दिखती है| इसका कोई हल जल्द ही निकलना जरूरी है, पुनः चुनावों में उतरना इसका हल नहीं हो सकता ये निश्चित है, आखिर चुनाव  का खर्च तो जनता की गाढ़ी कमाई से ही होता है| इस सन्दर्भ में दोनों दलों को विचार करना चाहिए|हठधर्मिता छोड़ जनता की इच्छा का सम्मान करना चाहिए| क्या हो सकता है इस परिस्थिति में  इसका विचार करें तो मुझे एक बहुत आदर्श हल दिखाई पड़ता है|
बी जे पी और ‘आप’ इन दोनों को मिल कर सरकार का गठन करना दिल्ली को इस असमंजस से निकाल सकता है| ‘आप’ जिन मुद्दों को ले कर चुनावों में उतरी है उन मुद्दों को यथार्थ में उतरने का ये एक अच्छा मौका हो सकता है| ‘आप’ राजनीती से भ्रष्टाचार और गन्दगी को हटाने का मन रखती है तो बी जे पी के साथ सरकार में शामिल हो कर बी जे पी की तथाकथित गन्दगी साफ़ कर सकती है| मैं कांग्रेस का साथ लेने के लिए इसलिए नहीं कहूँगा क्यूंकि कांग्रेस की पूरी की पूरी चुनरी  ही काली है, बी.जे.पी. की चुनर कुछ तो साफ़ है| अब ‘आप’ के पास ये सिद्ध करने का मौका है की भाई हम तो जो कहते हैं वो ही करते हैं अगर दूसरा दल नहीं सुधरेगा तो जनता उसे सबक सिखलाए|  यहाँ बी.जे.पी भी खुद को एक आदर्शवादी पार्टी के तौर पर पुनर्स्थापित कर सकती है, अरे हम नहीं कह रहे की वो अपनी विचारधारा छोड़ कर नई राहें बना ले  पर स्वयं को राष्ट्रवादी और राष्ट्रप्रेमी कहने वाली पार्टी राष्ट्र और जनता के हित  में स्वयं सुधार  के रास्ते  पर तो चल ही सकती है|   अच्छा, अगर ‘आप’ को आगे कभी भी लगता है कि बी.जे.पी.  साझा न्यूनतम कार्यक्रम से भटक रही है तो वो तत्क्षण जनता के बीच जा कर अपनी बात रख सकती है और जनता उसे निश्चित ही हाथों हाथ लेगी|
 आप भी उसी विचारधारा की बात करती है परन्तु सुर कुछ अलग है|अब साहब अगर एक अच्छी धुन बनानी हो तो सात सुरों के सुन्दर मिलन से ही उसमे मधुरता और रस आता है| वही कुछ प्रयोग दिल्ली  के राजनितिक आकाश में भी हो जाये और देखें तो की कैसी सुहानी धुन बनती है| एक कहावत दोनों दलों ने याद रखनी चाहिए कि आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी मिले ना पूरी पावे| अतः मेरी  दोनों दलों के महानुभावों से नम्र विनती है की वो पहल करें और दिल्ली को खुश कर दें| आप को इस पहल से फायदा ही होगा और देश को भी|
                                                     
 
-  अवी घाणेकर
३०१०, सेक्टर ४/सी,
बोकारो स्टील सिटी

१२.१२.२०१३

अलविदा मडिबा !




आज साउथ आफ्रिका से दो दुखद खबरे सुनने को मिलीं| एक ऐतिहासिक पुरुष नेल्सन मंडेला की मृत्यु और दुसरी भारतीय क्रिकेट कि कब्र खुदने की|
मै हमेशा से ही नेल्सन मंडेला का प्रशंसक रहा हूँ और उनके आजीवन कार्यों से प्रभावित भी| साठ के दशक से २७ साल साऊथ अफ्रीका की विभिन्न जेलों में बंद कर, अनेक पाशविक यातनाएं देने पर भी उनके जज्बे और उनके आदर्शों को वहां की नस्लवादी सरकार तोड़ नहीं पाई, और आखिर वैश्विक दबाव और अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के अनवरत प्रयत्नों और विरोध के कारण नेल्सन मंडेला जेल से बाहर आये| इतनी लम्बी अवधि तक नस्लवादियों के अमानवीय अत्याचारों को सहन कर भी उनके भाषणों में या उनके किसी कार्य से कभी भी उन्होंने गोरे नस्लवादियों के खिलाफ प्रतिशोध या बदले की भावना को हवा नहीं दी और सतत इसी प्रयास में रहे की कैसे श्वेत और अश्वेत आपस में घुलमिल कर रहे और बराबरी का मौका पाते रहें| सन १९९४ के चुनावों में ए एन सी  भारी बहुमत से विजयी हुई और नेल्सन मंडेला राष्ट्रपति चुने गए|सत्ता हाथ में आने पर भी उनके कार्यकलापों से उनकी विनम्रता और राष्ट्र प्रेम का जज्बा  कभी भी ओझल नहीं हुआ| उनका कार्यकाल साऊथ अफ्रीका को एक नए पायदान पर स्थापित कर गया, एक ऐसा देश जिसने ४००/५०० साल नस्लवाद का दंश झेला पर सत्ता परिवर्तन के बाद जिसने रंगभेद को त्याग कर शेत और अश्वेतों को सामान अधिकार और मौका दिया| १९९९ में अपने कार्यकाल के ५ वर्ष बाद स्वयं ही सत्ता सुख त्याग कर शासन की बागडोर अपने दूसरे साथियों को सौंप देना आज के वैश्विक परिपेक्ष में अविचारणीय है|मैं और मेरे साथ विश्व की अरबों सामान्य जनता उनके इस फैसले से अभिभूत हो गई और उनका स्थान हमारे मन में हिमालय के शिखर से भी ऊँचा उठ गया| १९९९ से सतत वो वैश्विक स्तर पर किसी न किसी समाज कल्याण के कार्य में लगे रहे और करीब  २५० पुरस्कारों ने उन्हें सम्मानित कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस किया,, इसमें शांति का नोबल, भारत रत्न, आदि कई पुरस्कार शामिल हैं|
नेल्सन मंडेला ने साऊथ अफ्रीका के दलित और शोषित वर्ग का प्रतिनिधित्व किया और वर्षों के संघर्ष के बाद सत्ता की बागडोर सम्हाली| इतने संघर्ष के बाद भी पूर्व सत्ताधीशों के प्रति प्रतिशोध लेने का कोई विचार भी उन्हें छू नहीं पाया| सत्ता ऐसा नशा है की जिसकी खुमारी में भ्रष्टाचार का चखना बहुत स्वादिष्ट लगता है परन्तु साऊथ अफ्रीका की १९९४ से अब तक की सरकार में भ्रष्टाचार का कोई मामला विश्व के सामने आया हो मुझे याद नहीं पड़ता|  

अब अगर हम भारतीय परिपेक्ष में नेल्सन मंडेला को देखें तो पाएंगे की हमारे राजनैतिक इतिहास में शायद ही कोई ऐसा संत जन्मा होगा जो दशकों के संघर्ष के बाद हाथ आई सत्ता से मुंह मोड़ ले| हमारे यहाँ तो कब्र में पैर लटकाए हुए भी हम कुर्सी का ही सपना देखते रहते हैं| और तो और यदि कुर्सी हाथ आ गयी तो उसे स्वयं के पास ही रखने के लिए अनेकों तंत्र और कुतंत्र का सहारा लेते हैं| लोकतंत्र के महापर्व कहे जाने वाले चुनावों को हम एक महायुद्ध की भांति ही देखते हैं| पर्व से युद्ध तक का परिवर्तन हमें असंख्य कुचक्रों को करने पर मजबूर करता है| कुछ राज्यों में तो चुनाव एक दहशत ही बन गए हैं और जिसकी लाठी उसकी भैंस की तर्ज पर ही होते हैं|
अब अगर दलित शोषित वर्ग का तथाकथित प्रतिनिधित्व करने वाले दलों या व्यक्ति विशेषों का रुख करें तो पाएंगे की ऐसे दल या व्यक्ति अपनी अपनी झोली भरने में ही लगे हुए हैं और अवसरवादिता की पराकाष्टा के नित नए मापदंड बना रहे हैं| कुछ राज्य विशेषों में तो सरकारें बनती ही हैं घोटाले करने के लिए, आज एक दल और कल दूसरे दल के समर्थन से या समर्थन दे कर, उन्हें राज्य की उन्नति या जनता की खुशहाली से कोई सरोकार नहीं है, उनका काम है बेईमानी से धन कमा कर शान-ओ-शोकत की जिंदगी जीना| शर्म तो तब आती है जब ये दल गाँधी, अम्बेडकर, मंडेला जैसे राजनैतिक महापुरुषों का नाम ले कर अपनी अपनी राजनितिक रोटियां सेंकतें हैं|
माफ़ कीजिये मैं विषयांतर कर गया परन्तु क्या करूँ, नेल्सन मंडेला की महानता का जिक्र करते ही मुझे  हमारे आज के राजनैतिक टुच्चेपन का अहसास होने लगता है| खैर ... भारतीय क्रिकेट की बात फिर कभी क्यूंकि हमारी टीम हमें ये मौका फिर जल्द ही देगी ये यकीन है|
अंत में इश्वर से यही प्रार्थना है की वो दिवंगत नेल्सन मंडेला की आत्मा को शांति दें और यदि इश्वर उन्हें पुनर्जन्म देने  का विचार कर रहा हो तो उनका जन्म भारत में हो|
तथास्तु!!!!!!

- अवी घाणेकर
6.१२.२०१३