अपने राम का हसीन
सपना
लता मंगेशकर का एक
गीत करीब १५ दिनों से मेरे जेहन में गूंज रहा था “ मेरे सपने में आना रे ....” आज कल सपने देखने का भी एक क्रेज़ हो गया है जब
से सपने में टनों सोना दिखने लगा है, कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ और मैं सुबहोशाम गुनगुनाने
लगा, “मेरे सपने में आना रे ... किसी गड़े खजाने का पता, मुझको बतलाना रे ...... मेरे
सपने में आना रे ...” और लो जी गजब हो गया रात मुझे सपना आया| सपना ......
-मैं एक सुनसान सड़क
पर अकेला चला जा रहा हूँ और एक मोड़ पर मुझे अचानक एक भीड़, हजारों के हुजूम ने घेर लिया| उन हजारों में हर एक कुछ न
कुछ कहना चाह रहा था, ऐसी चिल्लपों मची थी की हमारी लोकसभा और विधान सभाओं की याद
दिला गयी| मैंने उन्हें शांत रह कर अपनी बात रखने का आग्रह किया और आश्चर्य कि वो
सब शांत हो गए| उन्होंने आपस में तय कर के एक व्यक्ति को, जो की उनमें सबसे
बुजुर्ग लगता था और लाठी के सहारे चल रहा , मुझसे बात करने को भेजा| उस व्यक्ति का
चेहरा कुछ जाना पहचाना सा लग रहा था, पर शाम के धुंधलके में ठीक से पहचाना नहीं जा
रहा था|
उसने मुझे कहा की, "बेटा हम सब तेरे पास एक खजाने का पता बताने आये हैं|" अजी क्या बात है, खजाने का
पता, दिल बल्लियों उछलने लगा और मैं उसके और करीब चला गया| अजीब सी सिहरन सारे शरीर में होने लगी, लगा की आज तो लग गयी अपनी
नाव किनारे|
“बेटा तुझे स्वतंत्रता संग्राम के बारे में कुछ पता है” उसने पूछा, मेरा जवाब हाँ में ही था| “ हजारों लाखों क्रांतिकारियों के बलिदान और तिलक, गाँधी, बोस,
आजाद, भगत सिंह के जन जागरण से ही हमें आज़ादी मिली” मैंने कहा| “ शाबास, तेरा लिखा हम फेसबुक पर पढ़ते थे और सोचा
की तू ही इस खजाने को खोज सकता है इसलिए हम तेरे पास आये हैं|” अब मेरे मन में उनके प्रति अति आदर का भाव जन्म
लेने लगा था, फेसबुक पर मेरा लिखा पढ़ते हैं? वाह ! वाकई आदर के पात्र हैं|
“बेटा, अपने देश की आबादी कितनी है?” उसने पूछा| १२० करोड़ से ज्यादा, मैंने कहा| “ उसमे से गरीब, मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग
की कितनी आबादी होगी?” उसका प्रश्न था| अब मेरे सब्र का बांध टूटने लगा, क्या बकवास है, खजाने का
पता बताओ और छुट्टी करो| फिर भी मैंने कहा होगी यही कोई ८०/९० करोड़| “ बस बेटा इन्ही ८०/९० करोड़ जनता के दिल में छुपा
है वो खजाना, जरूरत है बस उनके दिलों को छूने की, हलके हाथों से कुरेदने की और तू
देखेगा की बरसों से सोये, मृतप्राय दिलों में जो आग है वो हज़ार टन सोने की चमक से
भी अधिक प्रकाशमान है| बस उस पर जमी निराशा, भ्रष्टाचार, अंध विश्वास, अज्ञान की
काई भर हटाना है| काई के हटाते ही ये सौ
करोड़ अपने अपने खजाने खुद ही खोज लेंगे और इस खुदाई से एक नए भारत की नींव रखी
जाएगी| हमारे जाने के बाद देश में जो हो
रहा है उसे देख कर हमें शर्म आती है और उसी शर्म ने हमें मजबूर किया है की हम यहाँ
आकर किसी ऐसे को खोजें जो हमारी बात सुन सके, समझ सके और फिर उसे लोगों तक पहुंचा
सके| बड़ी आशा ले कर आये हैं हम , हमारे बलिदानों को व्यर्थ मत जाने दो, देर से ही
सही हमारे खून की कीमत आज अदा कर दो|” मैं भौंचक उन्हें और उस भीड़ को देख रहा था, अब मुझे उस भीड़ में सभी जाने
पहचाने चेहरे दिखने लगे, वो आजाद, वो भगत सिंह, वो सावरकर, अरे वो बाल गंगाधर
तिलक, और, और मुझसे बात करने वाले गाँधी
जी| गाँधी जी को सामने पहली बार देखा था, वो तो सांवले हैं, फिर हरा गाँधी, लाल
गाँधी ऐसा क्यूँ कहते है सरकारी लोग, खैर ये विचार झटकने के लिए मैंने अपने सर को जोर से हिलाया और मेरी आँख खुल
गयी| तो ये सपना ही था, खजाना, खजाना कहाँ गया| लाल, हरे गाँधी जी के बजाय अब मुझे
सांवले गाँधी जी से ही काम चलाना पड़ेगा| खैर ...... इस सपने से मेरे दिल पर जमी काई तो हट ही गई और वाकई मुझे अपने
अन्दर सुवर्ण प्रकाश दीखने लगा|
अवी
घाणेकर
रांची
२५.१०.२०१३
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