Tuesday, April 29, 2014

खिचड़ी



२४ तारीख को मतदान से लौटने के बाद, एक विचार मन में घुमड़ रहा है| असल में मेरी छोटी बेटी ऐश्वर्या पहली बार मतदान करने वाली थी और मत देने के बाद बाहर आने पर वो थोड़ी झुंझलाई हुए दिखी| पूछने पर उसने बताया की इ वी एम् में पचासों नाम और चुनाव चिन्ह थे और इतने सारे नाम देख कर वो बौखला गई| उसे, जिसे मत देना था उसका नाम ही नहीं था, बस चुनाव चिन्ह देख कर उसने बटन दबा दिया, उसे नहीं पता की उसका मत सही आदमी को मिला या नहीं,और यही था उसकी झुंझलाहट का कारण| अब पूछना तो नहीं चाहिए पर उसे काफी परेशां देख कर मैंने पूछ ही लिया की उसे मत देना किसे था? उसका उत्तर था ओबवियस्ली मोदी , पर उनका नाम ही नहीं छपा था, कमल छाप के सामने तो कोई और नाम लिखा था| उसका ये मासूम उत्तर सुन कर हम सब हंस पड़े| उसे समझाते-समझाते मेरे मन में इस विचार ने जन्म लिया की हमारे देश में भी प्रेसिडेंशियल इलेक्शन की तर्ज पर चुनाव होने में क्या हर्ज है| देश की सरकार चुनने के लिए सिर्फ २ या ३ राष्ट्रीय स्तर की राजनैतिक पार्टियाँ अपने अपने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करें और जनता उन उम्मीदवारों में से सबसे योग्य को चुन ले| ऐसा करने से जोड़ तोड़ की राजनीती का खात्मा हो जायेगा और चुनाव बाद और चुनाव के पहले के भ्रष्ट गठबंधन नहीं होंगे| राजनीती का अपराधीकरण और संख्याओं का अभद्र जोड़ घटाव बंद हो जायेगा| सैकड़ों पार्टियाँ और हजारों उम्मीदवार हमारे देश में लोकशाही का मज़ाक उड़ा रहे हैं, हर दूसरा व्यक्ति जिसे व्यवस्था से परेशानी है एक नई पार्टी बना लेता है और हमारे देश का कानून उसे रोक भी नहीं सकता| अजीब तमाशा बन गए हैं ये चुनाव| अब आप सबको  कई छोटे, क्षेत्रीय और राज्य स्तरीय दलों की चिंता सताने लगी होगी, कि भाई उनका क्या होगा? भाई, वो रखें न अपना अस्तित्व कायम पर राष्ट्रीय राजनीती में नहीं,  अपने अपने प्रदेश में अच्छा काम करें  और जनता का विश्वास जीत कर प्रदेश में सरकार बनायें, कौन मना करता है? इन छोटे दलों और तथाकथित गठबन्धनों ने देश को बर्बाद कर दिया है| हद तो ये है की ५४३ लोकसभा सीटों में यदि किसी की १ सीट भी आ जाये तो वो इस गठबंधन में अपनी मनमानी कर सकता है, सबसे बड़े घटक दल को आँखें दिखा सकता है और २०० जगहों से चुन के आने के बावजूद ये दल उस एक सीट वाले से दब कर उसके नापाक कार्यों में मदद करता है|यदि राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ दो चार उम्मीदवार ही चुनाव पटल पर होंगे तो जातिवाद, नस्लवाद आदि कई वादों से देश को छुटकारा मिल जायेगा| जनता के सामने बस ये दो चार ही विकल्प होंगे तो जनता भी दिग्भ्रमित नहीं होगी और अपने सद्सद विवेक का उपयोग कर सही प्रत्याशी को चुनेगी| जब हम राष्ट्र की बात कर रहें हैं तो स्थानीय समस्याएं, मुद्दे गौण होने चाहिए| स्थानीय समस्या का समाधान राज्य सरकार की जवाबदेही होनी चाहिए, उसे राष्ट्र की राजनीती से जोड़ना ठीक नहीं| मैं इस विषय पर कोई विशेषज्ञ तो नहीं हूँ पर आज की परिस्थिति को देखते हुए मेरा ये विचार काबिल-ए-गौर है ऐसा मुझे लगता है| विशेषज्ञ, राष्ट्रीय दल की कसौटी को परिभाषित करें, चाहे तो ५/6 विकल्पों में जनमत संग्रह करा कर उसे परिभाषित करें|

आज अगर हम इस चुनाव पर नजर डालें तो क्या देखते हैं, ये चुनाव तीन अलग अलग व्यक्ति विशेष के बीच लड़े जा रहें हैं| आज का मतदाता और विशेषतः नया और युवा मतदाता सिर्फ इन तीन नामों में से ही एक नाम चुनना चाहता है, उसे, मेरी बेटी की तरह, स्थानीय प्रत्याशी के बारे में जानकारी ही नहीं है| अगर ये विचार है हमारे युवा मतदाताओं का तो क्या उसका यथेष्ट सम्मान नहीं होना चाहिये? जरूर होना चाहिए और सभी राजनीतिज्ञों, कानून विशेषज्ञों ने इस बात पर समय रहते ही गौर करना आवश्यक है| शायद कोई भला मानुस इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट में एक पी. आई. एल ही दायर करा दे और हमारा देश इस खिचड़ी परिणाम से बच जाये| हमारे देश के राजनितिक वर्ग में सभी कहते हैं की देश गठबंधन की खिचड़ी सरकार के बिना चल नहीं सकता क्यूंकि इस देश का मतदाता किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं देगा| सारा इल्जाम दूसरों पर धकेलना तो इन लोगों की आदत ही है, पहले तो आप आप उनको खिचड़ी परोसो और जब बेचारा मतदाता भौंचक हो कर खिचड़ी ही चुने तो दोष मतदाता का कैसे? आप उसे कुछ खास पंच तारांकित  पदार्थों में से चुनाव करने दो और फिर देखो की सही चुनाव होता है या नहीं|
खिचड़ी बीमारों को खिलाई जाती है और हमारा देश और इसकी जनता बीमार तो नहीं की इसे साल दर साल आप खिचड़ी ही खिलाये जा रहें हैं| हमें हक है पंच तारांकित व्यंजनों का लुत्फ़ उठाने का और ये हक हम ले के रहेंगे|
आशा है की सुधि पाठक इस विषय पर विमर्श अवश्य करेंगे और एक सुन्दर, स्वस्थ, खिचड़ी से परहेज करने वाले भारत के निर्माण में अपना योगदान देंगे|

1 comment:

Padmaja Ranade said...

सच मे तुम्हारी खिचड़ी बड़ी लाज़वाब है. एआईसी खिचड़ी भी चलेगी. सोचने को मजबूर करने वेल विचार है.बहुत बढ़ियाँ .