पिछले दिनों मेरा
पालतू कुत्ता, जो अब १० वर्षों का हो गया है, अर्थात करीब ६० साल का हो गया(डॉग
इयर्स), अचानक अपने चार पैरों पे चलने की बजाय सिर्फ दो पैरों पर चलने लगा| अजी
कोई चमत्कार नहीं, बस उसके पिछले हिस्से को लकवा मार गया है और वो चलने की बजाय
घिसट रहा है| उसकी दशा पर हम सब अति चिंतित और दुखी हैं| उसके नित्य कर्म भी उसे
उठा कर करवाने पड़ते हैं, परन्तु उसकी आँखों की चमक और शरीर में जोश की कोई कमी
नहीं आई है| उसे देख कर पता नहीं क्यूँ
मुझे अपना देश, अपना समाज और राजनितिक परिवेश याद आ रहा है| कदाचित उसके घिसटते शरीर से मैं इन सभी को जोड़ रहा
हूँ| परन्तु क्या यही स्तिथि नहीं है हमारे देश, समाज और राजनीती की|
साल की शरुआत में एक
आशा देश के दिल में जगी थी जब “आप” ने दिल्ली जीत ली थी, लगा था की चलो राजनीती के इस मैदान में एक नया खिलाडी आ
गया ,वर्षों से जमें पुराने खिलाडियों को एक चुनौती देने के लिये| दो चार दिन तो
ठीक से बीते पर उसके बाद अँधेरी रात ही नसीब हुई| आप भी अपने असली रंग दिखाने लगे|
जब आप ने लोगों को टोपियाँ पहनानी प्रारंभ की थीं, तभी ये अंदेशा लग जाना चाहिए था
की आप तो सबके बाप हैं| आप ने भी खूब नौटंकी दिखाई आम आदमी बनने की और बसों ,
ट्रेनों से सफ़र किया, फिर बात आई बंगलों
की तो दस पंद्रह कमरों के बंगलों पर आप लट्टू होते दिखे, लम्बी लम्बी गाड़ियों की
चाहत मन में आई| अजी गुड खा कर गुलगुलों से भी कोई परहेज करता है क्या, आप ने भी
नहीं किया, चलता है साहब| खैर “देर आयद दुरुस्त आयद”| आप के अलग अलग चेहरे अब जनता के सामने आ रहे हैं और हर एक चेहरा विद्रूप ही
नजर आ रहा है| आप के कुछ मुंह तो इतने बड़े हैं की उनके बडबोले बोलों से आप का
चेहरा ही ढंक जाता है| अजी अभी जुम्मा- जुम्मा दो दिन हुए हैं दिल्ली की तीन टांगो
वाली कुर्सी मिले पर आप हैं की इस खुमारी में जैसे विश्व विजेता हो गए हैं| अजी
ऐसे ऐसे वचन निकल रहे हैं आप के मुंह से की कहना पड़ रहा है की भाई “आप तो ऐसे ना थे”| कल ही आप का एक मुंह आप को ही चिढाता नजर आया,
रणांगन में पैर रखा ही था की चक्रव्यूह की चकरघिन्नी में फंस गए आप| राष्ट्रीय
स्तर के दो बड़े खिलाडी मंद मंद मुस्कुरा रहें हैं आप की दशा पर और बाट जोह रहे हैं
की कब मौका मिले और आप को साफ़ करें| चलिए ये तो हुई राजनीती की बात , अब देश और
समाज पर नजर डालें|
हमारा समाज भी अलग
अलग स्तरों और वर्गों से बना हुआ है, परन्तु एक स्तर या वर्ग भी ऐसा नहीं है जो
बिना बैसाखियों के चल रहा हो|इतनी उन्नती कर ली है हमने, पर अभी भी उन्ही रुढियों,
अंध विश्वासों, ढकोसलों के लत्तर ओढ़े, इक्कीसवीं सदी में दसवीं सदी का चेहरा झलका
रहें हैं| समाज का हरेक वर्ग सिर्फ पेट से नीचे की ओर देख रहा है,इस शरीर में दिल
और दिमाग का कोई अस्तित्व भी है ये भूल गया है साफ़| जिसे देखो वो दो टांगो के बीच
फंसा हुआ है| आदिम युग की तरह पुरुष और नारी में बस एक ही रिश्ता ढूंढते, संयम
छोड़ डायरेक्ट एक्शन में पिले पड़े हैं| अजी इक्कीसवीं सदी का भी कोई लिहाज
नहीं,उन्नत तकनीक का इस्तेमाल भी बस टांगों के बीच घुसने की जुगत भिडाने में हो
रहा है| रोज़ नए कानून, रोज़ नए कायदे भी इस समाज को सुधारने में अक्षम हो रहे हैं|
सही मायने में ये एक लकवा ग्रस्त समाज हो गया है| बैसाखियों से इसे ढोना अब
मुश्किल है इसे एक व्हील चेयर की जरूरत आन पड़ी है|
व्हील चेयर से याद
आया मैंने अपने पालतू कुत्ते के लिए एक दो चक्कों वाली गाड़ी मंगाई है, जिसे उसके
पिछले हिस्से से जोड़ने पर वो बिना सहारे के चलने लगेगा, बिना घिसटते| संसार भर में
इस तरह की गाड़ियाँ बहुत से लोगों ने अपने अपने पालतू कुत्तों के लिये मंगवाई हैं और ऐसा कहते हैं की कुछ
दिनों बाद वो कुत्ते बिना गाड़ी के भी चल और दौड़ पाते हैं| चलिए मेरे कुत्ते को तो शायद उसके दुखों से
छुटकारा मिल जायेगा|
ऐसी ही कोई गाड़ी
हमारे इस देश, समाज को भी मिल जाये, जिससे इसके घिसटते अस्तित्व में बदलाव की गुंजाईश
हो जाये, वरना तो बस इसका भगवान ही मालिक है|
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