Saturday, January 18, 2014

अपने राम की राम कहानी



चलिए आज आपको अपने राम की कहानी सुनाऊं| अपने राम का जनम एक बहुत ही प्यारे परिवार में हुआ आज से ५० साल पहले| अपने राम, तीन भाई बहिन में दूसरे नंबर पर हैं| एक बड़ा भाई और एक छोटी बहिन के साथ अपने राम माँ पिताजी के साथ मध्य प्रदेश के एक छोटे से गाँव ( अब शहर ) में मजे से रहते थे| बचपन से ही बहुत नटखट और चंचल प्रकृति के अपने राम फिकिर नॉट का फलसफा लिए बड़े हो रहे थे| पिताजी एक इंजीनियरिंग कॉलेज में प्राध्यापक थे, माँ गृहणी| अपने राम जिस कॉलोनी में रहते थे उस की एक तरह से जान थे, देखने में बड़े सुन्दर, स्वभाव से निडर थोड़े से खब्ती , इसलिए कॉलोनी के बच्चे और बड़े सब ही अपने राम से प्रभावित रहते थे| बड़ा भाई एकदम शांत, स्वभाव से शर्मीला और पढ़ने में तेज| बस यहीं अपने राम मार खा जाते थे, क्यूंकि पढ़ने से अपने राम को कतई लगाव नहीं था फिर भी पहले दस में उनका नंबर लग ही जाता | छोटी बहिन दोनों भाइयों के गुणों का अनुसरण कर पढ़ने में तेज और स्वभाव से निडर थी| मजे से कट रही थी जिंदगी अपने राम की| पिताजी शोध कार्य हेतु दूसरे शहर में जा रहे थे तो अपने राम को और छोटी बहिन को ले कर माँ भी उनके साथ हो ली| बड़े भैया तब तक इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिल हो गए थे तो वे वहीँ रह गए| नए शहर में नए माहौल में अपने राम काफी जल्दी रम गए| वहां देश भर के अलग अलग हिस्सों से आये हुए लोग थे उनके साथ भी अपने राम ने जल्दी ही दोस्ती बना ली| पुराने दोस्तों को भूल नए दोस्तों के साथ मस्त| जिन्दगी अपनी चाल से चल रही थी और अपनेराम अपनी चाल से|
यहीं अचानक कुछ हुआ और अपने राम की खब्त अचानक ही बढ़ गई| इसी खब्त का नतीजा रहा की अपने राम का दिमाग पढाई से दूर बेकार की बातों में लगने लगा| कई शहरों की धूल फांक कर अपने राम मध्य प्रदेश के एक बड़े शहर( अब छत्तीसगढ़ की राजधानी) में आ गए पिताजी  और माँ के साथ| खब्त थी की कम होने का नाम ही नही ले रही थी, इंजीनियरिंग का सपना झट से तोड़ कर अपने राम एक वाणिज्य कॉलेज में दाखिल हो गए| तीन साल इस कॉलेज में रहे पर अपने राम को उनकी क्लास रूम का पता नहीं मालूम चला उनका सारा वक्त, कैंटीन में या क्रिकेट खेलने में ही बीत गया| अब ये उनको मिले जींस का ही कमाल था की हर साल परीक्षा में पास होते गए और डिग्री ले सके|
 इस बीच अनेकों लड़कियों से प्रेम करते हुए( अनेकों एक तरफ़ा भी थे) अपने राम के जीवन में एक अलग ही लड़की आ गयी| ये सबसे अलग थी, अपने राम के हिसाब से बहुत सुन्दर नहीं पर आकर्षक| अपने राम जब किसी तरह ग्रेजुएट होने के लिए हाथ पांव मार रहे थे, ये लड़की डॉक्टर बनने की पढाई कर रही थी| इसे दैवी संयोग ही कहेंगे की ये लड़की अपने राम की पर्सनाल्टी पर मोहित हो गई और अपने राम की तो निकल पड़ी|
४ फुट ९ इंच की छोटी से इस लड़की ने अपने राम की छै फूटी काया को जैसे अपने बस में कर लिया| सोते जागते, अपने राम बस इसके ख्यालों में ही जीते रहे| अब तो अपने राम की खब्त और जोर मरने लगी और एक दिन कॉलेज की आखिरी परीक्षा देते ही अपने राम घर से छू मंतर हो गए और जा पंहुंचे अपने मामा के यहाँ नौकरी की तलाश में| अपने राम का बस अब एक ही लक्ष्य रह गया था नौकरी करना और उस लड़की से शादी करना|  अपने राम की नौकरी के चार साल होते ही वो लड़की भी डॉक्टर बन चुकी थी| अब शरू हुआ घर वालों और रिश्तेदारों से रूठना मनाना, आखिर जीत अपने राम की हुई और अपने राम के दो से चार हाथ हो गए| ४ फुट ९ इंच की वो लड़की अब इस छै फूटे की घरवाली बन गयी थी| जिंदगी बड़े मजे से कट रही थी|
अपने राम की पत्नी जिस्मानी तौर पर छोटी थी पर जहनी तौर पर वो  हिमालय से भी बड़ी लगती थी| अपने राम की खब्त और अनेको झंझटों से जूझते उसके चहरे पर कभी एक शिकन भी नहीं आई| इस बीच अपने राम की पत्नी को नौकरी लग गई और एक बेटी भी उनके आंगन में खेलने लगी|घर, परिवार  और नौकरी संभालते अपने राम की पत्नी अपने राम की खब्त भी संभालती रही  सदा मुस्कुराते हुए| नौकरी में एक एक सीढ़ी पार करते वो शहर की काफी नामी डॉक्टर बन गई| इस बीच, अपने राम एक और कन्या के बाप बन गए और अपने राम के पिताजी सेवा निवृत हो कर माँ के साथ अपनी नतनियों को संभालने आ गए, अपने राम की खब्त ने लगी लगाई नौकरी छुडवा कर अपने राम के दिमाग में बिज़नेस का कीड़ा डाल दिया| अब अपने राम अपने शहर से दूसरे शहर जा कर बिज़नेस में लग गए| सारे घर की, बूढ़े होते माँ बाप की तबीयतों की और बच्चियों को बड़ा करने की जिम्मेदारी उस ४ फुट ९ इंच की पत्नी के कंधो पर डाल  कर छै फुटिए अपने राम बड़े मजे से शनिवार और रविवार को आते और अपना हफ्ते भर का टैक्स वसूल कर चले जाते| यही क्या कम था की अपने राम की खब्त घर में एक पालतू कुत्ता ले आई|  अब बाकि सब झंझटों के अलावा इस कुत्ते का भी ध्यान अपने राम की पत्नी रखने लगीं| ये सिलसिला अब तक चल रहा है, अब माँ का देहांत हो चुका है, बड़ी बेटी दूसरे शहर में नौकरी कर रही है, पिताजी और बूढ़े हो गए है, छोटी बेटी डॉक्टर बनने का सपना देख रही है और पालतू कुत्ता बीमार है, उसे लकवा मार गया है| अपने राम की पत्नी अभी भी सारे काम उसी मुस्कराहट से कर रही हैं और अपने राम मस्त हैं दूसरे शहर में हफ्ता बिता कर सप्ताहांत में अपना टैक्स वसूल कर|
अपने राम के पिछले जन्म का पुण्य ही है की अनेकों प्रेम प्रसंगों के बाद ये ४ फुट ९ इंच की लड़की उनके जीवन में आई, कोई ओर होती तो अपने राम का जीवन जाने कैसा बीतता| ४ फुट ९ इंच की काया में हिमालय से ऊँचा व्यक्तित्व , गुड से मीठा स्वभाव, जबरदस्त जिगरा, हीरे सा दिल  लिए अपने राम की पत्नी अपने राम की छै फूटी काया को डेढ़ फुटिया साबित कर रही है, पर अपने राम अभी भी मस्त हैं क्यूंकि आखिर वो ४ फुट ९ इंच की लड़की है तो उनकी पत्नी ही ना|
तो भैया ये थी अपने राम की कहानी|  

Friday, January 17, 2014

लकवा



पिछले दिनों मेरा पालतू कुत्ता, जो अब १० वर्षों का हो गया है, अर्थात करीब ६० साल का हो गया(डॉग इयर्स), अचानक अपने चार पैरों पे चलने की बजाय सिर्फ दो पैरों पर चलने लगा| अजी कोई चमत्कार नहीं, बस उसके पिछले हिस्से को लकवा मार गया है और वो चलने की बजाय घिसट रहा है| उसकी दशा पर हम सब अति चिंतित और दुखी हैं| उसके नित्य कर्म भी उसे उठा कर करवाने पड़ते हैं, परन्तु उसकी आँखों की चमक और शरीर में जोश की कोई कमी नहीं आई है|  उसे देख कर पता नहीं क्यूँ मुझे अपना देश, अपना समाज और राजनितिक परिवेश याद आ रहा है| कदाचित  उसके घिसटते शरीर से मैं इन सभी को जोड़ रहा हूँ| परन्तु क्या यही स्तिथि नहीं है हमारे देश, समाज और राजनीती की|

साल की शरुआत में एक आशा देश के दिल में जगी थी जब आप ने दिल्ली जीत ली थी, लगा था की चलो राजनीती के इस मैदान में एक नया खिलाडी आ गया ,वर्षों से जमें पुराने खिलाडियों को एक चुनौती देने के लिये| दो चार दिन तो ठीक से बीते पर उसके बाद अँधेरी रात ही नसीब हुई| आप भी अपने असली रंग दिखाने लगे| जब आप ने लोगों को टोपियाँ पहनानी प्रारंभ की थीं, तभी ये अंदेशा लग जाना चाहिए था की आप तो सबके बाप हैं| आप ने भी खूब नौटंकी दिखाई आम आदमी बनने की और बसों , ट्रेनों से सफ़र  किया, फिर बात आई बंगलों की तो दस पंद्रह कमरों के बंगलों पर आप लट्टू होते दिखे, लम्बी लम्बी गाड़ियों की चाहत मन में आई| अजी गुड खा कर गुलगुलों से भी कोई परहेज करता है क्या, आप ने भी नहीं किया, चलता है साहब| खैर देर आयद दुरुस्त आयद”| आप के अलग अलग चेहरे अब जनता के सामने आ रहे हैं और हर एक चेहरा विद्रूप ही नजर आ रहा है| आप के कुछ मुंह तो इतने बड़े हैं की उनके बडबोले बोलों से आप का चेहरा ही ढंक जाता है| अजी अभी जुम्मा- जुम्मा दो दिन हुए हैं दिल्ली की तीन टांगो वाली कुर्सी मिले पर आप हैं की इस खुमारी में जैसे विश्व विजेता हो गए हैं| अजी ऐसे ऐसे वचन निकल रहे हैं आप के मुंह से की कहना पड़  रहा है की भाई आप तो ऐसे ना थे| कल ही आप का एक मुंह आप को ही चिढाता नजर आया, रणांगन में पैर रखा ही था की चक्रव्यूह की चकरघिन्नी में फंस गए आप| राष्ट्रीय स्तर के दो बड़े खिलाडी मंद मंद मुस्कुरा रहें हैं आप की दशा पर और बाट जोह रहे हैं की कब मौका मिले और आप को साफ़ करें| चलिए ये तो हुई राजनीती की बात , अब देश और समाज पर नजर डालें|
हमारा समाज भी अलग अलग स्तरों और वर्गों से बना हुआ है, परन्तु एक स्तर या वर्ग भी ऐसा नहीं है जो बिना बैसाखियों के चल रहा हो|इतनी उन्नती कर ली है हमने, पर अभी भी उन्ही रुढियों, अंध विश्वासों, ढकोसलों के लत्तर ओढ़े, इक्कीसवीं सदी में दसवीं सदी का चेहरा झलका रहें हैं| समाज का हरेक वर्ग सिर्फ पेट से नीचे की ओर देख रहा है,इस शरीर में दिल और दिमाग का कोई अस्तित्व भी है ये भूल गया है साफ़| जिसे देखो वो दो टांगो के बीच फंसा हुआ है| आदिम युग की तरह पुरुष और नारी में बस एक ही रिश्ता ढूंढते, संयम छोड़  डायरेक्ट एक्शन में पिले  पड़े हैं| अजी इक्कीसवीं सदी का भी कोई लिहाज नहीं,उन्नत तकनीक का इस्तेमाल भी बस टांगों के बीच घुसने की जुगत भिडाने में हो रहा है| रोज़ नए कानून, रोज़ नए कायदे भी इस समाज को सुधारने में अक्षम हो रहे हैं| सही मायने में ये एक लकवा ग्रस्त समाज हो गया है| बैसाखियों से इसे ढोना अब मुश्किल है इसे एक व्हील चेयर की जरूरत आन पड़ी है|
व्हील चेयर से याद आया मैंने अपने पालतू कुत्ते के लिए एक दो चक्कों वाली गाड़ी मंगाई है, जिसे उसके पिछले हिस्से से जोड़ने पर वो बिना सहारे के चलने लगेगा, बिना घिसटते| संसार भर में इस तरह की गाड़ियाँ बहुत से लोगों ने अपने अपने पालतू कुत्तों  के लिये मंगवाई हैं और ऐसा कहते हैं की कुछ दिनों बाद वो कुत्ते बिना गाड़ी के भी चल और दौड़ पाते हैं|  चलिए मेरे कुत्ते को तो शायद उसके दुखों से छुटकारा मिल जायेगा|

ऐसी ही कोई गाड़ी हमारे इस देश, समाज को भी मिल जाये, जिससे इसके घिसटते अस्तित्व में बदलाव की गुंजाईश हो जाये, वरना तो बस इसका भगवान ही मालिक है|