Friday, March 6, 2015

अपनेराम की होली!

होली आ गई भय्ये और अपने राम रंग गए हैं होली के रंगों में और भंग की तरंगों में| भंग की तरंग में बड़े अच्छे अच्छे खयाल आ रहे हेंगे अपने राम के दिमाग में! होली को भय्ये राष्ट्रीय त्यौहार घोसित कर देना चाहिए सरकार ने|
 होली! होती क्या है होली, होली त्यौहार है बुरे को जला कर खाक करने का, जीवन में आनंद के ढेरों रंग भरने का, दिल की सारी भड़ास निकाल कर नए सपने सजाने का, और बुरी बातों का बुरा ना मानने का| “बुरा ना मानो होली है” ये तो हर होली में अपन सुनते बोलते आ रहे हैं भय्ये| अच्छा, अपन हिन्दुस्तानी किसी बात का बुरा मानते हैंगे कभी? साल के तीन सौ पैंसठ दिन बुरा ही हो रिया है इस देश में, और अपन ने तो आज तक कभी बुरा नहीं माना किसी बात का भय्ये! अपने घर में सब बढियां चल रहा है तो बाकि दुनिया गई तेल लेने इस विचार के पोसिंदे हैंगे अपन तो| अब ज्यादा ही कुछ बुरा हो गया तो तीन चार घंटे चर्चा - चुर्चा कर ली और हो गए फारिग| नई, माना के कुछ सरफिरे हैंगे इस देश में जो लगे पड़े हैंगे बुरे की होली जलाने में, पर उस आग में खुदई अपना घरबार जरा लेते हैंगे ससुरे! लानत है इन ससुरों पर, समझते नहीं हैंगे की भय्ये होली जलने के लिए एक दिन तय कर रक्खा है अपन नेइस दिन छोड़ कर जलने और जलाने की परमिसन नहीं हैगी इस देश में| इन्ही ससुरों की मदद के वास्ते अपनेराम सरकार से दरखास्त कर रहे हैंगे  की होली रोज मनाने की परमिसन दे दे नहीं तो ये सारे ससुरे एक एक कर के जल मरेंगे और फिर देश की जाँच एजेंसियां सालों साल ढूंढते रह जायेंगी इनके जलने का कारण|
होली में रंगों का भी खास बजूद है भय्ये और अपने यहाँ तो निन्यानबे प्रतिसत रंगे सियार ही घूमते हैंगे| अपन की तो दुनिया ही रंग बदलने वाली है भय्ये! और तो और अपन दूसरे पर किच्चड उछालने में तो उस्ताद ही हेंगे, ऑफिस हो तो अपने साथियों पर, पड़ोसियों पर, एक पार्टी दूसरी पार्टी पर, नेता लोगन एक दूसरे पर,अलग अलग धरती की मिटटी का किच्चड रोजई उछाल  रहे हेंगे| अब जब अपनी सभ्यता ही ऐसी रंगीली हेगी तो फिर होली रोज मनाने में हर्ज़ काहे का हेगा| अपन की सरकार ने कुछ सोचना चहिये इस बारे में और होली को महान राष्ट्रीय त्यौहार घोषित कर ही देना चाहिए, जिससे अपन भी साल भर होली की मस्ती में रहें  और जो हो रिया है उसका बुरा न मनाएं|


रंग से याद आ गया  भय्ये की रंग के तो दाग भी पड़ जाते हेंगे और फिर दाग लगी चुनरिया ले कर अपन घूमते रहते हेंगे सारे  शहर में ,कोई देख भी ले इस दिन तो कोई फरक नहीं पड़ता हेगा | सबई अपने अपने दाग दिखाते  गर्ब से घूमते हेंगे, भला उसकी चुनरिया मेरी चुनरिया से गन्दी कैसे? अपन के यहाँ तो दूसरे की चुनर दागदार करने की होड़ ही लगी रहती हेगी, कैसे ? अरे अखबार , टीवी नहीं देखते भय्ये, रोजई कोई सुसरा किसी  सुसरी  की चुनरिया  पर दाग लगाने की फ़िराक में घूम रहा हेगा, जबरदस्ती, सुसरी अगर मने करे तो चुनरिया फाड़ डालने में भी देरी नहीं करते ये सुसरे| होली में भी सब ऐसे ही चलता है भय्ये, इस दिन कोई किसी  का विरोध नई करतारंग लगाने के बहाने जाने कहाँ कहाँ, कैसे कैसे ,दबा कर रंग लगाने का सिस्टम है अपन के यहाँ|कपड फाड़  होली भी होती हेगी कहीं कहीं अपन के यहाँअब जब साल भर ये सब होते देखते हेंगे अपन तो एकई दिन क्यूँ होली खेलें भय्ये , रोज मनाओ होली और खुस रहो, जोर जोर से चिल्ला चिल्ला कर बोलो "बुरा ना मानो  होली है”|