Wednesday, August 27, 2014

व्रत वैकल्य और पुरुष



२८ अगस्त को भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया है, और हर महाराष्ट्रियन घर में हरतालिका व्रत की धूम है| उपवास के तरह तरह के व्यंजनों का स्वाद लेने के लिए तैयार हो जाईये क्यूंकि स्त्री "निर्जला" व्रत रखेगी और पुरुष "निर्लज्ज" व्रत ले कर उसे आज भी नित नई फरमाईशों से त्रस्त कर छोड़ेगा| तू खाए या ना खाए, मेरी हर तरह की भूख का ख्याल रख नहीं तो अगले जन्म का वादा मैं नहीं करता|


हरतालिका व्रत महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है, आज सभी विवाहित/अविवाहित महिलाएं और लडकियां अपने मनपसंद वर को पाने के लिए या पाए हुए वर को सात जन्मो तक पाते रहने के लिए ये व्रत रखती हैं| पार्वती ने पिता की आज्ञा की अवहेलना करते हुए,विष्णु से विवाह ना कर, शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की और अंततः उन्हें पाया, इसी घटना को महिमामंडित करने के लिए हरतालिका गौरी का व्रत रखने का चलन है| आज ये व्रत वैकल्य एक दिखावा ही रह गए हैं| जिस समाज में नारी को सिर्फ भोग्या ही माना जाता है, वहां नारी क्यूँ ये व्रत रखे? क्या इन पुरुषों में कोई शिव है जो इस समाज का सारा विष पी सके और नारी को इस अनंत यातना से छुटकारा दिला सके? यदि वो शिव ही नहीं तो फिर पार्वती बनने की क्या जरूरत?
हमारे समाज में कितनी पार्वतियों को उनका शिव मिला है, ये बड़ा यक्ष प्रश्न है, अधिकतर पार्वतियाँ, विष्णु के साथ ही निभाती दीखती हैं| साल के ३०० दिन विष्णु, पार्वती से और पार्वती विष्णु से खटपट करते हुए जीवन बिताते हैं और ऐसे किसी एक दिन, हरतालिका, करवा चौथ आदि के दिन, पार्वतियाँ मनोभाव से उसी अनचाहे विष्णु के साथ, सात जन्मों की गांठ बांधने को तत्पर दीखती हैं|  आज की पीढ़ी में तो हर पार्वती अपने अपने शिव को ही वरती है| आज की नारी, उस पुरातन पार्वती की प्रतिमूर्ति ही है| एक ही अंतर दिखता है, उस पार्वती ने यदि शिव को वरा तो उसके सारे गुण दोषों सहित वरा, कभी उसके वैराग्य , उसके क्रोध  या उसके मनमौजी स्वभाव से उकताई नहीं| कभी शिव की दरिद्रता की, अपने पिता या विष्णु की सम्पन्नता से तुलना नहीं की| वह पार्वती उस शिव के साथ किसी भी हाल में खुश थी| आज की पार्वतियों का कहना मुश्किल है पर फिर आज शिव भी तो नहीं हैं|
सवाल यह है की सिर्फ नारी ने ही पुरुष के लिए ये त्याग आदि करने की परम्परा क्यूँ है हमारे समाज में| ये आदि काल से नारी पर सारे बोझ डालने की आदत देवताओं से ही प्रारंभ हुई है| सीता की अग्नि परीक्षा हो, द्रौपदी का चीर हरण हो या, दमयंती का इंद्र के द्वारा छल हो, हमेशा नारी ही क्यूँ पिसती है कसौटी की चक्की में? मुझे याद नहीं की पुरुष को कभी इन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा हो| ना पुरातन काल में ना आज ही, पुरुष हमेशा ही बंधनों से मुक्त रहा है| सारे बंधन, सारी मर्यादा नारी के ही हिस्से में आई है, फिर भी मर्यादा पुरुषोत्तम सिर्फ राम ही हैं, क्या विडम्बना है|
पिछले कुछ सालों से ये यक्ष प्रश्न मेरे मन  मस्तिष्क में हलचल मचाये हुए था और इसका सीधा सरल उपाय मैंने खोज लिया| अब जब भी मेरी पत्नी मेरे लिए कोई व्रत वैकल्य आदि करेगी मैं उसके व्रत में सहभागी रहूँगा| आखिर मैंने प्रेमविवाह किया है, यदि मैं उसका शिव था, हूँ, रहूँगा तो वो भी मेरा शिव था, है और रहेगी| सही मायनों में तो वही शिव है क्यूंकि मेरे जीवन का गरल उसने पिया है, प्रेम की गंगा वो धारण करती है, चन्द्रमा की शीतलता से मेरे उष्ण और रूखे जीवन में चांदनी सी ठंडक और स्निग्धता वो लाती है, मैं तो उसके गले में लिपटा नाग हूँ जो हमेशा फुंफकारता रहता है,विचलित होने पर काट भी लेता है| मेरी समझ से तो उसने नहीं, मैंने ही करने चाहिए ये व्रत वैकल्य उसको हर जन्म में पाने के लिए| ये कथा कई घरों के लिए सत्य हो सकती है और इसी लिए हम पुरुषों ने अपनी अपनी ही सही, पर नारियों को इन परीक्षाओं से मुक्ति देनी चाहिए, और यदि नहीं तो कम से कम इन परीक्षाओं में उनके साथ ही प्रतिभागी होना चाहिए| मैंने तो प्रारंभ कर दिया है अब आपकी बारी.......
हमारे महाराष्ट्र में ऐसे सभी मौकों पर पत्नियाँ पति का नाम कविता रूप में लेती हैं जिन्हें उखाणा कहते है| इस हरतालिका के मौके पर मैं उखाणा लेता हूँ अपनी पत्नी के नाम का .....
पी कर मेरे जीवन का सब हलाहल, प्रेम की गंगा वो बहाती है छलछल,

वो शिव है मेरा मैं अभि सारिका, नाम वर्षा का लेता हूँ, रख के व्रत हरतालिका||

Friday, August 1, 2014

पंगा मत ले यार



पंगा मत ले यार 

दुनिया से पंगा लेने की अपने राम की आदत छुटपन से है| किसीसे भी, समय देखा न माहौल, ले लिया पंगा! अब तक तो अपनेराम मजे से पंगा लेते और फिर उसके किस्से नमक मिर्च लगा कर लोगों को सुनाते| सुनने वाले भी बड़े चटखारे ले कर उन किस्सों को सुनते| घर पर भी पिता जी से, भाई से , बहिन से, फिर पत्नी से और तो और बच्चों को भी नई छोड़ा अपने राम ने, पंगे लेते रहे|
खैर साहब पंगे लेने का अपना अलग ही मजा है, राह चलते किसी अजनबी से, गाड़ी चलाते वक्त, बैंकों और दुकानों में पंगे लेने के कई मौके दुनिया दे ही देती है अपनेराम को| चेक भुनाने में देर हो गई तो कैश क्लर्क से भिड गए, पासबुक प्रिंटर काम नहीं करता तो काउंटर पर बैठी महिला कर्मी को दो बातें सुना दीं, एटीएम काम नही कर रहा तो जा कर बैंक मेनेजर से लड़ आये| राशन दुकानदार ने दाल दी जो गली नहीं तो उसके पुरखों की मट्टी पलीद कर आये,चीनी मीठी नई थी तो दस कडवी बातें सुना दीं, चावल में पत्थर निकले उसी पत्थर से उसका सर फोड़ आये| राह चलते, किसी मोटरसाइकिल वाले ने गलत ओवरटेक किया तो सारी ताकत लगा कर उसे रास्ते में रोक कर सड़क पर चलने के तरीके समझा दिए, साइकिलों पर चढ़े हुए स्कूली बच्चों को ठीक से साइकिलें चलाने का सबक दे आये, आदमी तो आदमी, सड़क पर विचरते, गाय, भैंस, बकरी , कुत्ते, जो मिला उसी से ले लिया पंगा| ऐसा नहीं है की पंगा लेने का सिर्फ मजा ही मजा है, कई बार पंगा उल्टा भी पड़ जाता है| एक बार ऐसे ही सड़क पर कुछ लड़कों से पंगा ले लिया अपने राम ने और लगे उनको सभ्यता का पाठ पढ़ाने| कुछ देर तो उन लड़कों ने बर्दाश्त किया और फिर भिड़ा दिया रामपुरी अपनेराम की छाती पर| अब तो सभ्यता का पाठ अपने राम को ही पढना पड़ा, किसी तरह हाथ पांव जोड़ कर जान बचा कर भागे वहां से| उस दिन से ठान लिया कि अब बेकार पंगा नई लेना है किसीसे और लेना भी है तो पहले परख लेना है की अगला अपने राम को धुन सकता है या अपनेराम अगले को| तो साहब इसी तरह दिन कट रहे थे मजे से, पंगा लेते और पंगा ना लेते|
एक दिन टीवी पर एक विज्ञापन देखा किसी चाय का, उसमे कभी बहु सास से पंगा ले रही है तो कभी कोई लड़की किसी मनचले लड़के से| और ये सब करने की ताकत उन्हें उस चाय को पीने से मिल रही है| अब भैया अपने राम ने भी वो चाय मंगवा ली और सुबह शाम लेने लगे चुस्कियां उसकी| चाय का असर था की अपने राम का पंगे लेने का शौक जोर मारने लगा और भूल गए अपने से किये वादे को|
एक दिन जब अपनेराम काम के सिलसिले में अपने शहर बोकारो से धनबाद जा रहे थे कार से, तो पीछे से आ रही एक जीप बड़ी तेजी से सायरन बजाते हुए साइड मांग रही थी| रियर व्यू मिरर में देखा  तो पाया की कोई सरकारी मंत्री अपने काफिले के साथ धनबाद जा रहा है और उसी की पायलट कार सायरन मार रही है|  ये साले मंत्री अपने को समझते क्या हैं, अपने राम ने सोचा और साइड नहीं दी| अब तो साहब उस मंत्री का काफिला पूरा गरमा गया और सायरनो की पूरी बरात अपने राम के पीछे लग गई| तभी सामने सड़क पर एक गड्ढे के कारण अपनेराम को अपनी गाडी धीमी कर के साइड करनी पड़ी और इसी मौके पर मंत्री का काफिला अपने राम की गाड़ी पर गड्ढे में भरे कीचड को उछालते हुए ओवरटेक कर गया| अपने राम मंत्रीं और सरकार को गड्ढों के के लिए कोसते आगे बढ़ ही रहे थे की उन्होंने देखा की मंत्री का काफिला रूक गया है और काफिले की गाड़ियाँ इस तरह रोकी गईं हैं की अपनेराम की गाडी आगे नहीं जा सकती| चाय पेट और दिमाग में उफान मार रही थी इसलिए गाड़ी से उतर कर अपनेराम बढ़ गए उस काफिले की तरफ| ये कोई तरीका है गाड़ियाँ रोकने का? अपनेराम ने कहा| और आप मंत्री हों या संत्री आपको ये पद हमने ही दिया है फिर आप हमसे आगे निकले के लिए इतने उतावले क्यूँ हैं? जनता को पीछे धकेल कर आप कहाँ आगे जाना चाहते हैं? ५ साल बाद हमारे दरवाजे ही आइयेगा हाथ जोड़ कर वोट मांगने|  अपनेराम पंगे के जोश में दिए जा रहे थे डोस मंत्री जी को| अब तक मंत्री के काफिले के कई सफेदपोश और खाकी धारी सरकारी गुंडे अपने राम की तरफ बढ़ने लगे| अपनेराम पैंतरा बदलना ही चाहते थे की एक खाकी वर्दी वाले ने अपने राम का कॉलर पकड़ लिया साले लोन की गाडी चला रहा है और मंत्री जी को धमकाता है? जब सायरन मार रहे थे तो हटा क्यूँ नहीं सड़क से? अपने आप को क्या परधान मंत्री समझता है साले आम आदमी? उस ने कहा| अभी तक चाय की गर्मी अपनेराम के सीने में जोर मार रही थी तो अपनेराम भी कॉलर छुडाते हुए बोले परधान मंत्री नहीं राष्ट्रपति समझते हैं हम खुदको, क्या कर लेगा?  और लोन की गाड़ी चलाते है तो हफ्ते भी हम भरते है अपने पसीने की कमाई से, तेरी तरह हफ्ते वसूलते नहीं| ये सरकार हमने चुनी है इसलिए ये मंत्री बने हैं समझे? अबे हमारी बिल्ली और हमीं से म्याऊ इतना सुनना था की कुछ सफेदपोश गुंडों ने आव देख ना ताव, अपनेराम को धुनना शुरू कर दिया| दस बारह लात घूंसों के बरसते ही विज्ञापन वाली चाय अपनेराम के होश के साथ उड़नछू हो गयी| कुछ देर बाद आस पास के गाँव वालों ने पानी वानी डाल कर अपनेराम को होश में लाया तो मंत्री का काफिला धनबाद पहुँच चुका था| अपनेराम की एक आँख, एक टांग, दोनों हाथ और कमर भरपूर ठुकाई से फूल कर कुप्पा हो गई थी| 
अपनेराम धनबाद ना जा कर किसी तरह गाड़ी चला कर घर पहुंचे|    अपनेराम को इस तरह लहुलुहान देख कर घर पर कोहराम मच गया| तुरंत डॉक्टर पत्नी ने अपने राम को गाड़ी में डाल कर अस्पताल पहुँचाया और भरती करा दिया| 
शरीर पर जगह जगह पट्टियां और पलस्तर बाँधने के बाद नर्सों ने तरह तरह की नलियां अलग अलग छेदों में घुसेड दीं| अपनेराम अब इन नलियों के सहारे ही गुलुकोस आदि पाने लगे| पत्नी के बहुत पूछने पर भी अपनेराम ने सही वाकया बयां नहीं किया और टालमटोल करते हुए सोने का बहाना करने लगे| दवाईयों के असर से अपनेराम को नींद भी आ गई| रात बीती और सुबह पत्नी चाय का थर्मस लिए हुए अस्पताल के कमरे में दाखिल हुईं  तो अपनेराम की आँखों में अँधेरा छाने लगा| चाय पीने में आनाकानी करते हुए अपनेराम ने पत्नी को कहा आज से चाय छोड़ दी मैंने, चाय से बहुत एसिडिटी होती है, अब गुलुकोस ही पिया करूंगा| पत्नी हैरान होते हुए सोच रही होगी की दिन भर में १०/१२ कप चाय पीने वाला अचानक एक रात में चाय कैसे छोड़ सकता है| अब असली बात उसे बता कर अपनी इज्जत से पंगा लेने की ताकत अपनेराम में नहीं थी इसलिए चुपचाप अस्पताल की खाट पर पड़े पड़े नलियों से आते गुलुकोस का आनंद लेते रहे और तौबा करते रहे आइन्दा किसी से पंगा लेने से|