Sunday, May 25, 2008

तलाश

तलाश


गुमशुदा की तलाश है
इक गुमशुदा की तलाश है ।

इस मुल्क को राह जो दे सके ,
उस रहनुमां की तलाश है ।


दूध की नदियाँ थी बहती
इस धरा पर भी कभी ,
सोने की चिड़िया का शाखों
पर था बसेरा भी कभी ,
आज लेकिन रक्त धरती पर
बहे पानी की तरह ,
नोंचता है आदमी को आदमी
गिद्धों की तरह ,
था चमन हिंदोस्तां जो
बन गया शमशान आज ,
ज़िंदगी की आरज़ू
करती है मुर्दों की जमात ,

आज इस उजड़े चमन में ,
कोपलों की तलाश है ।
गुमशुदा की तलाश है ............


कौम है बीमार बूढ़ी
नौजवां कोई नहीं ,
भ्रष्ट हैं आचार सबके
सभ्य अब कोई नहीं ,
भर रहे अपनी ही झोली
आम हों या ख़ास हों ,
मुल्क की किसको पड़ी है
सोचता कोई नहीं ,
रोग ये कैसा भयंकर
और दवा कोई नहीं ,
मृत्यु का हो रहा तांडव
ज़िंदगी कोई नहीं ,

दे सके संजीवनी जो ,
उस चारागार की तलाश है ।
गुमशुदा की तलाश है ..........


मूल्य नैतिक खो गए सब
अनैतिक है अब चलन ,
काश ये सब देखने से पहले
बंद होते ये नयन ,
लूटने में हैं लगे सब
सोने की इस खान को ,
बेच देंगे कौड़ियों के मोल
इसकी आन को ,
कोई तो होगा कहीं
जिसको कहते हैं विधाता ,
घुप अँधेरा हो रहा है
नज़र कुछ भी नही आता ,

इस अँधेरी रात को
उस भोर की तलाश है ।
गुमशुदा की तलाश है ,
इक गुमशुदा की तलाश है ॥


नेत्र दान

नेत्र दान





आँखों वाले इस जग में

जब ढांप रहे हैं अपनी आँखें ,

अंधा क्यों मांगे है आँखें !



देखेगा वो भूखा बचपन ,सूखा यौवन ,

और बुढ़ापे की लाचारी !

तानाशाही जैसी होती लोकतंत्र में मारा-मारी ,

फंसा तंत्र में आखों वाले ,
फोड़ रहे जन - जन की आँखें
अंधा क्यों मांगे है आँखें...........

गुंडों और नेताओं की वो
देखेगा क्या नई मिलावट ,
और इनके अन्यायों से,
त्राहि -त्राहि करता जन-मानस,
हो त्रस्त जब आँखों वाले
चुरा रहे हैं अपनी आँखें
अंधा क्यों मांगे है आँखें ...........

जला घरों को दीवाली हो ,
रक्त रंग से होली होती ,
अश्रु भरे नैनों से देखो
चुप -चुप भारत माता रोती ,
देख दृश्य यह आँखों वाले
झुका रहे हैं अपनी आँखें
अंधा क्यों मांगे है आँखें ...........

नेत्र -दान का नया सिलसिला ,
इसीलिए जग में है आया ,
अनाचार का यह जो नाटक ,
हम आँखों वालों ने फैलाया ,
अंधा क्यों वंचित रह जाए ,
वह भी देखे लेकर आँखें

अंधा क्यों मांगे है आँखें ..........